Post Viewership from Post Date to 25-Nov-2021
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1550 68 1618

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

मछलियों के संरक्षण में सहायक हैं धार्मिक और प्रथागत मान्यताएं

लखनऊ

 26-10-2021 06:35 PM
मछलियाँ व उभयचर

दुनिया भर में मौजूद स्वदेशी समुदाय अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लंबे समय से पर्यावरण पर निर्भर हैं। सामुदायिक संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कई धार्मिक और प्रथागत मान्यताओं का जन्म हुआ, जिसने न केवल समुदायों को पारितंत्र से जोड़ा,बल्कि प्रजातियों के संरक्षण में भी सहायता की। इस बात के अनेकों उदाहरण हमें आस-पास की चीजों का अवलोकन करने से ही प्राप्त हो जाते हैं। इसे एक उदाहरण से समझें तो भारत में प्राचीन काल से ही ग्रामीण समुदायों ने मछली की प्रजातियों को दैवीय शक्ति के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया और इसलिए उन्हें मंदिरों से जुड़े हुए तालाबों में सुरक्षा प्रदान की।ऐसी कई स्वैच्छिक, अनौपचारिक संस्थाएं और व्यवस्थाएं हैं, जो आज भी मीठे पानी की मछली प्रजातियों के संरक्षण में मदद कर रही हैं। ये प्रजातियां मानव गतिविधियों के कारण संकट में हैं, इसलिए इनका संरक्षण इनके अस्तित्व को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों ने अपने समाज में मछली को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है, तथा उन्हें विभिन्न रूपों में सम्मानित किया है। हिंदू धर्म की बात करें, तो मीठे पानी की मछलियों को वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व), के बाद से भारत के कई हिस्सों में पवित्र माना गया है।उदाहरण के लिए:
1.महासीर की प्रजाति टोर (Tor), जो कि साइप्रिनिड (Cyprinid) मछलियों का एक संकटग्रस्त समूह है,का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मृत पूर्वजों की आत्माओं और वनवासी संतों को प्रसन्न करने के लिए इसे अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है।
2.महासीर मछली के लिए यह श्रद्धा आज भी मौजूद है, और इसलिए मंदिरों से जुड़ी नदियों के कई हिस्सों में इन मछलियों की रक्षा की जाती है। ऐसे क्षेत्रों में मछली पकड़ना प्रतिबंधित है तथा स्थानीय समुदाय, तीर्थयात्री और मंदिर के अधिकारी मछली की आबादी की निगरानी और सुरक्षा में मदद करते हैं।
3. पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में वालन कोंड (सावित्री नदी) में, स्थानीय लोग महासीर को देवी पार्वती की संतान मानते हैं।
4. पश्चिमी घाट क्षेत्र में ही मौजूद तुंगा नदी पर श्रृंगेरी मछली अभयारण्य, जेनेरा हाइपसेलोबारबस (Hypselobarbus), नियोलिसोचिलस (Neolissochilus) और टोर से सम्बंधित संकटग्रस्त साइप्रिनिड्स की रक्षा करता है।
5. चिप्पलगुड्डे मत्स्य धाम, जो कि उसी नदी पर बना एक और अभयारण्य है, अन्य मछलियों के साथ स्थानिक शाकाहारी साइप्रिनिड हाइपसेलोबारबस पुल्केलस (Hypselobarbus pulchellus) की रक्षा करता है। इस प्रजाति को प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त जीव के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
6.गंगा नदी की कई सहायक नदियों को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और इसलिए इसके साथ जुड़ी लोगों की धार्मिक भावनाएँ इस क्षेत्र में लुप्तप्राय स्वर्ण महासीर तोर पुतितोरा (Golden mahseer Tor putitora) के संरक्षण में सकारात्मक भूमिका निभाती हैं।
7. हिमाचल प्रदेश में मछली को देवता के रूप में स्थानीय लोगों द्वारा पूजा जाता है। यही कारण है कि यहां की मच्छियाल झील में मछलियों का संरक्षण संभव हो पाया है। स्थानीय लोगों और पर्यटकों द्वारा यहां मछलियों को नियमित रूप से भोजन खिलाया जाता है। इसके अलावा मंदिर के अधिकारी पानी को प्रदूषण मुक्त रखते हैं, और स्थानीय लोगों द्वारा होने वाले शोषण को रोकते हैं, ताकि मछलियां सुरक्षित रहें। मछलियों के अंधाधुंध शिकार, जलविद्युत परियोजनाओं और प्रदूषण के परिणामस्वरूप मछलियों का आवासीय क्षेत्र संकटग्रस्त स्थिति में है किन्तु ऐसे पवित्र स्थलों में करिश्माई और खतरे में पड़ी महासीर प्रजातियां असुरक्षित खुले क्षेत्र वाले स्थलों की तुलना में शायद बेहतर संरक्षित हैं। इस सुरक्षा के मुख्य आधार मछली पकड़ने का निषेध, भोजन की उपलब्धता और प्रदूषण और अन्य जल विज्ञान परिवर्तनों के खिलाफ सक्रिय निगरानी है। समुदाय आधारित शैक्षिक कार्यक्रमों ने कई मंदिरों के तालाबों में पानी की गुणवत्ता में सुधार किया है, ताकि मछली प्रजातियों को सुरक्षित रखा जा सके। हिंदू धर्म में मछलियों को पवित्र माना जाता है,क्योंकि वे भगवान विष्णु से सम्बंधित हैं।
माना जाता है, कि भगवान विष्णु का पृथ्वी पर पहला अवतार मछली के रूप में था। यह किवदंती है कि इस अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर पहले मानव को भविष्य में आने वाली विपत्तिपूर्ण बाढ़ की सूचना दी। यह पहला मानव मनु थे, जिनके हाथ में एक दिन नदी के तट पर नहाते समय छोटी मछली आ गयी, जो तेजी से बड़ी होने लगी।जब बाढ़ आई तो मनु ने मछली के सिर पर मौजूद सींगों से अपनी नाव को बांधकर अपनी जान बचा ली। माना जाता है कि यह मछली और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार थी। मत्स्य को या तो पशु रूप में या संयुक्त मानव-पशु रूप में चित्रित किया जा सकता है, जिसमें ऊपरी आधा हिस्सा आदमी का तथा निचला आधा हिस्सा मछली का है। मत्स्य को आम तौर पर चार हाथों के साथ दर्शाया जाता है, जिसमें से एक हाथ में शंख तथा दूसरे हाथ में चक्र होता है। तीसरा और चौथा हाथ क्रमशः वर मुद्रा (वरदान प्रदान करते हुए) तथा अभय मुद्रा (रक्षा सुनिश्चित करते हुए) में होता है। मतस्य के ऊपरी शरीर में प्रायः उन सभी आभूषणों को दर्शाया जाता है, जिन्हें भगवान विष्णु धारण करते हैं। इसी प्रकार से ईसाई धर्म की बात करें तो इसमें इचिथिस (Ichthys) को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह यकीनन ईसाई धर्म में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। प्रारंभिक ईसाइयों ने बैठक स्थानों, कब्रों और यहां तक कि अन्य ईसाइयों की पहचान करने के लिए मछली का इस्तेमाल एक गुप्त कोड (Code) के रूप में किया था। किवदंतियों के अनुसार यदि कोई प्रारंभिक ईसाई किसी अजनबी से मिलता, तो वह इचिथिस के आधे चित्र को जमीन पर बनाता। अगर अजनबी व्यक्ति वह चित्र पूरा कर लेता, तो दोनों को यह जानकारी हो जाती कि वे ईसाई हैं। मछली का प्रतीक यहूदी परंपराओं में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तोराह (Torah) में ऐसे कई दृष्टान्त हैं, जो यहूदी लोगों के साथ मछली के संबंधों को दर्शाते हैं। चूंकि मछली सामान्य तौर पर, असंख्य अंडे देती है, इसलिए उनकी महान उर्वरता के कारण यहूदी लोगों ने उन्हें उर्वरता और भाग्य का प्रतीक माना। सेफर्डी (Sephardi) यहूदी बुरी नजर से बचने के लिए मछली के प्रतीक का उपयोग करते हैं। इसके अलावा वे अपने नव वर्ष रोश हशनाह (Rosh Hashanah) के लिए पारंपरिक रूप से मछली का सेवन करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्यों कि इस दिन ऐसे खाद्य पदार्थों को खाया जाता है जो नए साल के लिए अच्छे भाग्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, गेफिल्टे (Gefilte) मछली, आमतौर पर एशकेनाज़ी (Ashkenazi) यहूदियों द्वारा परोसा जाने वाला व्यंजन है। इसी प्रकार से मुस्लिम धर्म में भी मछलियां एक विशेष स्थान रखती हैं।
कुरान के अनुसार मछली अनंत जीवन और ज्ञान का प्रतीक है। यहूदियों के समान, मुसलमानों को भी यह निर्देश दिया जाता है कि वे केवल स्केल (Scale) वाली मछली का ही सेवन करें, बिना स्केल वाली मछली का नहीं। संस्कृतियों में मछलियां अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़े हुए हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3GgUFOd
https://bit.ly/3vDeLgN
https://bit.ly/3GeDTzb

चित्र संदर्भ
1. नाव में सात ऋषियों के साथ मनु (ऊपर बाएं) तथा शंख से निकलने वाले राक्षस का सामना करते हुए मत्स्य का एक चित्रण (wikimedia)
2. महासीर की प्रजाति टोर (Tor), मछली का एक चित्रण (wikimedia)
3. चेन्नाकेशव मंदिर, सोमनाथपुरा में मत्स्य रुप का एक चित्रण (wikimedia)
4. ईसाई धर्म में इचिथिस (Ichthys) को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह ईसाई धर्म में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। जिसको संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id