भारत ही नहीं अपितु विश्व के अन्य कई देशों में भी उर्दू भाषा बोली और पढ़ी जाती है। यदि देखा जाए तो उर्दू लिपि का मूल अरबी लिपि है। जिसका प्रयोग आज संसार के कई देशों में होता है। लखनऊ और उर्दु का रिश्ता अत्यन्त गहरा है जो यहाँ के साहित्य, संस्कृति व दैनिक दिनचर्या में दिखता है।
लखनऊ शहर कि स्थापना के पहले यहाँ पर कुषाण व गुप्त वंश का आधिपत्य था। लखनऊ शहर की स्थापना सन् 1775 ईसवी मे असफ-उद दौला के द्वारा, जो सुजा-उद-दौला का पुत्र था, कि गयी थी। उस वक्त लखनऊ भारत के अति समृद्धशाली व वैभवशाली शहरों मे शुमार हो गया था। असफ-उद-दौला कला का प्रेमी था तथा उसने लखनऊ मे कई इमारतों का निर्माण कराया जिनमे बड़ा इमामबाडा, भूल भुलैया व रूमी दरवाजा शामिल हैं।
उर्दू लिपि की दो विशेषताएं हैं- एक यह कि अन्य सेमिटिक लिपियों की तरह यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती है और दूसरी यह कि इसके अक्षरों को उन अक्षरों के उच्चारण से अलग नाम दिया गया है। जैसे- अ-आ के उच्चारण के लिए अलिफ, ब के लिए बे, ज के लिए जुआद, द के लिए दाल, स के लिए सुआद और श के लिए शीन का प्रयोग किया जाता है। सेमिटिक लिपियों में 22 अक्षर हैं, अरबी में 28 हो गए और जब अरबी लिपि फ़ारसी के लिए अपना ली गई तो इसमें चार चिन्ह- प, च, ज्ह, और ग भी जोड़ दिए गए। जब भारत में यह उर्दू के रूप में प्रचलित हुई तो इसमें ट, ड, और ड़ यह अक्षर भी जोड़ दिए गए जिससे उर्दू लिपि अब 35 अक्षरों की हो गई। कुछ विद्वान इसमें 37 अक्षर हैं ऐसे मानते हैं।
उर्दू एक व्यंजन प्रधान लिपि है और स्वर बनाने के लिए जेर, जबर, पेश आदि अक्षर-चिन्हों का आश्रय लिया जाता है। उर्दू लिपि की एक और खासियत उसकी स्वरमाला में है। उर्दू में कुछ स्वरों के लिए अक्षर हैं, जैसे-अलिफ, ऐन, ये आदि। कुछ स्वरों के लिए ऊपर नीचे लगाए जाने के चिन्ह (जेर, जबर, पेश) हैं पर उन चिन्हों का प्रयोग ऐच्छिक रहता है। इसलिए शब्द में जितने अधिक अक्षर होंगे उतने ही शब्दों की संभावना बढ़ेगी। जैसे उर्दू लिपि में क+स+न लिखे जाने पर उसे कसन भी जा सकता है और कुसन, किसन, किसिन आदि भी पढ़ा जा सकता है। उसी प्रकार व के लिए प्रयुक्त होने वाला उर्दू अक्षर (काव) ऊ, ओ और औ के के लिए भी प्रयुक्त होता है।
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