 
                                            समय - सीमा 260
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1053
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
| Post Viewership from Post Date to 19- Dec-2021 (30th Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2317 | 176 | 0 | 2493 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
 
                                            पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का नाम इस्लामी परंपरा में बेहद सम्मान और
आस्था के साथ लिया जाता है। हर नमाज़ी अपनी नमाज़ अदाई में उनका नाम लेता है, और उनसे
आशीवार्द मांगता है। मुसलमानों के लिए पैगंबर मुहम्मद के कार्य, उनके शब्द अथवा उनकी चुप्पी
भी ईश्वर के कानून के सामान है, जिसका वे निश्चित तौर पर पालन करते हैं। सम्पूर्ण मानव
इतिहास में पैगंबर मुहम्मद के अलावा ऐसा कोई इंसान नहीं हुआ, जिसे इतनी अधिक संख्या में
लोगों का सम्मान प्राप्त हुआ हो। उनके मुहम्मद नाम का ही अर्थ "प्रशंशनीय" अर्थात प्रशंसा के
योग्य होता है। हालांकि सभी मुसलमान पैगंबर मुहम्मद का नाम हमेशा अपनी जुबान पर रखना
चाहते है, किंतु पैगंबर मुहम्मद (ईद मिलाद अल-नबी) का जन्मदिन मनाने के संदर्भ में आज से
नहीं वरन सहस्राब्दी से अधिक समय से विवाद चल रहा है।
हर साल लाखों मुस्लिम, “मौलिद” (ईद उल मिलाद) अर्थात पैगंबर मुहम्मद का जन्मदिन बड़े ही
धूमधाम से मानते हैं। मुहम्मद के सम्मान में वे रोज़ा रखते हैं, उनकी स्मृतियों में डूबे रहते हैं,
उनकी प्रशंसा करते हैं। दुनियाभर के कई देशों में मिठाइयां बांटी जाती हैं। संगीत और शेरो-शायरी
कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। उन्हें देखकर प्रतीत होता है की मानों पूरी कायनात ही
मुहम्मद के पाक नाम का जप कर रही हो। मुहम्मद का जन्मदिन मनाने की यह प्रथा मिस्र में 11वीं शताब्दी में शुरू हुई, और फिर धीरे-धीरे
मुस्लिम दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई। “मौलिद” का मुख्य समर्थक सूफी संप्रदाय हैं, जिनके
माध्यम से यह प्रथा एक व्यापक परंपरा बन गई। हदीस और कुरान का उपयोग करते हुए, वे तर्क
देते हैं कि पैगंबर मुहम्मद को स्वयं आदम यानी इंसान से बहुत पहले भगवान के प्रकाश से बनाया
गया था, वे यह भी मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन का उत्सव तौहीद (ईश्वर की एकता),
इस्लाम के जन्म और उस व्यक्ति के जन्म का उत्सव है, जो अल्लाह को सबसे अधिक प्यारा है।
लेकिन वही दूसरी ओर मुसलमानों का ही एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो मुहम्मद के जन्मदिन को
बहुत बड़ा अवसर नहीं मानता। अर्थात उनके अनुसार मुस्लिम समाज में किसी के जन्मदिन को
अधिक तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए। दरअसल विभिन्न इस्लामिक संप्रदायों में इस संदर्भ में
मतभेद हैं, कि ईद-ए-मिलाद मनाया जाना चाहिए अथवा नहीं! हालांकि अधिकांश संप्रदाय त्योहार
को स्वीकार करते हैं, वही वहाबी और अहमदिया जैसे कुछ संप्रदाय इसका विरोध करते हैं।
दरअसल बहाबी संप्रदाय द्वारा वहाबिज्म (Wahhabism) सुन्नी इस्लाम के भीतर इस्लामी
पुनरुत्थानवादी आंदोलन को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो अरब
विद्वान मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब (1703–1792) के हनबली के सुधारवादी सिद्धांतों से जुड़ा
है। बहबिवाद अथवा फलफिवाद को हम वहाबी आंदोलन या सलफ़ी आंदोलन से बेहतर समझ
सकते हैं। दरसल इस अतिवादी इस्लामी आंदोलन का श्रेय इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब
(1822-1868) को दिया जाता है। वे बिदअतों (गलत या गैर इस्लामिक रीति रिवाजों) को मिटाने
तथा इस्लाम को उसके असल हालत में, रखने के पक्ष में थे, जैसा की इस्लाम के पैगंबर के समय में
था। इस मानसिकता के कारण कुछ लोग वहाबी संप्रदाय को चरमपंथी मानते हैं। वहाबियों को खुद
को वहाबी न मानने के बजाय अहले-हदीस, सलफी या मुवह्हिद कहलाना पसंद करते हैैं।
व्यावहारिक रूप से, सलाफ़ियों का कहना है कि, मुसलमानों को कुरान, सुन्नत और सलफ़ की
'इज्मा (सहमति) पर भरोसा करना चाहिए, जिससे उन्हें बाद की इस्लामी उपदेशात्मक शिक्षाओं पर
वरीयता मिल सके। माना जाता है बहाबी आंदोलन तौहीद (एकेश्वरवाद) के इर्द-गिर्द घूमता है।
बहाबी आंदोलन मध्यकालीन विद्वान इब्न तैमियाह और इमाम अहमद इब्न हन्बल द्वारा दी गई
शिक्षाओं पर ज्यादा जोर देता है।
मुहम्मद का जन्मदिन मनाने की यह प्रथा मिस्र में 11वीं शताब्दी में शुरू हुई, और फिर धीरे-धीरे
मुस्लिम दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई। “मौलिद” का मुख्य समर्थक सूफी संप्रदाय हैं, जिनके
माध्यम से यह प्रथा एक व्यापक परंपरा बन गई। हदीस और कुरान का उपयोग करते हुए, वे तर्क
देते हैं कि पैगंबर मुहम्मद को स्वयं आदम यानी इंसान से बहुत पहले भगवान के प्रकाश से बनाया
गया था, वे यह भी मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन का उत्सव तौहीद (ईश्वर की एकता),
इस्लाम के जन्म और उस व्यक्ति के जन्म का उत्सव है, जो अल्लाह को सबसे अधिक प्यारा है।
लेकिन वही दूसरी ओर मुसलमानों का ही एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो मुहम्मद के जन्मदिन को
बहुत बड़ा अवसर नहीं मानता। अर्थात उनके अनुसार मुस्लिम समाज में किसी के जन्मदिन को
अधिक तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए। दरअसल विभिन्न इस्लामिक संप्रदायों में इस संदर्भ में
मतभेद हैं, कि ईद-ए-मिलाद मनाया जाना चाहिए अथवा नहीं! हालांकि अधिकांश संप्रदाय त्योहार
को स्वीकार करते हैं, वही वहाबी और अहमदिया जैसे कुछ संप्रदाय इसका विरोध करते हैं।
दरअसल बहाबी संप्रदाय द्वारा वहाबिज्म (Wahhabism) सुन्नी इस्लाम के भीतर इस्लामी
पुनरुत्थानवादी आंदोलन को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो अरब
विद्वान मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब (1703–1792) के हनबली के सुधारवादी सिद्धांतों से जुड़ा
है। बहबिवाद अथवा फलफिवाद को हम वहाबी आंदोलन या सलफ़ी आंदोलन से बेहतर समझ
सकते हैं। दरसल इस अतिवादी इस्लामी आंदोलन का श्रेय इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब
(1822-1868) को दिया जाता है। वे बिदअतों (गलत या गैर इस्लामिक रीति रिवाजों) को मिटाने
तथा इस्लाम को उसके असल हालत में, रखने के पक्ष में थे, जैसा की इस्लाम के पैगंबर के समय में
था। इस मानसिकता के कारण कुछ लोग वहाबी संप्रदाय को चरमपंथी मानते हैं। वहाबियों को खुद
को वहाबी न मानने के बजाय अहले-हदीस, सलफी या मुवह्हिद कहलाना पसंद करते हैैं।
व्यावहारिक रूप से, सलाफ़ियों का कहना है कि, मुसलमानों को कुरान, सुन्नत और सलफ़ की
'इज्मा (सहमति) पर भरोसा करना चाहिए, जिससे उन्हें बाद की इस्लामी उपदेशात्मक शिक्षाओं पर
वरीयता मिल सके। माना जाता है बहाबी आंदोलन तौहीद (एकेश्वरवाद) के इर्द-गिर्द घूमता है।
बहाबी आंदोलन मध्यकालीन विद्वान इब्न तैमियाह और इमाम अहमद इब्न हन्बल द्वारा दी गई
शिक्षाओं पर ज्यादा जोर देता है।
ईद मिलाद उन नबी को मावलिद, मावलिद ए-नबी ऐश-शरीफ या 'पैगंबर का जन्म', कहा जाता है।
मिलाद अथवा मुलाद इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन का पालन है, जो इस्लामी कैलेंडर में
तीसरे महीने रबी अल-अव्वल में मनाया जाता है। अधिकांश सुन्नी विद्वानों में स्वीकृत तिथि है,
जबकि कुछ शिया मुसलमानों को छोड़कर अधिकांश शिया विद्वान 17वीं रबी-अल-अव्वल को
स्वीकार नहीं करते।
वहाबवाद-सलाफीवाद, देवबंदवाद और अहल-ए हदीस के उद्भव के साथ, कई मुसलमानों ने इसे
अवैध मानते हुए इसके स्मरणोत्सव को अस्वीकार करना शुरू कर दिया। सऊदी अरब और कतर
को छोड़कर दुनिया के अधिकांश मुस्लिम-बहुल देशों में मौलिद को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में
मान्यता प्राप्त है। भारत जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले कुछ गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश में भी
इसे सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/2oNbFc1
https://bit.ly/3FPo6qp
https://bit.ly/3FMVzlf
https://bit.ly/3p5Vy63
https://bit.ly/3lJlhzb
https://en.wikipedia.org/wiki/Wahhabism
चित्र संदर्भ
1. कुरान का पाठ करते बुजुर्ग का एक चित्रण (Arab News)
2. जावा द्वीप, इंडोनेशिया में “मौलिद” मनाते हुए मूल निवासियों का एक चित्रण (wikimedia)
3. एकेश्वरवाद को संदर्भित करती खड़ी ऊँगली का एक चित्रण (wikimedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        