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यद्दपि किसी जानवर अथवा इंसान का नवजात शिशु, अपनी मां के निकट होने पर पूरी तरह
निर्भय और संसार के समस्त दुखों से अनभिज्ञ होता है। लेकिन जैसे-जैसे उसका शरीर बड़ा होने
लगता है, उस बच्चे का मन भी शंका और भय की नकारात्मक भावनाओं से भरने लगता है।
दरअसल हम सभी के साथ यही होता है, उम्र और अनुभव बढ़ने के साथ-साथ हम जीवन को मात्र
उसके भौतिक (शारीरिक) स्तर पर जीने लगते हैं। किंतु यदि आप अपने जीवन के प्रति ग्रहणशील
बने, तो पाएंगे की किसी भी प्राणी और जीव मात्र के लिए शंका और डर मात्र एक मन का विचार है।
और जिस प्रकार बचपन में आप अपनी माँ को परमेश्वर (सबकुछ) मानकर निर्भय होकर जीवन
जीते थे, उसी प्रकार उम्र बढ़ने पर आप परमेश्वर (आदिशक्ति) पर आश्रित होकर निर्भयी और सुखी
जीवन जी सकते हैं। नवरात्री के अवसर पर सप्तमात्रिका (सात देवियों) के प्रसंग से इस तथ्य को
बेहतर समझ सकते हैं।
सप्तमात्रिका की अलौकिकता को समझने से पूर्व, हमें मात्रिका (Matrika) को समझने की
आवश्यकता है। संस्कृत शब्द “मात्रिका” को माता अथवा माँ भी कहा जाता है, इसका शाब्दिक अर्थ
"दिव्य माताएं" होता है। यह देवी-देवताओं का एक समूह है, जिसे हमेशा से ही हिंदू धर्म के साथ
जोड़कर देखा गया है। मात्रिका अथवा मातृकाओं को अक्सर सात, सप्तमातृका (सात माताओं) के
समूह में चित्रित किया जाता है। हालांकि कई बार उन्हें अष्टमातृका (आठ माताओं) के समूह के रूप
में भी दर्शाया जाता है।
यह सात देवियां अथवा माताएं (सप्तमातृका) क्रमश: ब्राह्मणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही,
इंद्राणी और चामुंडा हैं। सभी सात माताएं प्रमुख हिंदू देवताओं की आतंरिक उर्जा मानी जाती हैं।
सप्तमातृकाओं का वर्णन प्रायः प्राचीन हिन्दू पुराणों जैसे वराह पुराण, मत्स्य पुराण, मार्कंडेय
पुराण आदि में मिलता है, जो उनकी पुरातनता को दर्शाता है। चामुंडा माता को छोड़कर इन सभी
देवियों का नाम किसी न किसी हिंदू देवता से जुड़ा हुआ है, जैसे:
1. ब्राह्मणी रूप ब्रह्मा।
2. इंद्राणी रूप इन्द्र।
3. वैष्णवी रूप विष्णु।
4. माहेश्वरी रूप शिव।
5. कौमारी रूप स्कंद।
6. वाराही रूप वराह।
ये सभी अपने पुरुष देवता के सामान ही आभूषण पहनती हैं, एक सामान सवारी का प्रयोग करती हैं,
साथ ही अस्त्र-शस्त्र भी अपने पुरुष देव के सामान ही धारण करती हैं।
सप्त मातृका का सबसे पहला संदर्भ मार्कंडेय पुराण में मिलता है, जहाँ इनका वर्णन 400 ईस्वी से
600 ईस्वी तक की पौराणिक कथाओं में पाया गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार मातृकाएं शिव,
इंद्र और अन्य देवताओं के भीतर से ही उत्पन्न होने वाली शक्ति हैं। हालांकि इन्हे प्रायः युद्ध की
देवियां माना जाता है, लेकिन मूर्तिकला चित्रण में, उन्हें अलग तरह से परोपकारी, दयालु और
कुलीन माताओं के रूप में चित्रित किया जाता है। मान्यता है की सप्त-मातृकाओं का संबंध भगवान्
शिव से है, किन्तु उनके नाम से यह ज्ञात होता है की ये सभी ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं के
शरीर से उत्पन्न हुई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार महादानव, अंधकासुर को मारने में भगवान शिव और विष्णु
भी असफल रहे थे। तत्पश्चात उन्होंने उस असुर को मारने के लिए, सात माताओं का निर्माण
किया। अंधकासुर बेहद भयानक दैत्य था, यदि उसके रक्त की एक भी बूँद जमीन पर गिरती तो,
खून की प्रत्येक बूँद से एक नया असुर पैदा हो जाता था। मान्यता है कि सात देवियों ने उस असुर के
रक्त की एक-एक बूँद को पी लिया, और उसे जमीन पर गिरने ही नहीं दिया, जिससे भगवान शिव
के लिए असुर का वध करना आसान हो गया।
सप्त मातृकाओं के जन्म के संदर्भ में एक अन्य विवरण वामन पुराण के अध्याय 56 मिलता है।
कहानी के अनुसार एक बार देवों और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में चण्ड-मुंड जैसे
दानवों के मारे जाने के पश्चात् रक्तबीज नामक एक असुर ने हाथी- घोड़ो की विशाल सेना सहित
युद्ध के मैदान में प्रवेश किया। यह देखकर देवी कौशकी और माँ काली ने बड़ी जोर से गर्जना की!
तत्पश्चात उनके मुंह से माहेश्वरी और हंस पर बैठी तथा हाथों में पानी का घड़ा पकड़े ब्राह्मणी
निकली। माहेश्वरी के शेर से मोर पर विराजमान और भाला पकड़े कौमारी निकली। कौमारी के हाथ
से शंख, चक्र, गदा, तलवार, धनुष-बाण लिए हुए और गरुड़ पर विराजमान होकर, देवी वैष्णवी
निकली। उनके साथ ही शेषनाग (सर्प) पर विराजमान "वरही" निकली। वरही के हृदय से भयंकर
पंजों के साथ देवी "नरसिंहिनी" निकली। और उसके पैर से माता चामुंडा निकली। साथ ही माँ
ब्राह्मणी की आँख से महेश्वरी उत्पन्न हुई।
नेपाल में, मातृकाओं को आठ कम्पास दिशाओं के अनुसार रखा जाता है। उत्तर-पश्चिम, दुर्गा
महालक्ष्मी को सौंपा गया है, जिनसे मातृकाओं का उदय हुआ। सप्त अथवा अष्ट मातृकाओं को
विभिन्न स्थानों पर उनके विविध रूपों में चित्रित किया जाता है, जैसे:
१.ब्राह्मणी: ब्राह्मी को ब्रह्माण्ड के रचियता भगवान ब्रह्मा की ऊर्जा शक्ति मानी जाती है। उसे
पीले रंग और चार सिरों के साथ चित्रित किया जाता है।
ब्रह्मा के सामान ही वह एक माला और
कमंडल (पानी का बर्तन) या कमल का डंठल और किताब या घंटी धारण करती है, और अपने वाहन
हंस पर बैठी दर्शायी जाती है। वह करण मुकुण सहित विभिन्न प्रकार के आभूषण भी पहनती है।
२.वैष्णवी : ब्रह्माण्ड के संरक्षक भगवान श्री विष्णु की शक्ति वैष्णवी को, गरुड़ पर बैठे और चार या
छह भुजाओं के साथ चित्रित किया जाता है।
वह शंख, चक्र, गदा और कमल और धनुष और तलवार
धारण करती है। विष्णु के समान ही वह हार, पायल, झुमके, चूड़ियाँ आदि जैसे गहनों से सुशोभित
हैं। उनके मुकुट को किरीश मुकुण कहा जाता है।
३.माहेश्वरी: भगवान शिव की शक्ति को माहेश्वरी के नाम से पूजा जाता है। माहेश्वरी को रुद्री,
रुद्राणी, महेशी और शिवानी के नाम से भी जाना जाता है, यह नाम उन्हें शिव के रुद्र, महेश और
शिव के नामों से प्राप्त हुए हैं। महेश्वरी को छह हाथों के साथ नंदी (बैल) पर बैठे हुए चित्रित किया
जाता है।
त्रिनेत्र (तीन आंखों वाली) देवी एक त्रिशूल (त्रिशूल), डमरू, अक्षमाला (मोतियों की एक
माला), पानापात्रा (पीने का बर्तन) या कुल्हाड़ी, एक मृग या एक कपाल (खोपड़ी) धारण किये हुए हैं,
तथा सर्प और सर्प कंगन, अर्धचंद्राकार और जादा मुकुंद से सुशोभित है।
४.इंद्राणी: इंद्राणी स्वर्ग के देवता इंद्र की शक्ति है, जिसे ऐंद्री भी कहा जाता है।
हाथी के आसन पर
बैठी ऐंद्री को, दो या चार या छह भुजाओं के साथ गहरे रंग से चित्रित किया जाता है।
५.कौमारी: कार्तिकी, कार्तिकेयनी और अंबिका से भी जाने जानी वाली कौमारी युद्ध के देवता
कार्तिकेय की शक्ति है। कौमारी एक मोर की सवारी करती है, जिनकी चार या बारह भुजाएँ हैं।
वह
एक भाला, कुल्हाड़ी, एक शक्ति या टंका (चांदी के सिक्के) और धनुष धारण करती है। आभूषण के
रूप में वह एक बेलनाकार मुकुट पहनती है।
६.वरही: वाराही अथवा वैराली विष्णु के तीसरे अवतार वराह की शक्ति है।
वह एक डंडा (दंड की
छड़ी) या हल, बकरी, एक वज्र या तलवार और एक पनपात्रा से शुशोभित है।
७.चामुंडा: चामुंडा को चामुंडी और चर्चिका के नाम से भी जाना जाता है। वह आमतौर पर काली के
नाम से पहचानी जाती है।
काले रंग की माँ चामुंडा को कटे हुए सिर या खोपड़ी (मुंडामाला) की माला
पहने हुए और डमरू, त्रिशूल, तलवार और पानीपात्र (पीने का बर्तन) धारण करने के रूप में चित्रित
किया जाता है। उन्हें सियार की सवारी करते हुए या एक आदमी (शव या प्रेता) की लाश पर खड़े
होकर, तीन आँखें, एक भयानक चेहरा और एक धँसा पेट होने के रूप में चित्रित किया जाता है।
८.नरसिम्ही: नरसिंही, नरसिंह (विष्णु का चौथा और सिंह-पुरुष रूप) की दिव्य ऊर्जा है।
उन्हें
प्रत्यंगिरा भी कहा जाता है, उन्हें एक अर्ध स्त्री-शेर देवी के रूप में चित्रित किया जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ozrAHd
https://bit.ly/3DfWDMy
https://en.wikipedia.org/wiki/Matrikas
https://www.britannica.com/topic/Saptamatrika
चित्र संदर्भ
1. अपने सार्वभौमिक रूप में (सप्तमातृका) का एक चित्रण (flickr)
2. युद्ध के हालातों में मातृका के सभी रूपों का चित्रण (facebook)
3. ब्राह्मी को ब्रह्माण्ड के रचियता भगवान ब्रह्मा की ऊर्जा शक्ति मानी जाती है, जिनका एक चित्रण (wikimedia)
4. ब्रह्माण्ड के संरक्षक भगवान श्री विष्णु की शक्ति वैष्णवी को, गरुड़ पर बैठे और चार या छह भुजाओं के साथ चित्रित किया जाता है,जिनका एक चित्रण (youtube)
5. भगवान शिव की शक्ति को माहेश्वरी के नाम से पूजा जाता है, जिनका एक चित्रण (youtube)
6. इंद्राणी स्वर्ग के देवता इंद्र की शक्ति है, जिसे ऐंद्री भी कहा जाता है, जिनका एक चित्रण (wikimedia)
7. कार्तिकी, कार्तिकेयनी और अंबिका से भी जाने जानी वाली कौमारी युद्ध के देवता कार्तिकेय की शक्ति है, जिनका एक चित्रण (wikimedia)
8. वाराही अथवा वैराली विष्णु के तीसरे अवतार वराह की शक्ति है, जिनका 14वीं सदी की नेपाल से प्राप्त प्रतिमा का एक चित्रण (wikimedia)
9. 11वीं-12वीं सदी का राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली, में संगृहीत चामुंडा माता का एक चित्रण (wikimedia)
10 . नरसिंही, नरसिंह (विष्णु का चौथा और सिंह-पुरुष रूप) की दिव्य ऊर्जा है, जिनका एक चित्रण (youtube)
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