City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2074 | 65 | 2139 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
शायद ही वर्तमान समय में किसी के कपड़े उतने संयमी हो सकते हैं, जीतने गांधीजी के सरल और अपरिष्कृत
पोशाक या रेशमी कपड़े और चमड़े की जैकेट (Jacket) के रूप में असंवेदनशील कपड़े। उनके द्वारा खादी से रेशम
तक, एक छोर पर कठोर उपयोगितावाद और दूसरे छोर पर क्रूरता-आधारित प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करने वाले
कपड़ों की पूरी श्रृंखला की यात्रा की जाती है।अधिकांश भारतीय महिलाओं के लिए रेशम का उपयोग एक
प्रतिष्ठा का प्रतीक है। नरम, चिकना और झिलमिलाता रेशम शायद अब तक का सबसे आकर्षक कपड़ा है। दो
हजार साल से भी पहले, यह कपड़ा चीन (China) से आयात किया गया था, इसलिए संस्कृत में इसे चिनांशुक
(Chinanshuk) के नाम से जाना जाता था।इसके उत्पादन की विधि और स्रोत एक बहुत ही सुरक्षित रहस्य थी,
इसलिए ऐसा माना जाता है कि इसको रहस्य बनाए रखने के लिए शायद लाखों लोगों की हत्या भी की गई थी।
यदि रेशम शब्द का उल्लेख किया जाएं तो लोग स्वतः ही इसे विलासिता और प्रयोजन में पहने जाने वाले
कपड़ों से जोड़ देंगे। वहीं भारतीयों के लिए विशेष रूप से रेशम हमारे साज-सामान में उपयोग होने वाले वस्त्रों
में से एक है, यह खुशी के त्योहारों पर पहने जाते हैं, और यहां तक कि पारिवारिक विरासत के रूप में
पीढ़ियों से पीढ़ियों में आगे बढ़ाए जाते हैं।
भले ही नवपाषाण युग में चीन में रेशम के धागे की उत्पत्ति हुई, यह
सदियों से भारत में लोकप्रिय रहा है, और हाल तक, भारत दुनिया में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता था।
दुनिया भर में सालाना 155,000 मीट्रिक टन रेशम का उत्पादन होता है। इसमें से चीन, रेशम का सबसे बड़ा
उत्पादक, 65,000 मीट्रिक टन का उत्पादन करता है, जबकि दूसरे स्थान पर भारत सालाना लगभग 23,060 टन
का उत्पादन करता है, जिससे 25,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है, जिसमें से 2,500 करोड़ रुपये का
निर्यात किया जाता है।अन्य रेशम उत्पादक देश ब्राजील (Brazil), कोरिया (Korea), जापान (Japan) और वियतनाम
(Vietnam) हैं।भारतीय रेशम का आयात करने वाले देश अमेरिका (America), ब्रिटेन (Britain), संयुक्त अरब
अमीरात (United Arab Emirates), इटली (Italy), स्पेन (Spain), फ्रांस (France), जर्मनी (Germany), सऊदी अरब
(Saudi Arabia), अफगानिस्तान (Afghanistan), चीन और कुछ अन्य हैं, लेकिन अमेरिकी खरीदारों द्वारा चीन
जैसे अन्य बाजारों से सामग्री की खरीद के कारण निर्यात में गिरावट को देखा गया है। फिर भी, भारी मात्रा में
रेशम अपशिष्ट का निर्यात किया जाता है।
रेशम का उत्पादन कुछ इस प्रकार से होता है कि इसमें पहले रेशम के कीड़ों को शहतूत के पत्तों का सेवन करने
दिया जाता है, और चौथे पर्णपतन के बाद, रेशम के कीड़े पास रखी एक टहनी पर चढ़ते हैं और उनके रेशेदार
कोकून को बुनना शुरू कर देते हैं। रेशम एक निरंतर बुना हुआ रेशा होता है जिसमें फाइब्रोइन प्रोटीन (Fibroin
protein) होता है, जो प्रत्येक कीड़े के सिर में दो लार ग्रंथियों से स्रावित होता है और साथ ही एक गोंद जिसे
सेरिकिन (Sericin) कहा जाता है, जो तंतुओं को मजबूत करने में मदद करता है। कोकीन को गर्म पानी में
रखकर सिरिकिन को हटा दिया जाता है, जो रेशम के तंतुओं को अलग कर देता है और उन्हें लच्छा बनाने के
लिए तैयार किया जाता है। साथ ही गर्म पानी में डालने से उसमें मौजूद रेशम का कीड़ा भी मर जाता है।
वहीं गांधीजी अहिंसा अहिम्सा दर्शन पर आधारित ("किसी भी जीवित चीज को चोट नहीं पहुंचाने के लिए")
रेशम उत्पादन की काफी आलोचना करते थे। उन्होंने "अहिम्सा रेशम" को भी बढ़ावा दिया, जिसमें रेशम के कीड़े
को उबाले बिना रेशम को प्राप्त किया जाता था। अहिम्सा रेशम बनाने की प्रक्रिया दो तरीकों से होती है: पहला
या तो रेशम के कीड़े को स्वयं से बाहर निकलने दिया जाता है और फिर बचे हुए कोकून को रेशम बनाने के
लिए उपयोग किया जाता है, या कोकून को खुले रूप से काटा जा सकता है, जिससे कीट भी बचा रहता है।क्रूरता
मुक्त रेशम के धागे को पहली बार 2006 में भारत में पेटेंट (Patent) कराया गया था, और अब इसे दुनिया भर
में प्रदर्शित डिजाइनर (Designer) संग्रह में उपयोग किया जाता है।अहिम्सा रेशम सामान्य रेशम की भांति नरम
और टिकाऊ होता है।
रेशम उत्पादन के लिए पाले जाने वाले शहतूत रेशम के कीड़े बॉम्बेक्स मोरी (Bombyx mori) के कीटडिंभ के
कोया से प्राप्त होता है। रेशम का झिलमिलाता रूप रेशम रेशा की त्रिकोणीय घनक्षेत्र जैसी संरचना के कारण
होती है, जो रेशम के कपड़े को विभिन्न कोणों पर आने वाली रोशनी को वापस भेजता है, जिस वजह से
विभिन्न रंगों का उत्पादन होता है। रेशम कई कीटों द्वारा निर्मित किया जाता है लेकिन, आमतौर पर कपड़ों के
निर्माण के लिए केवल कीट कैटरपिलर (Caterpillar) के रेशम का उपयोग किया जाता है। रेशम मुख्य रूप से
रूपांतरण के दौर से गुजरने वाले कीड़ों के कीटडिंभ द्वारा निर्मित होता है, लेकिन कुछ कीड़े, जैसे कि वेबस्पिनर
(Webspinners) और रैस्पी (Raspy crickets) अपने संपूर्ण जीवनकाल में रेशम का उत्पादन करते रहते हैं।
भारत में चार प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है : शहतूत (Mulberry), तसर (Tasar), मुगा (Muga) और एरी
(Eri)। रेशमकीट “बॉम्बीक्स मोरी” शहतूत के पौधों के पत्तों का सेवन करते हैं। रेशम के कीड़ों को जंगली पेड़ों
पर भी देखा जा सकता है, जैसे कि एनथीरिया पफिया (Antheraea paphia) जो तसर रेशम का निर्माण करता
है। एनथीरिया पफिया अनोगीसस लैटिफोलिया (Anogeissus latifolia), टर्मिनलिया टोमेंटोसा (Terminalia
tomentosa), टर्मिनलिया अर्जुना (Terminalia arjuna), लेगरोस्ट्रोइम परविफ्लोरा (Lagerstroemia parviflora)
और मधुका इंडिका (Madhuca indica) जैसे कई पेड़ों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जंगली रेशमकीट एनथेरा
एसैमेन्सिस “मुगा रेशम” का उत्पादन करता है, और एक अन्य जंगली रेशम कीट फिलोसैमिया सिंथिया रिकिनी
“एरी रेशम” का उत्पादन करता है। तसर रेशम का अनुमानित वार्षिक उत्पादन 130 टन तक पाया गया है, वहीं
अन्य प्रकार के रेशम का उत्पादन 10,000 टन से भी अधिक होता है।
जैसा कि हम में से अधिकांश लोग जानते हैं कि शहतूत रेशमकीट द्वारा उत्पादित वाणिज्यिक रेशम के रेशे
आमतौर पर सफेद होते हैं। आधुनिक कपड़ा उद्योग रेशम के रेशे को विभिन्न रंगों में रंगकर आकर्षक वस्त्रों
का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं।लेकिन रंगाई सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से एक है।
इसे रंगने और धोने के लिए भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप अनुपचारित
अपशिष्ट जल में हानिकारक विषाक्त पदार्थ होते हैं जिन्हें अंतः नहरों और नदियों में छोड़ा जाता है।वहीं पुणे में
नेशनल केमिकल लेबोरेटरी (National Chemical Laboratory) और मैसूर में सेंट्रल सेरीकल्चरल रिसर्च एंड
ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (Central Sericultural Research and Training Institute) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित
"ग्रीन" विधि रेशमकीट को सीधे रंगीन रेशम का उत्पादन करने में सक्षम बनाती है।इस तकनीक में कीटडिंभ को
उनके पसंदीदा भोजन शहतूत के पत्तों को डाई (Dye) में डुबोकर खिलाना शामिल है। रंगीन कोकून और रंगीन
रेशम रेशा का उत्पादन करने के लिए डाई को रेशमकीट के जैव रासायनिक मार्गों के साथ ले जाया जाता है।यह
विचार नया नहीं है और इससे पहले इसमें अन्य समूहों द्वारा अध्ययन किया गया है।
हालांकि, रंगीन रेशम पर
अब तक प्रस्तुत किए गए सभी अध्ययनों ने प्रतिदीप्त रंग रोडामाइन (Rhodamine) पर ध्यान केंद्रित किया है
जो बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए बहुत महंगा है।इसलिए भारतीय शोधकर्ताओं ने "एज़ो (यह नाम एज़ोट से
आया है, जिसे फ्रेंच में नाइट्रोजन के लिए उपयोग किया जाता है)" रंगों की ओर रुख किया,जो कि सस्ती हैं
और आज इस्तेमाल होने वाले आधे से अधिक रंगीन कपड़ों को इस प्रक्रिया से ही बनाया जाता है।वैज्ञानिकों ने
बॉम्बेक्स मोरी रेशमकीट कीटडिंभ को रंगीन शहतूत के पत्तों को खिलाकर सात अलग-अलग एज़ो रंगों का
मूल्यांकन किया, यह देखने के लिए कि रेशम में कौन से रंग स्थानांतरित किए जाएंगे। उन्होंने पाया कि
कैटरपिलर के रेशम में तीन रंग शामिल हो जाते हैं और इनमें से कोई भी रेशमकीट को नुकसान नहीं पहुंचाता
है या इसके विकास को प्रभावित नहीं करता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/2YiiF1K
https://go.nature.com/3A8hLSN
https://bit.ly/2YdHXya
https://bit.ly/3iwVgBg
https://bit.ly/2PIO1bs
https://bit.ly/3mmzPDX
https://bit.ly/3AmDSVX
चित्र संदर्भ
1. हाथों में रेशम के कीड़े पकडे व्यक्ति का एक चित्रण (
Vegan Food & Living)
2. कटे हुए रेशमकीट कोकून का चित्रण (wikimedia)
3. रेशम के सुंदर वस्त्र का एक चित्रण (wikimedia)
4. रेशम के कोकून से रेशम के तंतु खोले जाने का एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.