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यद्यपि भारतीय समाज लजीज पकवानों और व्यंजनों का धनी राष्ट्र है, यहां सालभर में सैकड़ों लोकपर्व
धूमधाम से मनाए जाते हैं, और इन पर्वों के शुभवसर पर स्वादिष्ट पकवान अनिवार्य रूप से बनते हैं।
लेकिन यह भी सर्वमान्य है की, इन पकवानों में यदि पनीर से निर्मित कोई व्यंजन शामिल नहीं है, तो
त्योहारों का स्वाद अधूरा सा लगता है। हालांकि पनीर पूरी दुनिया में बेहद पसंद किया जाता है, किंतु
मसालों के देश भारत में इसकी लोकप्रियता की कोई सीमा नहीं है।
यदि हम आसान भाषा में समझें तो पनीर दूध से पानी निकालकर, केवल शुद्ध दूध, प्रोटीन, वसा तथा अन्य
स्वादवर्धक पोषक तत्वों से युक्त खाद्य पदार्थ है। अपने लज़ीज़ स्वाद के अलावा यह व्यंजन, कई पोषण
लाभ भी प्रदान करता है। पनीर विटामिन, खनिज और प्रोटीन के समृद्ध स्रोत के रूप में भी कार्य करता है।
वास्तव में, 36% उपभोक्ता पनीर खरीदते समय स्वाद को ब्रांड और कीमत से भी महत्वपूर्ण कारक मानते
हैं। पनीर का निर्माण अच्छे बैक्टीरिया द्वारा, सक्षम दूध का अपघटन करने से होता है। पनीर के बनने के
दौरान कई जैव रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं, जो स्वाद बढ़ाने के लिए बेहद आवश्यक हैं। स्वाद बनाने के
लिए दो अपघटन प्रक्रियाएं : प्रोटियोलिसिस "proteolysis" (प्रोटीन का टूटना) और लिपोलिसिस
"lipolysis" (वसा का टूटना) होती हैं।
पनीर बड़े पैमाने पर कैसिइन प्रोटीन (दूध प्रोटीन) से बना होता है, और प्रोटियोलिसिस के दौरान, ये प्रोटीन
अपने बिल्डिंग ब्लॉक्स - अमीनो एसिड और पेप्टाइड्स (amino acids and peptides) में टूट जाते हैं,
और अधिक जटिल, सुगंधित यौगिक बनाते हैं।
चीज़ मेकिंग (Cheese Making) अथवा पनीर निर्माण एक प्राचीन जैव प्रौद्योगिकी है, जो जानवरों को
पालतू बनाने से भी पहले की मानी जाती है। यह जैव प्रौद्योगिकी के शुरुआती उदाहरणों में से एक है। पनीर
बनाने में दूध में कैसिइन प्रोटीन की मात्रा बढ़ाना और फिर दूध को ठोस दही से तरल मट्ठा को अलग करना
शामिल है, जिसमे से तरल मट्ठा निकाल दिया जाता है, जिसके बाद निचोड़े गए नमकीन दही को निश्चित
आकार दिया जाता है और नियंत्रित वातावरण में पकने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया के प्रत्येक
चरण में सूक्ष्मजीवों (Microorganisms) का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर पनीर बनाने की प्रक्रिया
शुरू करने के लिए दूध में विशेष 'स्टार्टर' बैक्टीरिया मिलाया जाता है। ये बैक्टीरिया लैक्टोज (मिल्क शुगर)
को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं, और दूध के पीएच को कम कर देते हैं।
इस प्रक्रिया के लिए दो प्रकार के बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है:
1. मेसोफिलिक बैक्टीरिया (Mesophilic Bacteria): ये बैक्टीरिया कमरे के ताप पर पनपते हैं, और
तापमान बढ़ने पर ख़त्म हो जाते हैं। इसका उपयोग चेडर, गौडा और कोल्बी (Cheddar, Gouda and
Colby) जैसे मीठे पनीर को बनाने के लिए किया जाता है।
2. थर्मोफिलिक बैक्टीरिया (Thermophilic bacteria): यह बैक्टीरिया लगभग 55 डिग्री सेल्सियस के
उच्च तापमान पर पनपते हैं, और ग्रुयेरे, परमेसन और रोमन (Gruyere, Parmesan, and romaine) जैसे
तीव्र पनीर बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
भारत में पनीर बनाने का बेहद प्राचीन इतिहास रहा है। जानकारों के अनुसार, पनीर का उल्लेख भारत के
वैदिक ग्रंथों में मिलता है। उस समय दूध को जमाने के लिए छाल और फलों का उपयोग किया जाता था।
16वीं शताब्दी के आसपास पहली बार देश में पनीर का उत्पादन वास्तव में शुरू हुआ था। स्वदेशी पनीर
बनाने वाले सबसे प्रमुख क्षेत्र हिमालयी है, जैसे कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख आदि।
भारत के स्थानीय पनीर की विभिन्न किस्में निम्नवत हैं
1. बंदेल (bandel): इस सूखे कुरकुरे पनीर की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के बंदेल से हुई। पुर्तगालियों को इस
तीव्र नमकीन पनीर का श्रेय दिया जाता है, जो अब तारकेश्वर और बिष्णुपुर के गांवों में बनाया जाता है।
2. कलारी (Kalari): यह पनीर गाय, बकरी या भैंस के दूध से निर्मित होता है, जम्मू और कश्मीर के मूल
निवासी, इसे दूध चपाती या मैश क्रेज के रूप में भी उच्चारित करते हैं।
3. चुरपी (churpi): नेपाल, भूटान से लेकर तिब्बत और भारत तक फैले पूरे हिमालय में चुरपी के विभिन्न
संस्करण बनाए जाते हैं। नरम चुरपी गाय के छाछ से बनाई जाती है, जबकि एक कठोर संस्करण याक के
दूध या याक और गाय के दूध के मिश्रण से बनाया जाता है। इसे घंटों तक चबाया भी जा सकता है।
भारत में पनीर की वृहद लोकप्रियता के बावजूद पनीर निर्माण के संबंध में कई चुनौतियां भी शामिल हैं, जैसे
भारत में पनीर बनाने वालों के सामने बड़ी चुनौती अत्यधिक नमी वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में गुणवत्ता
युक्त पनीर का उत्पादन करना है। चूँकि पनीर बनाने के लिए गर्मी सही नहीं है, इसके लिए कम तापमान
और आर्द्रता नियंत्रित (humidity controlled) कमरे की आवश्यकता होती है। कोल्ड स्टोरेज (cold
storage) की कमी पनीर के वितरण को बाधित करती है, जिसे कोडाई चीज़ (Kodai Cheese) जैसे बड़े
उत्पादकों ने केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में अपनी खुद की रेफ्रिजरेटेड चेन बनाकर दूर कर
दिया है। पनीर निर्माण के संदर्भ में सरकारी नियम भी बड़ी बढा खड़ी करते हैं, भारत के सख्त खाद्य सुरक्षा
कानून औद्योगिक उत्पादन के पक्ष में तो हैं, लेकिन देश में पशु रेनेट (rennet) के उपयोग पर प्रतिबंध है।
संदर्भ
https://bit.ly/2XVmJ8j
https://bit.ly/3kBLkI3
https://bit.ly/2XYYvtQ
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK562892/
चित्र संदर्भ
1. विविध प्रकार के पनीर के टुकड़ों का एक चित्रण (cdn-a.william)
2. पनीर के औद्योगिक उत्पादन के दौरान, मिक्सर घुमाकर अप्रशिक्षित दही को तोड़ा जाता है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत से पनीर टिक्का मसाले का एक चित्रण (wikimedia)
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