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सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ती के लिए आवश्यक हैं कृषि सिंचाई परियोजनाएं

लखनऊ

 14-09-2021 10:22 AM
भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

मिट्टी या मृदा हमारे पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि मनुष्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्षदोनों रूप से मिट्टी पर निर्भर है।लखनऊ में भी विभिन्न प्रकार की मिट्टी पायी जाती है, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के लिए किया जाता है। यहां पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टियों में दोमट, बलुआ, सिल्ट और चिकनी या मटियार मिट्टी शामिल है।इनके अलावा इन सभी मिट्टियों का मिश्रण भी यहां पाया जाता है। उदाहरण के लिए बलुआ-दोमट, सिल्ट-दोमट,सिल्टी दोमट आदि।इन सभी मिट्टियों में कुछ न कुछ अंतर अवश्य होता है, इसलिए इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के लिए किया जाता है। यहां जो मिट्टी सबसे अधिक पायी जाती है, वह है दोमट मिट्टी।दोमट मिट्टी,बलुआ, सिल्ट और मटियार मिट्टी का मिश्रण है तथा पौधों के लिए अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है।इसकी पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता अत्यधिक उच्च होती है और इसलिए इसे कृषि मृदा भी कहा जाता है।
लखनऊ का कुल कृषि क्षेत्र 215280 हेक्टेयर, शुद्ध कृषि क्षेत्र 138148 हेक्टेयर तथा शुद्ध सिंचित क्षेत्र 124000 हेक्टेयर है तथा यहां पाई जाने वाली मिट्टी का उपयोग कृषि क्षेत्र, वन, चारागाह जैसी अनेकों गतिविधियों के लिए किया जाता है।वर्तमान समय में पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और गरीबी का सामना कर रहा है, तथा इन दोनों समस्याओं को कम करने में मिट्टी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
।विभिन्न प्रकार की गैसों सहित कार्बन डाईऑक्साइड जलवायु परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक मानी जाती है तथा मिट्टी पृथ्वी के लगभग 2,500 गीगाटन कार्बन को संचित करती है। यह मात्रा वायुमंडल में कार्बन की मात्रा का तीन गुना से अधिक हिस्सा है और सभी जीवित पौधों और जानवरों में संग्रहित मात्रा का चार गुना है।इस प्रकार मिट्टी कार्बन भंडारण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में एक हथियार की भांति कार्य करती है।इसके अलावा मिट्टी गरीबी उन्मूलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।यदि मिट्टी उर्वरक हो, तो फसल उत्पादन अच्छा होता है, और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े लोगों को लाभ प्राप्त होता है।मिट्टी की गुणवत्ताकृषि उत्पादन और आर्थिक विकास के प्रमुख निर्धारक हैं।
हालांकि कभी-कभी परिणाम इसके विपरीत भी प्राप्त होते हैं। यदि अच्छी मिट्टी वाले क्षेत्रों को अलग कर दिया जाता है,या ऐसे क्षेत्रों का उचित प्रबंधन नहीं किया जाता है, तो बेहतर मिट्टी होने के बाद भी ग्रामीण गरीबी दर उच्च हो सकती है।जिन क्षेत्रों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता, वहां की मिट्टी की उर्वरता अपेक्षाकृत बेहतर होती है, किन्तु विभिन्न सुविधाओं के अभाव के कारण ऐसे क्षेत्रों में गरीबी दर भी बढ़ती जाती है। मिट्टी एक प्रकार से सिंचाई अवसंरचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्यों कि मिट्टी जल की एक महत्वपूर्ण मात्रा का संग्रहण करती है, जिसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।
भारत में ताजे पानी का मुख्य उपभोक्ता सिंचाई है तथा भारत में भूजल का 90 प्रतिशत से अधिक जल का उपयोग किया जाता है।बढ़ती जनसंख्या जो कि खाद्य सुरक्षा के साथ भी जुड़ी हुई है, ने जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाला है।
देश एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है जबकि ताजे पानी की आपूर्ति स्थिर है।इसके अतिरिक्त, पानी का अति प्रयोग बढ़ी हुई लवणता,पोषक तत्वों के प्रदूषण,और बाढ़ के मैदानों और आर्द्रभूमि के क्षरण और नुकसान से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।खराब जल संसाधन प्रबंधन प्रणाली और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत लगातार पानी की कमी का सामना कर रहा है।इस समस्या के निपटान के लिए कुशल जल बचत प्रौद्योगिकियों, नहर के पानी का उपयोग और वर्षा जल संचयन जैसे सिंचाई के वैकल्पिक स्रोतों की ओर स्विच करना अनिवार्य हो गया है।
जिस प्रकार से जल स्तर तेजी से कम हो रहा है, सिंचाई क्षमता कम हो रही है और बार-बार सूखा पड़ रहा है, यह इंगित करता है, कि यदि मौजूदा जल उपयोग पैटर्न में सुधार नहीं किया जाता है तो भविष्य में भयावह जल संकट हो सकता है।वर्षा जल के संचयन और अपवाह जल का उपयोग करने हेतु भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए सिंचाई के बुनियादी ढांचे में और सुधार करने की आवश्यकता है।उत्तर प्रदेश सरकार ने 40 लाख किसानों को लाभान्वित करने के लिए मेगा सिंचाई परियोजनाएं शुरू करने की योजना बनाई है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले साल तक सिंचाई परियोजनाओं से 16.49 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि सिंचित करने का निर्णय लिया है ताकि पानी की कमी से कृषि को नुकसान न हो। इससे करीब 40.56 लाख किसानों को लाभ होने की संभावना है।
वर्तमान समय में कोरोना महामारी पूरे विश्व में फैली हुई है तथा इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था और इसके प्रमुख क्षेत्रों विशेष रूप से पानी,अपशिष्ट जल और कृषि जैसे संबद्ध क्षेत्रों पर इसके प्रभाव की सीमा अभी भी स्पष्ट नहीं है।कोरोना महामारी का प्रभाव जल संसाधनों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। उदाहरण के लिए महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन, जिसने औद्योगिक अपशिष्ट निर्वहन को रोका, के कारण नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार आया है, किन्तु घरेलू और वाणिज्यिक क्षेत्रों में पानी की मांग-आपूर्ति के पैटर्न में बदलाव हुआ है। इसके अलावा कृषि गतिविधियों में व्यवधान और कृषि जल उपयोग पैटर्न में बदलाव हुआ है। इन प्रभावों से उभरने के लिए सरकार को सतत विकास लक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इसके अलावा डेटा निगरानी प्रक्रिया को मजबूत करने और क्षेत्र-विशिष्ट व्यापक डेटाबेस के निर्माण की आवश्यकता है।

संदर्भ:

https://bit.ly/3z3gUST
https://bit.ly/392XXFw
https://bit.ly/3A70TwG
https://bit.ly/3zfMMUF
https://bit.ly/3EeaHHq

चित्र संदर्भ
1. बिहार, भारत में सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई प्रणाली का एक चित्रण (flickr)
2. मिट्टी की विभिन्न परतों का एक चित्रण (wikimedia)
3. सिंचाई हेतु भूमिगत जल प्रयोग का एक चित्रण (wikimedia)
4. सिंचाई हेतु नालों के प्रयोग किये जाने का एक चित्रण (wikimedia)



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