ग्लास ब्लोइंग (Glass blowing),ग्लास बनाने की तकनीक है जिसका इस्तेमाल इंसानों ने ग्लास को आकार देने के लिए किया है। यह तकनीक पहली ईसा पूर्व की है, जिसके प्रमाण पाकिस्तान (Pakistan) के तक्षशिला में खुदाई से मिले हैं।लेकिन जिस ग्लास ब्लोइंग तकनीक को हम आज जानते हैं, उसे 16वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगलों द्वारा भारत में लाया गया।फारसी प्रभाव और तकनीकों के कारण हुक्का, चिमनी शेड, इत्र की बोतलें, कलश और जग जैसे विभिन्न प्रकार के ब्लो ग्लास कलाकृतियों का निर्माण हुआ। इसी अवधि के दौरान ग्लास गिल्डिंग (Glass gilding) और रंग तकनीक का आगमन भी हुआ।स्वतंत्रता के बाद, हालांकि, उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद क्षेत्र के आसपास विकसित होने वाले कांच उद्योग ने मोल्डेड (Moulded) ग्लास पर ध्यान केंद्रित किया।
परिणामस्वरूप ग्लास ब्लोइंग की कला केवल कुछ कलाकारों तक ही सीमित हो गयी।प्रकाश डिजाइनरों की एक बढ़ती संख्या आज अपने डिजाइनों के लिए ब्लो ग्लास चाहती है,जो फिरोजाबाद के ग्लास ब्लोअर को कस्टम ग्लासवेयर बनाने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।