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धरती पर पक्षियों की विभिन्न प्रजाति पाई जाती है, जिनमें से कलहंस (Goose)और हंस भी
एक हैं।अक्सर कलहंस को हंस के समान ही माना जाता है, लेकिन ये दोनों पक्षी अलग-अलग
हैं।हंस और कलहंस दोनों परिवार एनाटिडे (Anatidae) और उपपरिवार अंसेरिने (Anserinae) से
संबंधित हैं, लेकिन इनके वंश भिन्न-भिन्न हैं। हंस विशेष रूप से जीनस सिग्नस (Cygnus) से
संबंधित हैं, जबकि कलहंस को 3 जेनेरा ब्रांटा (Branta), एंसर (Anser) और चेन (Chen) में
विभाजित किया गया है।कलहंस की बहुत सारी प्रजातियाँ हैं, और जब उनमें संकरण होता है,
तब उन्हें वर्गीकृत करना और भी अधिक कठिन हो जाता है। वहीं हंस की बात करें तो हंस की
दुनिया भर में केवल 7 ही प्रजातियाँ हैं।
मौजूदा जीवों के साथ-साथ जीवाश्मों के सूक्ष्म और विस्तृत आणविक विश्लेषण के अनुसार, हंस
और कलहंस दोनों लगभग 300 लाख वर्ष पहले, ओलिगोसिन प्रागैतिहासिक (Oligocene
Prehistoric) युग के दौरान बत्तखों से अलग हो गए थे।मिओसीन (Miocene) काल के अंत में
लगभग 120 लाख वर्ष पहले कलहंस और हंसों ने एक दूसरे से अलग शाखाएं विकसित कीं।
दोनों की शारीरिक बनावट में भी काफी अंतर होता है, जो उन्हें एक दूसरे से अलग करता है।
उदाहरण के लिए हंस, कलहंस की तुलना में बड़े होते हैं। हंसों की तुलना में कलहंस की गर्दन
छोटी और मोटी भी होती है।
कलहंस की एक प्रजाति जिसे कभी-कभी किशोर हंस माना जाता
है, वह है स्नो गूज (Snow goose)। किंतु स्नो गूज को उनके ब्लैक विंग टिप्स (Black wing
tips) से आसानी से पहचाना जा सकता है, क्यों कि किसी भी हंस प्रजाति में यह मौजूद नहीं
होता है। कलहंस की बहुत मोटी चोंच भी होती है, जो गुलाबी-नारंगी रंग की होती है।
हंस और कलहंस यूं तो समान क्षेत्रों में निवास करते हैं, लेकिन हंस को अधिकतर ठंडे मौसम में
पाया जाता है, जबकि कलहंस जलवायु और क्षेत्रों की अधिक विविधता में पाए जाते हैं। हंस
लगभग विशेष रूप से पानी में पाए जाते हैं, खासकर जब भोजन की खोज करते हैं, लेकिन
कलहंस को भूमि पर चरते हुए देखा जा सकता है। हालांकि वे पानी और जमीन दोनों में समान
रूप से समय बिताते हैं। अनेकों हंसों और उसके जैसे पक्षी सम्भवतः पेलियोलिथिक
(Paleolithic) युग से मौजूद थे।
दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों में हंस और कलहंस का विभिन्न प्रतीकों के रूप में भी
इस्तेमाल किया जाता है।कलहंस को शांति और सद्भावना का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना
जाता है कि इसकी उत्पत्ति प्राचीन मिस्रवासियों (Egyptians) से हुई थी। प्राचीन मिस्रवासियों ने
इनका उपयोग अपने देवताओं को खुश करने के लिए प्रसाद के रूप में किया। अधिक आधुनिक
समय में, इसका उपयोग दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों में सौभाग्य या सुरक्षा के प्रतीक के
रूप में किया जा रहा है। क्रिसमस कलहंस का उपयोग मूल रूप से सोल्स्टिस (Solstice) देवी के
लिए एक भेंट के रूप में किया गया था, लेकिन समय के साथ यह स्वयं प्रभु ईसा मसीह के
साथ जुड़ गया। जंगली कलहंस पवित्र आत्मा के लिए एक सेल्टिक (Celtic) ईसाई प्रतीक है।
पवित्र आत्मा कभी-कभी आराम से विचरण करती है, किंतु यह हमें चकित भी करती है और
हमारी योजनाओं में बाधा भी डालती है।
एक जंगली और अप्रत्याशित कलहंस की तरह, पवित्र
आत्मा अप्रत्याशित, आश्चर्यजनक दिशाओं में घूमती है। कलहंस से सम्बंधित एक कहानी ईसप
दंतकथाओं (Aesops fables) में भी मौजूद है। कहानी के अनुसार एक व्यक्ति और उसकी
पत्नी के पास एक मुर्गी हुआ करती थी जो हर दिन एक सोने का अंडा देती थी। उन्होंने सोचा
कि मुर्गी के अंदर सोने का एक बड़ा ढेर होना चाहिए। सोना पाने के लिए उन्होंने उसे मार डाला,
किन्तु ऐसा करने के बाद उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उनकी मुर्गी अन्य मुर्गियों से
बिल्कुल अलग नहीं थी। उसे मारने के बाद जब उन्होंने उसका पेट फाड़कर देखा तो उन्हें उसमें
कुछ न मिला। इस प्रकार मूर्ख जोड़े ने एक ही बार में अमीर बनने की आशा में, अपना स्वयं
का नुकसान कर दिया। इस प्रकार यह कहानी नैतिकता का समर्थन करते हुए लालच की घोर
निंदा करती है।
वहीं हंस की बात करें तो इस जलीय प्रवासी पक्षी को भारतीय और दक्षिण पूर्व एशियाई (Asian)
संस्कृति में आध्यात्मिक प्रतीक और सजावटी तत्व के रूप में उपयोग किया जाता है। हिंदू
प्रतीकात्मकता में हंस को भगवान ब्रह्मा, गायत्री, सरस्वती और विश्वकर्मा के वाहन के रूप में
प्रदर्शित किया जाता है।
इसका प्रयोग लाक्षणिक अर्थ में भी किया जाता है अर्थात माना जाता है,
कि यह पक्षी दूध और पानी के मिश्रण से दूध निकालने की क्षमता रखता है।जिस प्रकार से यह
पक्षी दूध और पानी के मिश्रण से दूध निकालने की क्षमता रखता है, ठीक उसी प्रकार बुराई से
अच्छाई भी अलग हो जाती है। भारतीय दार्शनिक साहित्य में, हंस व्यक्तिगत आत्मा का भी
प्रतिनिधित्व करता है। यह सार्वभौमिक आत्मा या सर्वोच्च आत्मा को दर्शाता है। हंस की उड़ान
मोक्ष का प्रतीक है तथा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। हंस को
बौद्ध धर्म में ज्ञान के प्रतीक के रूप में पवित्र माना जाता है। कुछ विद्वान इसे हंस के रूप में
अनुवादित करते हैं तो कुछ किसी और रूप में,लेकिन सबका प्रतीकात्मक महत्व एक ही है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2VqprBw
https://bit.ly/38PVHRK
https://bit.ly/3DVlAhr
https://bit.ly/3l2TfNs
https://bit.ly/2XaCQ1A
चित्र संदर्भ
1. कलहंस (Goose) के जोड़े का एक चित्रण (flickr)
2. कलहंस की एक प्रजाति जिसे कभी-कभी किशोर हंस माना जाता
है, वह है स्नो गूज (Snow goose),जिसका एक चित्रण (istock)
3. मिस्री हंस एक चित्रण (wikiwand)
4. हंस के साथ माता सरस्वती की प्रतिमा का एक चित्रण (wikimedia)