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वर्तमान समय में कोरोना महामारी पूरे विश्व में फैली हुई है, तथा ऐसे समय में शहरी परिवहन
परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने की संभावना है। कोरोना महामारी की समस्या भीड़-भाड़
वाले स्थानों और सार्वजनिक एवं साझा परिवहन के साथ और भी अधिक बढ़ जाती है, जिसके
लिए सामाजिक दूरी और तालाबंदी जैसे उपाय अपनाए गए हैं। हालांकि ये उपाय सार्वजनिक
परिवहन के सामने और भी अधिक चुनौतियां उत्पन्न करते हैं।तो चलिए आज सार्वजनिक
परिवहन पर कोरोना महामारी के प्रभाव तथा इन प्रभावों का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण
हस्तक्षेपों की आवश्यकताओं को समझने का प्रयास करते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों की तरह कोरोना महामारी ने सार्वजनिक परिवहन को भी बुरी तरह प्रभावित किया
है, तथा यह यात्रियों के परिवहन साधन विकल्पों को भी प्रभावित कर रहा है। सार्वजनिक
परिवहन जैसे बसें भारत भर में निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों की विशाल संख्या के
लिए आजीविका और सेवाओं (जैसे – स्वास्थ्य देखभाल) तक किफायती पहुंच प्रदान करती हैं।
इसके अलावा ये अत्यधिक सघन भारतीय शहरों में स्थान, ऊर्जा और उत्सर्जन के संबंध में
गतिशीलता का सबसे कुशल साधन भी प्रदान करती हैं। महामारी को रोकने के लिए अपनाए गये
अनेकों उपाय जैसे शारीरिक दूरी, बार-बार सफाई, तालाबंदी आदि महामारी का सामना करने हेतु
काफी प्रभावी सिद्ध हुए हैं, लेकिन इन्होंने सार्वजनिक परिवहन ऑपरेटरों जैसे बस ऑपरेटरों पर
एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाला है, जो इस क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता को जोखिम में डालता
है। बस सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि तालाबंदी समाप्त हो गई है
और आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे फिर से शुरू हो गई हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार महामारी के कारण लगभग 35 प्रतिशत लोग अपनी कार्य यात्राओं के
लिए अपने परिवहन के साधन को बदलने की संभावना रखते हैं। बस और मेट्रो सेवाओं के
उपयोग में तेज कमी दर्ज की गई है, और साझा गतिशीलता के उदाहरणों में भी कमी आई है।
महामारी के जोखिम से बचने के लिए लोग निजी वाहनों और इंटरमीडिएट सार्वजनिक परिवहन
जैसे टैक्सियों और ऑटोरिक्शा का उपयोग करने लगे हैं। गैर-मोटर चालित मोड की हिस्सेदारी
भी बढ़ गयी है, खासकर कम दूरी की यात्राओं के लिए। तालाबंदी से छूट मिलने के बाद हालांकि
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के संचालन को अनुमति दे दी गयी है, लेकिन यात्रियों की जो
संख्या महामारी से पूर्व हुआ करती थी,वो अब नहीं है।
भारत की सड़क परिवहन प्रणाली लंबे समय से अक्षमताओं जैसे उच्च भीड़भाड़ का स्तर, सीमित
मल्टीमॉडल एकीकरण, अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, खराब फुटपाथ, गैर-मौजूदा
साइकिल ट्रैक आदि से जूझ रही है तथा कोरोना संकट इस क्षेत्र के लिए कई नई चुनौतियां लेकर
आया है। महामारी ने कई लोगों के जीवन को रोक दिया है और लोगों को अपनी पसंद और
व्यवहार पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है।
भारत के सबसे अच्छे सार्वजनिक परिवहन उपक्रम गहरे वित्तीय संकट में है। तालाबंदी और ईंधन
की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण सार्वजनिक परिवहन उपक्रम करोड़ों रुपये का नुकसान झेल रहे
हैं। कई परिवहन ऑपरेटरों को अपनी सेवाओं को प्रतिबंधित करने और किराए में वृद्धि करने के
लिए मजबूर किया गया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Center for Science and
Environment) के एक पूर्व अनुमान के अनुसार, दिल्ली जैसे शहर में, 34 प्रतिशत यात्री गैर-
वातानुकूलित बस का मूल न्यूनतम किराया वहन नहीं कर सकते हैं। किराए में वृद्धि लोगों को
अत्यधिक कठोर यातायात परिस्थितियों में लंबी दूरी तक चलने और साइकिल चलाने के लिए
मजबूर करती है। केवल कम राजस्व ही ट्रांजिट ऑपरेटरों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है, बल्कि
ईंधन की कीमतों में वृद्धि और महामारी प्रोटोकॉल के कारण भी परिचालन बसों की लागत बढ़
गई है। बस और कार ऑपरेटर्स कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया (Bus and Car Operators
Confederation of India) द्वारा उपलब्ध कराए गए एक अनुमान के अनुसार, ट्रांजिट एजेंसियों
को हर महीने प्रति 100 बसों पर अतिरिक्त 17 लाख रुपये वहन करना पड़ता है, ताकि सुरक्षा
प्रोटोकॉल को पूरा किया जा सके। यह बदले में, व्यापार और लाखों नौकरियों के नुकसान का
कारण बन सकता है।
उपलब्ध अनुमानों के अनुसार, भारत में लगभग 3 करोड़ लोग बस सेवाओं से अपनी रोजी-रोटी
कमाते हैं और उनमें से 90 प्रतिशत निजी क्षेत्र से हैं। बस सेक्टर का अस्तित्व न केवल लाखों
नौकरियों और कमाई को बचाने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि जनता की आने-जाने की
मांग को पूरा करने के लिए और विशेष रूप से कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
लगभग 85-90 प्रतिशत शहरी यात्री शहरों में घूमने के लिए बसों पर निर्भर हैं। महामारी से
बचने के लिए लोगों द्वारा निजी वाहनों का उपयोग करना प्रभावी तो हो सकता है, लेकिन यह
भविष्य में अधिकांश भारतीय शहरों में भीड़भाड़ और प्रदूषण की समस्या को और भी गंभीर कर
सकता है।
गतिशीलता पैटर्न में बदलाव की संभावित प्रकृति को समझने और आने वाले दिनों में यात्रा के
स्थायी तरीकों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को उपयुक्त रणनीति तैयार करने की आवश्यकता
है। कोरोना महामारी के कारण भारत का बस सेक्टर अत्यधिक प्रभावित है तथा केंद्र को इसके
लिए प्रोत्साहन पैकेज प्रदान करना चाहिए और बस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए दीर्घकालिक
योजना तैयार करनी चाहिए।
इस समस्या का सामना करने का उदाहरण हम अन्य देशों से भी ले सकते हैं। जैसे कई देश
पहले ही सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को पुनर्जीवित करने के लिए बेलआउट पैकेज (bailout
package) की घोषणा कर चुके हैं। इंग्लैंड (England), संयुक्त राज्य अमेरिका (United
States), जर्मनी (Germany), हांगकांग (Hong Kong) और न्यूजीलैंड (New Zealand) ने
इस समस्या के समाधान के रूप में प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता को अपनाया है,जबकि सिंगापुर
(Singapore), चीन (China), कजाकिस्तान (Kazakhstan) और तुर्की (Turkey) अप्रत्यक्ष
वित्तीय सहायता जैसे कर छूट के साथ सामने आए हैं।
भारत में 20,000 नई बसें खरीदने के लिए 18,000 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधान को
छोड़कर, केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ भी घोषणा नहीं की है। कुछ
ही राज्यों ने एक निश्चित अवधि के लिए मोटर वाहन कर को हटाकर कुछ राहत प्रदान की है।
ट्रांजिट ऑपरेटरों के लिए बेलआउट पैकेज अपरिहार्य हो गए हैं। इसके अलावा, सरकार को कर
सुधार जैसे लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को संबोधित करना होगा और परिचालन व्यय को
सुरक्षित करने के लिए एक समर्पित फंड बनाना होगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/2Yr2zTM
https://bit.ly/38Dpey7
https://bit.ly/3n337cA
चित्र संदर्भ
1. ट्रेन में बैठे मजदूर की जाँच करते चिकित्सा कर्मी का का एक चित्रण (theigc)
2. मेट्रो में काफी कम संख्या में बैठे यात्रियों का एक चित्रण (railjournal)
3. रिक्शे में दवाई का छिड़काव करते सफाई कर्मियों का एक चित्रण (flickr)
4. बस में अकेले सफर करते यात्री का एक चित्रण (thethirdpole)
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