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भारत में मार्शल आर्ट के विभिन्न रूप मौजूद हैं, तथा कलारीपयट्टू (Kalaripayattu) उन्हीं में से एक है।
कलारीपयट्टू को केवल कलारी नाम से भी जाना जाता है, जिसकी उत्पत्ति भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट
पर स्थित राज्य केरल से हुई है।कलारीपयट्टू भारतीय मार्शल आर्ट के अंतर्गत अपने लंबे इतिहास के
लिए जाना जाता है। माना जाता है कि यह भारत में सबसे पुरानी जीवित मार्शल आर्ट है, जिसका
इतिहास 3,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है।
केरल के मालाबार क्षेत्र के चेकावर (Chekavar) के बारे में लिखे गए गाथागीतों के संग्रह वडक्कन
पट्टुकल (Vadakkan Pattukal) में कलारीपयट्टू का उल्लेख किया गया है। कलारीपयट्टू एक मार्शल
आर्ट है जिसे प्राचीन युद्धक्षेत्र के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें हथियार और जुझारू तकनीकें
शामिल होती हैं जो भारत के लिए अद्वितीय हैं।अधिकांश भारतीय मार्शल आर्ट की तरह, कलारीपयट्टू में
हिंदू धर्म से प्रेरित अनुष्ठान और दर्शन शामिल हैं। कलारीपयट्टू के अभ्यासकर्ताओं के पास मानव शरीर
पर दबाव बिंदुओं और आयुर्वेद और योग के ज्ञान को शामिल करने वाली उपचार तकनीकों का जटिल
ज्ञान है। कलारीपयट्टू को भारतीय गुरु-शिष्य प्रणाली के अनुसार सिखाया जाता है।यह दुनिया की कई
अन्य मार्शल आर्ट प्रणालियों से अलग है, जिसमें हथियार आधारित तकनीकों को पहले सिखाया जाता है,
तथा जिनमें हथियारों का उपयोग नहीं होता उन तकनीकों को बाद में सिखाया जाता है।कलारीपयट्टू में
योग परंपरा के तत्वों के साथ-साथ अंगुलियों की उन गतियों को भी शामिल किया जाता है, जिनका
अक्सर नाट नृत्यों में प्रयोग किया जाता है। कई दक्षिण एशियाई युद्ध शैली योग, नृत्य और प्रदर्शन
कलाओं से निकटता से जुड़ी हुई हैं।
कलारीपयट्टू में प्रशिक्षित योद्धा बहुत हल्के और बुनियादी शरीर कवच का उपयोग करते हैं,क्योंकि भारी
कवच में लचीलेपन और गतिशीलता को बनाए रखना मुश्किल होता था।केरल के समाज में महिलाओं ने
भी कलारीपयट्टू का प्रशिक्षण लिया और आज भी वे ऐसा करती हैं।कलारीपयट्टू के प्रारंभिक इतिहास की
बात करें तो किंवदंती के अनुसार, माना जाता है कि परशुराम ने शिव से यह कला सीखी थी, और केरल
को समुद्र तल से ऊपर लाने के तुरंत बाद केरल के मूल निवासियों को इसे सिखाया था। मलयालम में
एक गीत परशुराम द्वारा केरल के निर्माण को संदर्भित करता है, और उन्हें पूरे केरल में पहले108
कलारियों की स्थापना का श्रेय देता है। इसके अलावा कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संगम काल
की युद्ध तकनीक कलारीपयट्टू के शुरुआती अग्रदूत थे। कुछ सिद्धांत यह मानते हैं कि प्राचीन केरल में
रहने वाले कुछ आदिवासी समूहों ने समान समूहों से होने वाले खतरों से खुद का बचाव करने के लिए
कलारीपयट्टू की स्थापना की थी। मध्ययुगीन काल के दौरान, आधुनिक केरल कई रियासतों में विभाजित
था। उस समय झगड़े और द्वंद्व आम थे, और इसलिए कलारीपयट्टू का इस्तेमाल युद्ध और विवादों
को निपटाने के लिए किया जाता था।
किंतु केरल में यूरोपीय आक्रमणों के साथ कलारीपयट्टू ने अपना महत्व खोना शुरू कर दिया था।
कलारीपयट्टू नृत्य, योग, और एक योद्धा के शरीर की फिटनेस के लिए आवश्यक अनुशासन को एक
साथ लाता है, इसलिए इसे बहुत कठिन समझा जाता है। इसका जन्म भले ही वर्षों पहले प्रायद्वीपीय
भारत के दक्षिण क्षेत्र में हुआ हो, लेकिन वर्तमान समय में यह अन्य स्थानों में भी पहुंच चुका है, जहां
इसकी विभिन्न गतिविधियों को सम्पन्न किया जा रहा है। उदाहरण के लिए दिल्ली में 2008 में एक
कलारी केंद्रम की स्थापना की गयी थी।कलारीपयट्टू की दक्षिणी शैली, उत्तरी शैली की अपेक्षा अधिक
मार्शल है।इसकी गतिविधियां शेर, बाघ, हाथी, जंगली सूअर, सांप और मगरमच्छ जैसे जानवरों की ताकत
और शक्ति से प्रेरित हैं, तथा इसका अभ्यास सभी उम्र के लोग कर सकते हैं। सामाजिक जीवन में
परिवर्तन के साथ,कलारियों की स्थिति और उनका प्रभाव बदल गया है। आज, कलारीपयट्टू का मंचन
त्योहारों और अन्य अवसरों पर शो-पीस के रूप में किया जाता है। लोग कलारी उपचार (दवा की एक
प्रणाली के रूप में) और मर्मचिकित्सा (महत्वपूर्ण अंगों के उपचार) में अधिक रुचि रखते हैं। कलारीपयट्टू
में मेपयट्टू (शारीरिक व्यायाम), वादिपयट्टू (लाठी का उपयोग करके लड़ाई करना), वालपयट्टू (तलवारों
से लड़ाई करना) और वेरुमकैप्रयोग (बिना हथियार के व्यायाम करना) जैसी विभिन्न तकनीकें शामिल हैं।
कलारीपयट्टू के सबसे पहले चरण में शारीरिक व्यायाम शामिल होता है, जिसमें शरीर पर तेल की
मालिश भी की जाती है।यह इसलिए किया जाता है, ताकि शरीर को लड़ाई के लिए तैयार किया जा सके।
मौखिक निर्देशों के साथ शरीर की गतिविधियों का अभ्यास किया जाता है।
विभिन्न चरणों के दौरान 8
से 16 पयट्टू (लड़ाई) होते हैं। शारीरिक व्यायाम के बाद कोलपयट्टू होता है,जिसमें विभिन्न लंबाई की
छड़ियों का उपयोग किया जाता है। इसमें रक्षात्मक और आक्रामक तकनीक शामिल होती है। इस चरण
में भी मौखिक निर्देश दिए जाते हैं।अगले चरण में तलवार, ढाल, उरुमी (लचीली तलवार), कुंथम (भाला)
और कटारी (खंजर) का उपयोग शामिल है। इस अभ्यास में दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते हैं।
वेरुमकैप्रयोग एक ऐसी तकनीक है जिसमें हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस अभ्यास के
माध्यम से व्यक्ति को सशस्त्र विरोधियों से निपटने की इच्छा शक्ति और काया प्राप्त होती है। इस
तकनीक से एकाग्रता और लचीलेपन का विकास होता है। कलारीपयट्टू प्रशिक्षण में वायथारी (मौखिक
आदेश) सबसे महत्वपूर्ण चरण है। कलारी आसन वायथारी के माध्यम से कलाकारों की गतिविधियों को
नियंत्रित करता है।
कलारीपयट्टू की अपनी चिकित्सा पद्धति जो आयुर्वेद और कलारीचिकित्सा पर आधारित है,बहुत ही
अनोखी है। प्राचीन गुरुओं ने यह व्यवस्था तैयार की थी। इसमें मर्मचिकित्सा, थिरुमल और व्यायाम
चिकित्सा शामिल है। कलारीचिकित्सा में विभिन्न शाखाएँ हैं। मर्मचिकित्सा (महत्वपूर्ण अंगों का उपचार)
एक गुप्त प्रकृति रखता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि चिकित्सा का दुरूपयोग न हो। मर्म
चिकित्सा में हमें कलारिविद्या और औषधि का मिश्रण मिलता है। अपनी उपयोगिता के कारण वर्तमान
समय में कलारीचिकित्सा लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
संदर्भ:
https://bit.ly/38xCzb9
https://bit.ly/3BEtQR1
https://bit.ly/3mQtUsG
चित्र संदर्भ
1. ग्रामीण केरल में खुली हवा में तलवार के खिलाफ तलवार का प्रदर्शन करते दो कलारीपयट्टू तलवारबाजों का एक चित्रण (wikimedia)
2. दावं पेंच आजमाते कलारीपयट्टू खिलाडियों का एक चित्रण (flickr)
3. अपने हथियारों की पूजा करते कलारीपयट्टू खिलाडियों का एक चित्रण (wikimedia)
4. मालिश करते कलारीपयट्टू खिलाडियों का एक चित्रण (wikimedia)
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