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मैदानों से लेकर पहाड़ों तक, अमीर हो या गरीब सभी ने अपने जीवन में एक न एक बार जरूर ही
पतंगबाज़ी का मज़ा लिया होगा। हवा में हल्की पतंगों के साथ खेला जाने वाला यह खेल, न किसी
विशाल खुले मैदान की मांग करता है, और न ही इतना महंगा है की कोई व्यक्ति छोटी सी पतंग का
खर्च वहन न कर सके। आपने और हमने तो बचपन में कई बार, घरों में ही सुंदर पतंगे बनाई हैं,
जिन्होंने महंगी से महंगी पतंगों को भी प्रतिस्पर्धाओं में परास्त किया है। जितना रोमांचक
पतंगबाजी का खेल है, उतना ही विस्मयपूर्ण इसका इतिहास भी रहा है।
त्योहारों के अवसर पर भारत का आसमान रंग बिरंगी पतंगों से भर जाता है। इसके अलावा
पतंगबाज़ी को देशभक्ति की अभिव्यक्ति का रूप भी माना जाता है, और यहाँ यह एक नए मौसम
की शुरुआत का भी प्रतीक है। भारत में पतंग उड़ाने की परंपरा बेहद प्राचीन मानी जाती है।
ऐसी मान्यता है कि, भारत में इसे पहली बार प्रसिद्ध चीनी यात्री हुइन त्सांग (Huein Tsang) और
एफ हिएन (F Hien) द्वारा लाया गया था। कई वर्षों पूर्व आयताकार और सपाट चीनी पतंगें दूरियों
को मापने, संकेत देने और सैन्य अभियानों को संप्रेषित करने के लिए भी इस्तेमाल की जाती थीं।
भारत में पतंगो के आगमन के साथ ही इन्हे हिंदी में पतंग (लड़ाकू पतंग) नाम दिया गया। धीरे-धीरे
यहां भी पतंगबाज़ी और पतंग बनाने के कौशल दोनों का विकास हुआ।
प्राचीन काल की पतंगे भी कागज और नाज़ुक लकड़ी की छड़ियों से निर्मित होती थी। आज वे
लचीली सामग्री से निर्मित होती हैं, जो उन्हें अधिक लचीला बनाती हैं। ये आज की पतंगों की भांति
हीरे के आकार की होती थी, जिसमे एक धनुष के आकार की प्रतिच्छेदन रीढ़ होती है, जो पतंगों को
आकार देती है। वस्तुतः पतंग की उत्पत्ति की सटीक तारीख और समय ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा
माना जाता है कि, पतंगों को पहली बार लगभग दो हजार साल से भी पहले चीन में उड़ाया गया था।
एक किंवदंती बताती है कि, जब एक चीनी किसान ने अपनी टोपी को तेज हवा में उड़ने से बचाने के
लिए एक तार बांध दिया, तो वह एक सीमा तक हवा में उड़ गई। इस प्रकार पहली पतंग का जन्म
हुआ।
पतंग का सबसे पहला लिखित विवरण लगभग 200 ई.पू में मिलता है, जिसमें यह वर्णित है कि,
जब हान राजवंश के चीनी जनरल हान सीन ने एक शहर की दीवारों पर यह ज्ञात करने के लिए
पतंग उड़ाई कि, उसकी सेना को गढ़ों को पार करने के लिए कितनी दूर सुरंग बनानी होगी। इस दूरी
को जान कर उसके सैनिक शहर के अंदर पहुंच गए, उन्होंने अपने दुश्मन को चौंका दिया, और
विजयी भी हुए।
जिसके बाद पतंगबाज़ी चीन के व्यापारियों द्वारा कोरिया और पूरे एशिया सहित भारत में भी फैल
गई। प्रत्येक क्षेत्र ने सांस्कृतिक उद्द्येश्य के अनुरूप पतंग उड़ाने की एक विशिष्ट शैली को
विकसित किया। लगभग 7वीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पतंगें जापान लाई गईं, जिनका
उपयोग बुरी आत्माओं से बचने के लिए किया जाता था।
भारतीय पतंगबाजी का सबसे पहला प्रमाण मुगल काल के 1500 के आसपास के लघु चित्रों से
मिलता है, जिसमे एक कुशल पतंगबाज़ प्रेमी अपनी प्रेमिका को संदेश भेजने के लिए पतंग का
प्रयोग कर रहा है। मान्यता है की माइक्रोनेशिया (Micronesia) के लोग पत्तों की पतंगों का
इस्तेमाल पानी के ऊपर चारा ले जाने के लिए करते थे।
मार्को पोलो (Marco Polo) ने 13 वीं शताब्दी के अंत में पतंगों को यूरोप तक पहुँचाया। 16वीं और
17वीं सदी में नाविक जापान और मलेशिया से भी पतंगें लेकर आए थे। बेंजामिन फ्रैंकलिन
(Benjamin Franklin) और अलेक्जेंडर विल्सन (Alexander Wilson) जैसे महापुरुषों ने हवा
और मौसम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भी पतंगों का इस्तेमाल किया। सर जॉर्ज केली
(Sir George Kelly), सैमुअल लैंगली (Samuel Langley), अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander
Graham) और राइट ब्रदर्स (Wright brothers) ने पतंगों के साथ कई प्रयोग किये, जिसने हवाई
जहाज के विकास में भी बहुत बड़ा योगदान दिया।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, इतालवी और रूसी सेनाओं ने दुश्मन के अवलोकन
और संकेत के लिए पतंगों का इस्तेमाल किया। द्वितीय विश्व युद्ध में, अमेरिकी नौसेना ने पतंगों
पर कई उपयोग किए। हैरी शाऊल (Harry Saul's) की बैराज पतंग ने हवाई जहाजों को लक्ष्य से
बहुत नीचे उड़ने से भी रोका। समुद्र में भटके हुए पायलटों ने गिब्सन-गर्ल बॉक्स (gibson-girl
box) पतंग को हवा में उड़ाय, ताकि उन्हें ढूंढा जा सके।
तकनीक की सहायता से जैसे-जैसे हवाई तंत्र मजबूत हुआ पतंगों का इस्तेमाल भी सैन्य उद्देश्यों
या वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए कम और मनोरंजक उड़ान के लिए अधिक किया जाने लगा।
पिछले 50 वर्षों में पतंगबाजी में वृहद स्तर पर वृद्धि देखी गई है। हर गुजरते दिन के साथ पतंगे
और अधिक विकसित और लोकप्रिय हो रही हैं। आज 15 साल पहले की तुलना में, अधिक रंग और
पैटर्न के साथ पतंगों की कई किस्में उपलब्ध हैं।
गुजरते समय के साथ पतंगबाज़ी से जुड़े कई शब्द विशेषतौर पर भारत में बेहद लोकप्रिय हुए, और
बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गए। आपने भी इनमे से कई शब्द सुने होंगे जिनके विस्तारित अर्थ
नीचे दिए गए हैं।
पेंच (Pech) - दो पतंगों के बीच की प्रतिस्पर्धा को पेंच कहा जाता है। उपयोग: "हो जाए एक पेच?"
मांझा (Manjha) - पतंग की डोरी को मांझा कहा जाता है।
चरखा (Charkha) - एक पारंपरिक बांस का स्पूल जिस पर मांझा घिरा रहता है।
ढील (Dheel) - पतंग उड़ाते समय मांझे को बहार की तरफ छोड़ना ढील कहलाता है।
खैंचो (Khenchon) - प्रतिद्वंदी की पतंग एक काटने की तकनीक, जिसमें घर्षण पैदा करने के
लिए उग्र रूप से डोर को खींचना शामिल है। उदाहरण : "सही क्षण की तलाश करें और खैनच दे!"
पतंगबाजी (Patangbazi): पतंग लड़ाई की प्रतियोगिता पतंगबाज़ी कहलाती है।
काई पोह चे (Kai Po Che): यह पतगबाज़ी में प्रयुक्त सबसे आम शब्द है। यह एक गुजराती
वाक्यांश है, जिसका अर्थ है "मैंने काट दिया"। बेहद लोकप्रिय बॉलीवुड अभिनेता शुशांत सिंह
राजपूत की एक सुपरहिट फिल्म का नाम भी "(Kai Po Che)" है।
संदर्भ
https://bit.ly/3yaXqeB
https://bit.ly/2WfPoo2
https://bit.ly/3sK9PVZ
https://bit.ly/2WlB7FI
https://win.gs/3gtZsQV
https://en.wikipedia.org/wiki/Bo_Kata
चित्र संदर्भ
1. योकैची जायंट काइट फेस्टिवल (The Yokaichi Giant Kite Festival) का एक चित्रण (wikimedia)
2. वियतनामी सोलर के अनुसार बांसुरी की पतंग मौसम की भविष्यवाणी करती है जिसका एक चित्रण (flickr)
3. मुग़ल महिलाओं द्वारा पतंगबाज़ी का एक चित्रण (flickr)
4. ब्रिटिश सेना युद्ध पतंग का एक चित्रण (wikimedia)
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