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लखनऊ से कुछ ही दुरी पर राजगीर‚ जिसे “राजगृह” पहाड़ियों के रूप में भी जाना जाता है‚
बिहार राज्य के मध्य क्षेत्रों में राजगीर शहर के पास स्थित है। यह रत्नागिरी‚ विपुलाचल‚
वैभवगिरी‚ सोंगिरी और उदयगिरि नामक पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह बौद्ध‚ हिंदू और
जैन धर्मों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये पहाड़ियां बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों में पवित्र
मानी जाती हैं क्योंकि उनका संबंध धर्मों के ऐतिहासिक संस्थापकों गौतम बुद्ध और महावीर से
है। इसलिए ये पहाड़ियां अक्सर जैनियों और हिंदुओं के लिए समान रूप से धार्मिक तीर्थस्थल के
रूप में रही हैं। राजगीर पहाड़ियों के आसपास कई पर्यटन स्थल फैले हुए हैं। इन पर्वतमालाओं के
बीच महाभारत‚ गौतम बुद्ध‚ महावीर‚ मौर्य और गुप्त काल के कई ऐतिहासिक स्थान हैं।
पहाड़ियों में दो समानांतर लकीरें हैं जो लगभग 65 किमी तक फैली हुई हैं। पहाड़ियाँ अपने
उच्चतम बिंदु पर 388 मीटर की ऊँचाई तक उठती हैं‚ लेकिन अधिकांश पहाड़ियाँ लगभग 300
मीटर ऊँची ही हैं। क्योंकि यह स्थान दो समानांतर लकीरों से सुरक्षित था इसलिए अजातशत्रु ने
5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में इसे राजगृह नाम देते हुए पूर्वी भारतीय साम्राज्य मगध की राजधानी
बना दिया। अजातशत्रु‚ पूर्वी भारत में मगध के हर्यंक वंश के राजा बिंबिसार का पुत्र था‚ तथा
महावीर व गौतम बुद्ध दोनों के समकालीन था। अजातशत्रु ने अपने पिता राजा बिंबिसार को
कैद करके सिंहासन पर कब्जा कर लिया। बिंबिसार को स्वयं गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म में
परिवर्तित किया था। उन्होंने अनुरोध किया कि उनका कारागार एक छोटी पहाड़ी के पास बनाया
जाए ताकि वह वहां से सुबह श्याम बुद्ध को गुजरते हुए देख सकें। राजा बिंबिसार ने पहाड़ी तक
जाने के लिए एक सेतु का निर्माण करवाया था। पहाड़ी की तलहटी में‚ चिकित्सक जीवक द्वारा
बुद्ध को अर्पित किया गया आम का बाग ‘अमरवाना’ था। जो कभी मठ हुआ करता था उसके
अवशेष आज भी यहां देखने को मिलते हैं। राजगीर वह स्थान भी है जहां बुद्ध के दो प्रमुख
शिष्यों सारिपुत्र और मौद्गल्यायन ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था‚ और जहां बुद्ध ने एक जंगली
हाथी को वश में किया था। राजगीर में‚ राजा बिंबिसार ने बुद्ध के अनुयायियों को वेलुवन बांस
ग्रोव (Veluvana Bamboo Grove) की पेशकश की। यह स्थल एक मठवासी व्यवस्था के लिए
आदर्श माना जाता था‚ जो शहर के नजदीक नहीं था‚ यह स्थान शांत था तथा यहां हल्की हवा
व ठंडे पानी की भरपुरता थी। इस प्रकार यह ध्यान के अभ्यास के लिए उपयुक्त था। और यहाँ
शाक्यमुनि ने अपने ज्ञानोदय के बाद बरसात का पहला एकांतवास किया था। बुद्ध के जीवन
की अंतिम यात्रा भी राजगीर से ही शुरू हुई थी जो कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के साथ समाप्त
हुई थी।
राजगीर में बुद्ध ने अपने ज्ञानोदय के सोलह वर्ष बाद‚ 5‚000 भिक्षुओं‚ भिक्षुणियों और सामान्य
जनों की सभा के साथ-साथ असंख्य बोधिसत्वों की सभा के लिए धर्म चक्र के दूसरे मोड़ की
स्थापना की। बौद्ध धर्म के अनुसार‚ चीजों की आवश्यक असत्यता को समझना तथा सीखना
आध्यात्मिक मार्ग का एक अभिन्न अंग है। हमारी आत्माओं का ज्ञान और दुनिया का ज्ञान
परस्पर ज्ञानवर्धक और सशक्त है। दोनों का अंतिम उद्देश्य दुखों का नाश करना है। आधुनिक
समय में आगंतुक‚ राजगीर में बौद्ध तीर्थ तथा शांति शिवालय की यात्रा के लिए पहाड़ी की
चोटी पर एक रोपवे का अनुसरण कर सकते हैं‚ ऐसा माना जाता है कि बुद्ध ने यहां कमल सूत्र
का प्रचार किया था। दर्शक पहाड़ी से उतरते समय गिद्ध की चोटी देख सकते हैं‚ जहां के बारे
में कहा जाता है कि बुद्ध ने यहां सबसे ज्यादा उपदेश दिये थे। राजगीर राजमार्ग के साथ 27
मील तक फैली पहाड़ियों पर घुमावदार चट्टाने हैं‚ जो एक प्राचीन क्षेत्रीय रक्षा के अवशेषों को
दर्शाती हैं। पहाड़ी की चोटी पर एक जापानी बौद्ध समूह द्वारा निर्मित एक विशाल स्तूप है।
यहां बुद्ध की एक सोने का पानी चढ़ी हुई मूर्ति है‚ जो शाक्यमुनि के जन्म‚ ज्ञानोदय‚ उपदेश
और निर्वाण का स्मरण कराती है। पास ही में एक जापानी मंदिर (Japanese Temple) भी है।
गिद्ध शिखर‚ जिसे पवित्र ईगल शिखर (Holy Eagle Peak) या गढ़रकूट के रूप में भी जाना
जाता है‚ राजगीर में बुद्ध का पसंदीदा स्थान था। यह उनके कई प्रवचनों का स्थल था।
इसका
नाम गिद्ध शिखर इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक बैठे हुए गिद्ध जैसा दिखता है जिसके पंख मुड़े
हुए होते हैं। महाबोधि मंदिर के बाद गिद्ध शिखर‚ बौद्ध धर्म का दूसरा सबसे पवित्र स्थान
माना जाता है क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ बुद्ध ने एकांतवास‚ ध्यान साधना तथा कई सारे
प्रवचनों को पढ़ाने में बहुत समय बिताया है। कई बौद्ध अनुयायी‚ बुद्ध और उनके निकटतम
शिष्यों के समान कदम उठाने के लिए‚ यहां पैदल चढ़ाई करना पसंद करते हैं। जब चीनी
(Chinese) तीर्थयात्री गिद्ध की चोटी पर गए तो उन्होंने शिखर को हरा भरा और खाली पाया।
फा हिएन (Fa Hien) ने एक गुफा का उल्लेख किया था तथा ह्वेन त्सांग (Hsuan Chwang)
ने इसके थोड़ा नीचे एक विशाल कक्ष का उल्लेख किया है‚ जहां‚ कहा जाता है कि बुद्ध ने
बैठकर उपदेश दिया था। गुफा से पहले रास्तों में बुद्धों के चलने और बैठने के कई स्थान हैं‚
और एक स्तूप भी है‚ जहाँ सधर्मपुंडरिका सूत्र पढ़ाया जाता था। गिद्ध चोटी के शीर्ष के पास
सड़क के किनारे विभिन्न आकारों की कुछ गुफाएँ हैं। इन गुफाओं के प्रवेश द्वार पर कुछ
चट्टानें सोने के पत्तों से सुशोभित हैं‚ और बड़ी गुफाओं के अंदर जली हुई धूप या मोमबत्तियों के
अवशेष भी देखे गये हैं। माना जाता है कि बुद्ध के कुछ मुख्य शिष्य इन गुफाओं में वापस आ
गए थे।
संदर्भ:
https://bit.ly/2VVN6tq
https://bit.ly/3CZZg5Q
https://bit.ly/2VWErrc
https://bit.ly/2VXjLPz
चित्र संदर्भ
1. राजगीर पहाड़ियों का एक चित्रण (wikimedia)
2. राजगीर पहाड़ियों पर पवित्र बौद्ध ध्वज का एक चित्रण (wikimedia)
3. गिद्ध शिखर, राजगीर, भारत, छोटा ढांचा (छोटा कमरा) उस स्थान को निर्दिष्ट करता है जहां बुद्ध गिद्ध शिखर पर रहते हुए निवास करते थे, जिसका एक चित्रण (wikimedia)
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