वर्तमान समय में कोरोना महामारी पूरे विश्व में फैली हुई है, जिसे रोकने के लिए कई उपाय किए जा रहे
हैं। इन्हीं उपायों में से एक तालाबंदी भी है, जिसने विभिन्न क्षेत्रों में अपना नकारात्मक प्रभाव डाला
है।कृषि एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जिसने कोरोना वायरस रोग की पहली लहर के दौरान, 2020-21 में स्थिर
कीमतों पर 3.4 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की, हालांकि कोरोना महामारी ने कृषि में कुछ
गतिविधियों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है। प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चलता है कि प्रवासी
श्रमिकों की अनुपलब्धता ने कुछ कटाई गतिविधियों को बाधित किया है, विशेष रूप से उत्तर पश्चिम
भारत में जहां गेहूं और दालों की कटाई की जा रही है। परिवहन समस्याओं और अन्य मुद्दों के कारण
आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ है। गेहूं, सब्जियों और अन्य फसलों की कीमतों में गिरावट आई
है, फिर भी उपभोक्ता अक्सर अधिक भुगतान कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान होटल, रेस्टोरेंट, मिठाई की दुकानें और चाय की
दुकानें बंद होने से पहले से ही दूध की बिक्री पर असर पड़ रहा है। किसानों द्वारा फसल ऋण अप्रैल
और मई के बीच चुकाया जाता है और एक नया ऋण प्रदान किया जाता है। किंतु जिन किसानों पर
पहले से ही ऋण मौजूद है, उनके लिए ऋण चुकाना और फिर नया ऋण प्राप्त करना एक प्रमुख समस्या
बन गया है।छोटे किसान अक्सर कटाई के उपकरण किराए पर लेते हैं क्योंकि यह इसे खरीदने से सस्ता
है, किंतु लॉकडाउन ने श्रम और उपकरण दोनों की कमी पैदा की है, जिससे किसानों के खेती के कार्य में
बाधा उत्पन्न हुई है।
भले ही सरकार द्वारा इस समय आर्थिक पैकेज की भी घोषणा की गयी,किंतु इस राहत का मुख्य केंद्र
केवल वे किसान थे, जिनकी अपनी भूमि थी।यह समय आर्थिक अनिश्चितता से पूर्ण है, जिसके कारण
भूमिहीन श्रमिकों को आय का अत्यधिक नुकसान झेलना पड़ा है।परिणामस्वरूप किसानों को आय के
नुकसान से निपटने के लिए अपने भोजन के सेवन को सीमित करने जैसे कठोर उपाय अपनाने पड़े।
2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, भारत की 51% ग्रामीण आबादी भूमिहीन
है, और यह आबादी कोरोना महामारी के कारण विशेष रूप से प्रभावित हुई है। भले ही सरकार द्वारा
कृषि गतिविधियों को तालाबंदी से कुछ छूट दी गई थी, लेकिन यह किसानों को रोजगार दिलाने के लिए
पर्याप्त नहीं थी। तालाबंदी के बाद फसल की कटाई के बाद उसे बेचने में किसानों को अनेकों कठिनाईयों
का सामना करना पड़ा।अपने खेतों की फसल काटने के लिए किसान अन्य मजदूरों को काम पर रखते थे,
लेकिन तालाबंदी के चलते श्रमिकों के उपलब्ध न होने से उन्होंने अपनी फसल खुद काटने का निर्णय
लिया। तालाबंदी के कारण फसल पैटर्न में कुछ बड़े बदलाव भी हुए, जिसने वाणिज्यिक फसलों की कीमत
में वृद्धि की। परिणामस्वरूप खाद्य आपूर्ति की गतिशीलता में काफी बदलाव आया। जब परिवहन
प्रतिबंधित था, तब आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह प्रभावित हुई। जैसे वाहन चालकों ने उपज से भरे ट्रकों को
अंतरराज्यीय राजमार्गों के बीच में ही छोड़ दिया तथा उपज की बिक्री की व्यवस्था न होने के कारण
बाजार में आपूर्ति की कमी होने लगी।
पहली लहर की तरह दूसरी लहर में भी किसानों के नुकसान का अंदेशा लगाया गया था, किंतु नीति
आयोग के अनुसार दूसरी लहर ने भारत के कृषि क्षेत्र को अत्यधिक प्रभावित नहीं किया है। नीति आयोग
के सदस्यों के अनुसार ग्रामीण भारत ने महामारी का सबसे बुरा दौर तब देखा, जब कृषि गतिविधियां
कम से कम होती हैं। इस समय कृषि गतिविधियां विशेष रूप से भूमि आधारित गतिविधियाँ कम से कम
होती हैं। कृषि गतिविधियां मार्च के महीने या अप्रैल के मध्य में चरम पर होती है, जिसके बाद यह काफी
कम हो जाती हैं और मानसून के आगमन के साथ फिर से चरम पर पहुंच जाती हैं। इसलिए दूसरी लहर
में महामारी का कृषि पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।
कोरोना महामारी के इस कठिन समय में किसानों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा अनेकों प्रयास
किए गए जिनमें 1700 अरब रुपए का राहत पैकेज शामिल है। इसके आलावा अतिरिक्त अनाज आवंटन,
अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को नकद रुपये और भोजन सहायता आदि की भी घोषणा की गई। साथ
ही प्रधान मंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति के लिए राहत (PM-CARES) कोष भी
बनाया गया। कमजोर आबादी की देखभाल के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की घोषणा की गई।
कोरोना महामारी के जोखिमों को कम करने के लिए व्यावसायिक नेतृत्व को जुटाने और कोविड-19
प्रतिक्रिया कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, सतत विकास के लिए विश्व व्यापार परिषद ने खाद्य प्रणाली
सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला परियोजना शुरू की है।इन सभी उपायों
के साथ सरकार को कृषि भंडारण और उसके संरक्षण में निवेश बढ़ाना चाहिए ताकि कृषि वस्तुओं की
मांग को बनाए रखा जा सके। सरकार को कृषि से कच्चा माल प्राप्त करने वाले छोटे और मध्यम
उद्यमों पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से चलायी जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/3jDS3Q6
https://bit.ly/3xuIurv
https://bit.ly/2VzcyoL
https://bit.ly/3lCPb8F
https://bit.ly/2U6mqG4
चित्र संदर्भ
1. भारतीय कृषि में पारंपरिक तथा आधुनिक कृषि तकनीकों का मिश्रण शामिल है। भारत के कुछ हिस्सों में, खेत जोतने के लिए मवेशियों का पारंपरिक उपयोग उपयोग में रहता है। पारंपरिक खेतों में प्रति व्यक्ति उत्पादकता और किसान आय सबसे कम है। हल जोतते भारतीय किसान का एक चित्रण (wikimedia)
2. कोरोनावायरस संकट के बीच खाना बर्बाद हो रहा है जिसको दर्शाता एक चित्रण (politico)
3. महामारी के दौरान किसान बीमार हो रहे हैं, पीक प्रोडक्शन सीजन (peak production season) शुरू होते ही कोरोनावायरस भी फैल रहा है, फिर भी सुरक्षा उपकरण पहनकर खेतों में काम करते किसानों का एक चित्रण (insurancejournal)
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