भारत के शहर चमक उठे है भित्तिचित्र और सड़क कला (Graffiti) से

लखनऊ

 07-08-2021 10:29 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

भारतीय चित्रकला का एक बहुत लंबा इतिहास रहा है‚ हालांकि जलवायु परिस्थितियों के कारण‚ चित्रकला के बहुत कम प्रारंभिक उदाहरण बचे हैं। प्राचीनतम भारतीय चित्र प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र (Rock Painting)थे‚ जैसे कि‚ भीमबेटका शैल आश्रयों जैसे स्थानों में पाए जाने वाले पेट्रोग्लिफ्स (petroglyphs)। भीमबेटका शैलाश्रयों में पाए गए कुछ पाषाण युग के शैल चित्र लगभग10‚000 वर्ष पुराने हैं। भारत के प्राचीन‚ बौद्ध और हिंदू साहित्य में महलों और भवनों को चित्रों से सजाए जाने के कई उल्लेख हैं‚ लेकिन अजंता की गुफाओं में पहली और पांचवीं शताब्दी के अवशेष सबसे महत्वपूर्ण हैं‚ जो आज भी सुरक्षित हैं।
इस अवधि में‚ हस्तलिपियों में भी छोटे पैमाने पर चित्रकारी का अभ्यास किया गया था‚ हालांकि सबसे प्रारंभिक अस्तित्व मध्ययुगीन काल से हैं। भारतीय चित्रों को मोटे तौर पर भित्तिचित्र‚ लघुचित्र और कपड़े पर चित्रकारी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। अजंता की गुफाओं और कैलाशनाथ मंदिर की तरह‚ भित्तिचित्र ठोस संरचनाओं की दीवारों पर किए गए बड़े कार्य हैं। कागज और कपड़े जैसी खराब होने वाली सामग्री पर व किताबों या एल्बमों (albums)के लिए लघु चित्रों को बहुत छोटे पैमाने पर निष्पादित किया जाता है। फ्रेस्को (fresco)जैसी तकनीकों में‚ भित्तिचित्रों के निशान भारतीय रॉक-कट वास्तुकला (Indian rock-cut architecture)के साथ कई स्थलों पर देखने को मिलते हैं‚ जो कम से कम 2‚000साल पुराने हैं।
भित्तिचित्र और सड़क कला‚ व्यक्तिवादी प्रकृति के माध्यम से सांस्कृतिक महत्व का भी प्रतीक माने जाते हैं‚ हालांकि चित्रकारी के माध्यम से सार्वजनिक स्थानों को सुशोभित करने और सुधारने की क्षमता‚ अक्सर सांसारिक सड़कों को दर्शनीय स्थलों में बदल देती है। एक दशक से भी कम समय में‚ भित्तिचित्र कलाकारों की संख्या एकाएक वृद्धि हुई है।
भारतीय भित्तिचित्रों का इतिहास‚ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 8वीं से 10वीं शताब्दी ईस्वी तक‚ प्राचीन और प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में शुरू हुआ था। भारत में 20 से अधिक स्थान हैं जिनमें इस अवधि के भित्तिचित्र पाए जाते हैं‚ मुख्य रूप से प्राकृतिक गुफाएँ और रॉक-कट कक्ष (rock- cut chambers)। इस समय की सर्वोच्च उपलब्धियां अजंता की गुफाएं (caves of Ajanta)‚ बाग (Bagh)‚ सिट्टानवसल (Sittanavasal)‚ अरमामलाई गुफा (तमिलनाडु) (Armamalai Cave (Tamil Nadu))‚ रावण छाया रॉक शेल्टर (Ravana Chhaya rock shelter)‚ एलोरा गुफाओं (Ellora Caves)में कैलाशनाथ मंदिर (Kailasanatha temple)हैं। इस अवधि के भित्ति चित्र मुख्य रूप से बौद्ध (Buddhist)‚ जैन (Jain)औरहिंदू (Hindu)धर्मों के धार्मिक प्रसंगों को दर्शाते हैं। हालांकि ऐसे स्थान भी हैं जहां लगभग 7वीं शताब्दी ईस्वी में सांसारिक परिसर को सजाने के लिए चित्रकारी की गई थी‚ जैसे जोगीमारा गुफा (Jogimara Cave)में प्राचीन नाटकीय शाला‚ संभावित शाही शिकार लॉज (royal hunting lodge)और रावण छाया रॉक शेल्टर (Ravan Chhaya rock shelter)। एक दशक से भी कम समय में‚ देश में सड़क कला एक रोष का विषय बन गया है। भित्तिचित्र कलाकारों की बढ़तीसंख्या से कई ने अपने स्थापत्य के लिए‚ पश्चिमी समकक्षों (Western counterparts)के प्रतिद्वंद्वियों का अनुसरण किया है। भित्तिचित्र कला न केवल उम्र के साथ आती हैं‚ बल्कि यह एक संपन्न पेशा भी बन गया है‚ जिसमें डाकू (Daku)और ज़ीन (Zine)जैसे कलाकार‚ ऑनलाइन मंचों और कला जगत में उप- किंवदंति पंथ के दिग्गज बन गए हैं। उन्हें अक्सर बड़े कॉरपोरेट घरानों (corporate houses)द्वारा शीर्ष डॉलर (dollar)की कीमतों पर असाधारण भित्ति चित्र बनाने के लिए कमीशन भी दिया जाता है।
कोविड-19महामारी (COVID-19 pandemic)ने‚ भित्ति कलाकारों के करियर में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में काम किया है। महामारी के कारण‚ यात्रा पर प्रतिबंध के साथ‚ विदेशी कलाकार यात्रा नहीं कर सकते थे। इसलिए शहर के कलाकारों ने दीवारों को सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing)के संदेशों से रंग दिया था। दिल्ली की पहली स्ट्रीट आर्ट गैलरी (first street art gallery)‚ लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट (Lodhi Art District)‚ को महामारी के बीच कुछ नए भित्ति चित्र मिले हैं। जबकि पिछले तीन वर्षों में‚ जिले में भित्ति चित्र बनाने के लिए दुनिया भर के कलाकार अपने भारतीय समकक्षों के साथ शामिल हुए हैं। महामारी के कारण‚ भित्तिचित्र कलाकारों ने खुद को स्वीकृत दीवारों तक सीमाबद्ध कर लिया और लोगों तक‚ अपनी कला के माध्यम से मास्क पहनने के आग्रह का संदेश दिया।
हनीफ कुरैशी‚ अखलाक अहमद‚ योगेश सैनी और मुनीर बुखारी कुछ स्ट्रीट कलाकार हैं‚ जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से‚ या अपनी टीम के साथ मिलकर‚ महामारी-थीम (pandemic-themed)वाले संदेशों के साथ-साथ मास्क में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं (frontline workers)के भित्तिचित्र भी चित्रित किए हैं। हनीफ कुरैशी ने अपनी टीम के साथ दिल्ली‚ मुंबई‚ चेन्नई‚ पटना और कई अन्य शहरों में कोविड-थीम (COVID-themed) वाले भित्तिचित्र बनाए हैं।
गुड़गांव‚ नोएडा और गाजियाबाद में भी कलाकारों ने फ्लाईओवर (flyovers)के खंभों पर भी ऐसे ही भित्तिचित्र बनाए हैं। नोएडा में इन खंभों को रंगने वाले राजू कहते हैं की हमने जुलाई में अपना काम शुरू किया और कई इलाकों में इसे पूरा किया। दिल्ली स्ट्रीट आर्ट (Delhi Streer Art)के संस्थापक योगेश सैनी कहते हैं‚ हमने खान मार्केट (Khan market)‚ दक्षिणी दिल्ली और कई अन्य स्थानों पर भित्तिचित्रों को चित्रित किया है। सभी कलाकार मास्क (masks)लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing)बनाए रखते हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि इनमें से ज्यादातर स्थानों में लोग मदद के लिए हमारे साथ शामिल भी हुए। भित्तिचित्र एक विवादास्पद विषय है। अधिकांश देशों में‚ संपत्ति के मालिकों और नागरिक अधिकारियों द्वारा अनुमति के बिना संपत्ति को चिह्नित करने या चित्रित करने को विकृति और बर्बरता के रूप में माना जाता है‚ जो एक दंडनीय अपराध है। भित्तिचित्रों को औद्योगिक राष्ट्रों के कई शहरों के लिए एक बढ़ती हुई शहरी "समस्या" के रूप में देखा गया है‚ जो 1970 के दशक की शुरुआत में न्यूयॉर्क सिटी मेट्रो सिस्टम (New York City Metro System)से संयुक्त राज्य अमेरिका (United States)‚ यूरोप (Europe)और अन्य विश्व क्षेत्रों के बाकी हिस्सों में फैल गया था। हालांकि‚ अमेरिका (U.S.)जैसे देशों में भित्तिचित्रों का एक लंबा और अधिक राजनीतिक रूप से विवादास्पद इतिहास रहा है‚ जहां इसकी उत्पत्ति हुई थी‚ क्योंकि सार्वजनिक दीवारों को प्राचीन माना जाता है और इसका उपयोग पोस्टर (posters)या साइनेज (signage)के लिए नहीं किया जा सकता है।
सदी के अंत में‚ भित्तिचित्रों ने नस्लवाद के खिलाफ विरोध और गुस्से की अभिव्यक्ति के रूप में जड़ें जमा ली थी। इसलिए भित्तिचित्र और सड़क कला मुख्य रूप से एक स्थापना-विरोधी अधिनियम था‚ जो कि बिना अनुमति के और सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति पर किए जाते थे। जिसे बर्बरता के रूप में माना जाता था। जिसने संग्रहालयों और कला दीर्घाओं की उच्च कला के विपरीत‚ भित्तिचित्रों "कला-विरोधी" के रूप मे ं स्थान दिया।
भारत में‚ सड़क कला और भित्तिचित्र एक अलग ही सांस्कृतिक अर्थ लेते हैं। हम पहले से ही विकृतीकरण के आदी हैं‚ दीवारों पर पान के दाग और राजनीतिक दलों के छीलने वाले स्टिकर (peeling stickers)को 'स्टिक नो बिल' (Stick No Bills)कहने वाले संकेतों पर चिपका हुआ देखकर। सड़क के किनारे की दीवारें अक्सर सार्वजनिक मूत्रालय का काम करती हैं। इस तरह के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में बर्बरता कानूनों को लागू करने की सरासर अव्यवहारिकता के कारण‚ सार्वजनिक स्थानों का यह लापरवाह उपयोग‚ अर्ध-कानूनी स्थिति पैदा करता है।फलस्वरूप‚ भित्तिचित्रों के लिए यह एक सदमे और परेशानी का तत्व बनकर रह गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3xpNGgm
https://bit.ly/3A7M50e
https://bit.ly/3yr2Rar
https://bit.ly/37n3HJa
https://bit.ly/3ClX7Rp
https://bit.ly/3jncfpb

चित्र संदर्भ

1. भारतीय भित्तिचित्र का एक चित्रण (wikimedia)
2. अजंता की गुफाएं - दीवार पर पेंटिंग का एक चित्रण (flickr)
3. मास्क पहनने हेतु जागरूक करती मोनालिसा, दीवार पर पेंटिंग का एक चित्रण (flickr)
4. दीवारों के स्तंभों पर कलाकार "स्मग" (Smaug) द्वारा द फाइव फेसेस (The Five Faces) का एक चित्रण (flickr)



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