भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में हाथियों का एक विशेष स्थान रहा है। प्राचीन काल में उनका
उपयोग राजघरानों के सदस्यों के लिए परिवहन के साधन के रूप में तथा लड़ाई लड़ने के लिए
भी किया जाता था। हालांकि‚सबसे महत्वपूर्ण‚भगवान गणेश के रूप में हाथी का स्वरूप है। देश
में 70प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए‚हाथियों का धार्मिक महत्व है।
पिछले एक दशक में भारत में जंगली हाथियों की संख्या 10 लाख से गिरकर लगभग 27‚000
ही रह गयी है, जो कि एक बहुत ही निराशाजनक स्थिति है। शोध के अनुसार‚उनकी आबादी में लगभग
98प्रतिशत तक एकाएक गिरावट आई है। भारत में हाथियों को उच्च स्तर की सुरक्षा प्राप्त है।
हाथियों को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम‚1972 (Wildlife Protection Act of India‚
1972)में अनुसूची-प्रथमप्रजाति के रूप में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त है‚जबकि दुर्भाग्य से धरातल पर
स्थिति पूरी तरह से एक अलग तस्वीर पेश करती है।
भारत‚ दुनिया में एशियाई हाथियों की 50प्रतिशत से अधिक आबादी का घर है‚जो इसे इन
प्रजातियों का अंतिम गढ़ बनाता है। हालाँकि‚उनकी स्थिति बहुत गंभीर प्रतीत होती है‚क्योंकि वे
एक बड़े खतरे का सामना कर रहे हैं। जैसे कि‚उनकी वन सीमाओं का सिमटना‚निवास स्थानों
का विखंडन‚उनके शरीर के अंगों के लिए अवैध शिकार व कारावास‚और मानवजनित दबाव।
हाथियों जैसे बड़े शाकाहारी जीवों के लिए जो भोजन के रूप में अपने शरीर के द्रव्यमान का 5-
10प्रतिशत के बराबर उपभोग करते हैं‚उन्हें अपने झुंडों को बनाए रखने के लिए जंगलों के बड़े
क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। हालाँकि‚सिकुड़ते जंगलों का अर्थ है भोजन की उपलब्धता में
कमी‚जो हाथियों को वन भूमि से बाहर फसल की भूमि की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता
है। इस प्रकार‚वे फसल के सेवन के लिए खेतों में घुस जाते हैं‚व लोगों द्वारा लगाई गई फसल
को नष्ट कर देते हैं। जो उन्हें लोगों के साथ संघर्ष के लिए मजबूर करता है।
आजकल जंगली हाथियों की मौत और बंदी हाथियों के साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में पढ़ना आम
बात हो गई है। 1995में स्थापित वन्यजीव एसओएस (Wildlife SOS)ने भारत में प्रजातियों को
बचाने के लिए 2010में हाथियों के साथ काम करना शुरू किया। पूरे भारत में इस परियोजना के
प्रारंभिक प्रयास‚बंदी हाथियों को बचाने के लिए कार्य कर रहे थे‚जो अपने स्वामीयों द्वारा गंभीर
दुर्व्यवहार और क्रूरता का सामना कर रहे थे।
लखनऊ का चिड़ियाघर‚शहर के केंद्र में स्थित है जो 72एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस
चिड़ियाघर में कई प्रकार के जानवर पाए जाते हैं‚जिसमें हाथी भी शामिल हैं। सीजेडए सर्कुलर
(CZA circular)में कहा गया है कि हाथियों को चलने के लिए बहुत अधिक जगह की आवश्यकता
होती है क्योंकि वे बड़े शाकाहारी होते हैं‚ और चिड़ियाघर में स्थितियां उनके अस्तित्व के लिए
उपयुक्त नहीं हो सकती हैं। इसलिए हाथियों को जंगल भेजा जा रहा है।
चिड़ियाघर के एक
अधिकारी ने पीटीआई (PTI)को बताया कि चिड़ियाघर से दो हाथियों सुमित (Sumit)और
जयमाला (Jaimala)को या तो राष्ट्रीय उद्यानों‚अभयारण्यों‚पुनर्वास शिविरों या बाघ अभयारण्यों में
वापस भेज दिया जाएगा। एक अनुमान के अनुसार‚मार्च 2009तक देश भर के 26चिड़ियाघरों और
16सर्कसों (circuses)में कुल 140हाथी ही बचे हैं।
अफ्रीका (Africa)के मोज़ाम्बिक (Mozambique)में गोरोंगोसा नेशनल पार्क (Gorongosa National
Park)में कई हाथियों में एक विशिष्ट विशेषता देखने को मिली‚वहां के हाथियों के पास दांत नहीं
है। आमतौर पर‚2से 6प्रतिशत हाथी बिना दांत के पैदा होते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि
अवैध शिकार की भारी मौजूदगी ने यहां के हाथियों को बिना दांत के विकसित होने के लिए
प्रेरित किया है‚इसलिए‚मानव शिकारियों के पास उन्हें मारने और हाथी दांत के लिए‚उनके दांतों
को चुराने का भी कोई कारण नहीं है। गोरोंगोसा नेशनल पार्क (Gorongosa National Park)में
हाथियों का अध्ययन करने वाले एक शोधकर्ता रयान लॉन्ग (Ryan Long)कहते हैं‚यह प्राकृतिक
चयन नहीं है‚जो हाथियों को बिना दांत के विकसित कर रहा है। यह एक बनावटी चयन है‚जो
दशकों के अवैध शिकार के कारण हो रहा है।
गृहयुद्ध‚1977-1992के दौरान गोरोंगोसा‚ मोज़ाम्बिक एक क्रूर वध का स्थल था। जहां की सेना
ने‚हथियारों और गोला-बारूद सहित सामान खरीदने और मुनाफा कमाने के लिए‚हाथीदांत के लिए
पार्क के अधिकांश निवासी हाथियों को मार डाला।बिना दांत वाली मादा हाथियों को निशाना नहीं
बनाया गया। वे प्रजनन के लिए जीवित रहे और अपने आनुवंशिक प्रकृति के साथ पारित
हुए‚जिससे आबादी में बिना दांत वाले हाथियों की समग्र दर में वृद्धि हुई।
बोत्सवाना (Botswana)में बड़ी संख्या में हाथी मर रहे हैं। जिसका पता वैज्ञानिक भी नहीं लगा
पाए। अफ्रीकी (African)हाथी उत्तरी बोत्सवाना (northern Botswana)में मोरेमी गेम रिजर्व
(Moremi Game Reserve)के माध्यम से चलते हैं‚जहां हाथियों के बीच‚रहस्यमई मौतों की दूसरी
लहर चल रही है। 2021के पहले तीन महीनों में ही 39हाथियों ने दम तोड़ दिया। ये रहस्यमई
मौतें देश के उत्तरी हिस्से में‚ओकावांगो डेल्टा (Okavango Delta)के एक क्षेत्र से लगभग
100किलोमीटर दूर‚मोरेमी गेम रिजर्व (Moremi Game Reserve)में हुईं‚जहां 2020में मई से जून के
महीने तक लगभग 350अफ्रीकी हाथियों की मौत हुयी। सरकार हाथियों की मौत के कारणों पर
मिश्रित संदेश भेजती है‚इसलिए वैज्ञानिक पूरी तरह से जांच की मांग कर रहे हैं। जहां पहले
एंथ्रेक्स (Anthrax)और जीवाणु संक्रमण (bacterial infections)को हाथियों की मौत का कारण
बताया जा रहा था‚वहीं बोत्सवाना के वन्यजीव और राष्ट्रीय उद्यान विभाग ने 24मार्च को एक
समाचार विज्ञप्ति में सूचना देकर एंथ्रेक्स और जीवाणु संक्रमण से इंकार कर दिया गया था‚और
कहा की आगे प्रयोगशाला विश्लेषण जारी है।
पिछले साल के बड़े पैमाने पर मरने वाले क्षेत्रों का सुदूर संवेदन (Remote
sensing)‚साइनोबैक्टीरिया सिद्धांत (cyanobacteria theory)का समर्थन करता है। शोधकर्ताओं ने
नवाचार(Innovation)में 28मई को ऑनलाइन रिपोर्ट (online report)दी‚जिसमें बताया गया था कि
मार्च से जुलाई 2020तक‚जल स्रोतों के सिकुड़ने के कारण‚साइनोबैक्टीरिया
(cyanobacteria)बहुतायत में लगातार वृद्धि हुई। जलवायु परिवर्तन के साथ‚पानी के शरीर गर्म
हो जाते हैं और विषैले साइनोबैक्टीरिया (toxic cyanobacteria)पनपने लगते हैं।
एक और साक्ष्य‚एक “रोगज़नक़”(pathogen)की ओर भी इशारा करता है। लाहौर‚पाकिस्तान में पशु
चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (University of Veterinary and Animal Sciences)के
एक पशु चिकित्सा वैज्ञानिक‚ शाहन अज़ीम कहते हैं‚2021में हुई हाथीयों की मृत्यु फिर से
हाथियों के लिए असामान्य है‚जैसा कि 2020में हुआ था। यदि एंथ्रेक्स (anthrax)को दोष दिया
जाए‚तो इससे अन्य जानवर भी प्रभावित होते‚लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। और शवों पर खून
बहने के संकेत भी नहीं थे। हाथियों के शरीर उनके दांतों के साथ बरकरार थे‚इसलिए अवैध
शिकार को भी खारिज कर दिया गया था।
अफ़्रीकन जर्नल ऑफ़ वाइल्डलाइफ़ रिसर्च (African
Journal of Wildlife Research)में अज़ीम (Azeem)और उनके सहयोगियों ने 5अगस्त‚2020को
ऑनलाइन रिपोर्ट की‚जिसमें उन्होंने बताया कि 2020मे हुई हाथियों की मृत्यु की जांच से पता
चलता है कि इसका कारण एक “रोगज़नक़”(pathogen)हो सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/37czqNg
https://bit.ly/3jm95lE
https://bbc.in/2VoFqzJ
https://bit.ly/2VaIAaK
https://on.natgeo.com/3xi50DF
https://cbsn.ws/3rPIelE
https://bit.ly/2V8kFc1
चित्र संदर्भ
1. केरल भारत - काम पर एक हाथी 3600 रुपये प्रति दिन कमाता है जिसका एक चित्रण (flickr)
2. शिकार किये गए हाथी का एक चित्रण (flickr)
3. सर्कस में हाथियों की कलाकारी का एक चित्रण (youtube)
4. आकस्मिक रूप से मृत हाथी का एक चित्रण (istock)
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