शहरी नीति और प्रोग्रामिंग में अक्सर 'ईज ऑफ लिविंग'(Ease of Living) शब्द का व्यापक रूप से
उपयोग किया जाता है, लेकिन इस शब्द की कोई मानक परिभाषा नहीं है। कुछ लोगों के लिए यह
मूलभूत रूप से भौतिक सुविधाओं जैसे जल आपूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, पार्क और हरित स्थान आदि
से जुड़ा हुआ है, तो कुछ के लिए यह सांस्कृतिक पेशकशों, करियर के अवसरों, आर्थिक गतिशीलता या
सुरक्षा से संबंधित है।
हर वर्ष भारत सरकार का आवास और शहरी मामलों से सम्बंधित मंत्रालय, इंडियन ईज ऑफ लिविंग
इंडेक्स (Indian Ease of Living Index) की घोषणा करता है, जो इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंट (Economist
Intelligent) यूनिट द्वारा सालाना प्रकाशित होने वाली ग्लोबल लिवेबिलिटी रैंकिंग (Global Liveability
Ranking) के समान है। यह इस बात का आकलन करता है,कि दुनिया भर में कौन से स्थान रहने के
लिए सबसे अच्छे हैं, तथा कौन से स्थान सबसे खराब हैं।यह दुनिया भर के 140 शहरों में व्यक्तिगत
जीवन शैली की मात्रा को निर्धारित करता है। प्रत्येक शहर को स्थिरता, स्वास्थ्य देखभाल, संस्कृति और
पर्यावरण, और शिक्षा और बुनियादी ढांचे में लगभग 30 मात्रात्मक और गुणात्मक कारकों के लिए एक
अंक दिया जाता है।
वर्ष 2019 में इस इंडेक्स में ऑस्ट्रिया (Austria) की राजधानी वियना (Vienna)शीर्ष पर थी, जबकि
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया (Australia), कनाडा (Canada) और न्यूजीलैंड (New Zealand) के शहरों ने इस
सूचकांक में शीर्ष 10 पदों पर अपना दबदबा बनाया, जो यहां वस्तुओं, सेवाओं, बुनियादी ढांचे और
व्यक्तिगत सुरक्षा तक आसान पहुंच को दर्शाता है। वैश्विक रैंकिंग सूची में शामिल 140 शहरों में से नई
दिल्ली और मुंबई क्रमश: 118वें और 119वें स्थान पर थे। यह रैंकिंग शहरों में अच्छे सार्वजनिक
परिवहन, खुले स्थानों तक पहुंच, आर्थिक अवसरों और बुनियादी सुविधाओं की सेवाओं तक पहुंच जैसी
सुविधाओं में बढ़ोतरी कर नागरिकों के स्वास्थ्य और भलाई को बढ़ावा दे सकती है,इसलिए भारतीय शहरों
में रहने की सुगमता को मापने के लिए, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने एक ढांचा विकसित
किया है,जो चार स्तंभों में विकास के परिणामों का मूल्यांकन करता है, जिनमें जीवन की गुणवत्ता,
आर्थिक-क्षमता, स्थिरता और लचीलापन शामिल है।
2021 रैंकिंग के शीर्ष 10 शहर
इसमें 14 श्रेणियों के तहत 49 संकेतकों को शामिल
किया गया है।इसके अलावा, इसमें व्यापक नागरिक धारणा सर्वेक्षण के माध्यम से शहर प्रशासन द्वारा
प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर लोगों के विचारों की भी शामिल किया जाता है। इस प्रकार ईज ऑफ
लिविंग इंडेक्स एक मूल्यांकन उपकरण है,जो जीवन की गुणवत्ता और शहरी विकास के लिए विभिन्न
पहलों के प्रभाव का मूल्यांकन करता है।रहने की उपयुक्त स्थिति की गणना करने के लिए आवास और
शहरी मामलों के मंत्रालय ने इज ऑफ लिविंग इंडेक्स के साथ म्यूनिसिपल परफॉर्मेंस इंडेक्स (Municipal
Performance Index) की भी घोषणा की है। यह सेवाओं, वित्त, प्रौद्योगिकी के संदर्भ में स्थानीय
सरकारी प्रथाओं की जांच करना चाहता है। इससे शहरी प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा
मिलने की उम्मीद है।मंत्रालय द्वारा विकसित ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स का प्रयास है, कि भारतीय शहरों
में जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए कार्यों को उत्प्रेरित किया जाए,सतत विकास लक्ष्यों सहित व्यापक
विकास परिणामों को ट्रैक किया जाए तथा जिन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है, वहां नागरिकों और
शहरी निर्णय निर्माताओं के साथ संवाद के आधार के रूप में कार्य किया जाए। जबकि इज ऑफ लिविंग
सूचकांक शहरों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए एक अच्छा तुलनात्मक बेंचमार्क प्रदान
करता है, वहीं शहरी भारत को स्थानीय क्षेत्र की कार्य योजना तैयार करने और शहरी विकास प्रक्रिया में
नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए वार्ड या जोनल स्तर पर बहुत अधिक अलग-अलग
सूचकांकों की आवश्यकता है।
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा घोषित किए गए 2018 के 'ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स' में
पुणे को देश के सबसे अधिक रहने योग्य शहर के रूप में स्थान दिया गया।पुणे अन्य उप-सूचकांकों में
भी शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के रूप में उभरा, जिसके बाद नवी मुंबई, ग्रेटर मुंबई तिरुपति और चंडीगढ़ ने अपना
स्थान बनाया।उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में से किसी का कोई भी शहर शीर्ष
10 में जगह नहीं बना पाया।कुल 111 शहरों का आकलन करने वाला नया सूचकांक शहरी विकास के
चार स्तंभों (भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक) पर आधारितहै, जो 15 श्रेणियों में 78 संकेतकों
का उपयोग करता है (जैसे शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, किफायती आवास
और परिवहन और गतिशीलता)। जहां पुणे ने 'ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स' में शीर्ष स्थान हासिल किया
वहीं,हमारा शहर रामपुर इस इंडेक्स में रहने के लिए सबसे खराब स्थान के रूप में उभरा, हालांकि 2020
की सूची में यह 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में कुछ स्थान ऊपर आ गया है।
तकनीकी क्षमता और आर्थिक क्षमता दो ऐसे कारक थे,जिनके कारण रामपुर ने इंडेक्स में सबसे कम
स्कोर किया।रामपुर में नागरिक बुनियादी ढांचे की गहरी समझ यह बताती है कि शहर में न तो बच्चों के
लिए स्कूल के कमरे हैं और न ही कचरा प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था है।
हालत यह है कि शहर के
अस्पताल भी चिकित्सा आपात स्थिति से निपटने के लिए सुसज्जित नहीं हैं और सार्वजनिक परिवहन
जैसे बसों की कमी स्थानीय लोगों के लिए अभिशाप बन गई है जो जिला प्रशासन के खोखले दावों से
खुद को ठगा हुआ महसूस करती है।लगभग 3.25 लाख की आबादी वाला यह शहर अपनी नवाबी चमक
खो चुका है और आज देश के सबसे खराब शहर के रूप में सामने आया है। एक आधिकारिक रिपोर्ट के
मुताबिक, शहर से रोजाना 165 टन गंदगी और कचरा निकलता है, जो 20 ट्रकों के बराबर होता है।
स्थानीय लोग इस कचरे को या तो शहर के खुले नालों और गलियों में फेंक देते या तो कहीं और।सफाई
कर्मचारियों की भारी कमी के कारण अनेकों समस्याएँ खड़ी हो गई हैं क्योंकि कचरा निपटान प्रणाली ठीक
से काम नहीं कर रही है। शहर के सरकारी अस्पताल में भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है।मरीजों की संख्या
लगभग 4000 प्रति दिन है, जबकि उनकी देखभाल के लिए सिर्फ कुछ ही डॉक्टर हैं।सरकारी स्कूलों में
पर्याप्त कक्षाएँ नहीं हैं इसलिए दो कक्षाओं के छात्रों को एक ही कमरे में बैठाया जाता है। इन सभी
असुविधाओं के कारण ही रामपुर रहने के लिए एक अनुपयुक्त शहर के रूप में उभरा है।शहर को रहने
लायक एक उपयुक्त स्थान बनाने के लिए इन सभी समस्याओं पर ध्यान देने तथा उचित कारवाई करने
की तत्काल आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3rIZAQW
https://bit.ly/3lfuEa2
https://bit.ly/3fg4QGZ
https://bit.ly/3idvQIT
https://bit.ly/2V4zyMh
https://bit.ly/3BZ3r15
https://bit.ly/3zP93t1
https://bit.ly/2WtNP5q
चित्र संदर्भ
1. रामपुर जामा मस्जिद का एक चित्रण (prarang)
2. 2021 रैंकिंग के शीर्ष 10 शहरों का एक चित्रण (wikimedia)
3. कूड़े के ढेर का एक चित्रण (flickr)
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