अधिकांश भारतीय लोग, समोसे को एक साधारण स्ट्रीट स्नैक (street snack) के रूप में लेते हैं, लेकिन
यह उससे कहीं अधिक है। यह एक ऐतिहासिक प्रतीक के साथ-साथ मनोरम प्रमाण भी है कि
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में कुछ भी नया नहीं है, हर चीज किसी न किसी रूप में इतिहास में अस्तित्व
में थी।व्यापक रूप से इसे एक सर्वोत्कृष्ट भारतीय व्यंजन माना जाता है, कम ही लोग जानते हैं कि
समोसा भारतीय मूल का नहीं है।मैदे या आटे के खोल के अंदर मसाले से भरा और डीप फ्राई (deep
fried)किया हुआ, जिसे हम सोचते थे कि ये भारत से संबंधित है, वास्तव में यह मध्य एशिया का
एक स्वादिष्ट व्यंजन है जो यात्रियों के साथ विश्व के विभिन्न हिस्से में पहुंचा।
दक्षिण एशियाई समोसे का मूल मध्य एशियाई और मध्य पूर्वी हिस्सा है।भारतीय उपमहाद्वीप में
मध्य एशियाई तुर्क राजवंशों के आक्रमण के बाद समोसे का आगमन हुआ।समोसे के प्रणेता (संबुसज
(Sanbusaj) के रूप में) की प्रशंसा फारसी कवि इशाक अल-मौसिली की नौवीं शताब्दी की कविता में
की गयी है।इसकी विधि का वर्णन 10 वीं-13 वीं शताब्दी की अरब कुकरी किताबों में मिलता है,
जिन्हें क्रमश: सानबुसाक (Sanbusak), संबुसाक (sanbusaq), और संबुसाज (sanbusaj) के रूप में
उल्लेखित किया गया है, सभी फारसी (Persian) शब्द संबोसाग (sanbosag) से प्राप्त होते हैं।ईरान
(Iran) में, यह 16 वीं शताब्दी तक लोकप्रिय था, लेकिन 20 वीं शताब्दी तक, इसकी लोकप्रियता कुछ
प्रांतों (जैसे लारेस्तान के सांबुस (Sambusas of Larestan)) तक ही सीमित थी। ईरानी इतिहासकार
अबुलफ़ज़ल बेहाक़ी (995-1077) ने अपने इतिहास, तारीख-ए-बेहगी में इसका उल्लेख किया है।
मध्य एशियाई संसा (samsa ) को भारतीय उपमहाद्वीप में 13वीं या 14वीं शताब्दी में मध्य एशिया के
व्यापारियों द्वारा पेश किया गया था।दिल्ली सल्तनत के एक विद्वान और शाही कवि, अमीर खुसरो
(1253-1325) ने लगभग 1300 इस्वी में लिखा था कि राजकुमारों और रईसों ने "मांस, घी, प्याज
आदि से तैयार समोसे" का आनंद लिया।इब्न बतूता, एक 14वीं सदी का यात्री और अन्वेषक, मुहम्मद
बिन तुगलक के दरबार में भोजन का वर्णन करता है, जहाँ पुलाव के, तीसरे कोर्स (course) से पहले
समुषक या सांबुसक परोसा जाता है, जो मांस, बादाम, पिस्ता, अखरोट और मसालों से भरा एक छोटा
समोसा था।
मध्य भारत में मालवा सल्तनत के शासक घियाथ शाह के लिए शुरू की गई मध्ययुगीन भारतीय
रसोई की किताब निमतनामा-ए-नसीरुद्दीन-शाही में समोसा बनाने की कला का उल्लेख किया गया
है। 16वीं सदी के मुगल दस्तावेज़ आइन-ए-अकबरी में कुट्टब के लिए नुस्खा का उल्लेख है, जिसमें
यह कहा गया है,कि "हिंदुस्तान के लोग सनबसाह कहते हैं"।
इन समोसों में भारतीयों ने अपने मसालों को पेश किया जिसमें मुख्यत: धनिया, काली मिर्च, जीरा,
अदरक आदि शामिल हैं। इसके अंदर मांस के स्थान पर सब्जियां भरा जाने लगा. इन दिनों
अधिकांश समोसे आलू से भरे हुए होते हैं जिसमें हरी मिर्च का जायका जोड़ा जाता है, जिसे16 वीं
शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा पेश किया गया था। भारत आगमन के बाद अंग्रेज़ों को भी
समोसे से प्यार हो गया और वे अपने औपनिवेशिक साम्राज्य के कोने-कोने में इस स्वादिष्ट व्यंजन
को अपने साथ ले गए।मध्य पूर्व में, अर्धवृत्ताकार समोसे का संस्करण तैयार किया गया जिसमें
पनीर, प्याज, जड़ी-बूटी, मसाले और कीमा बनाया हुआ मांस भरा जाता है।
पुर्तगाल (Portugal) और ब्राजील (Brazil ) में मांस से भरे चामुका (chamucas) और पेस्टिस (pasteis)
बनाए जाते हैं; उज़्बेकिस्तान (Uzbekistan) और कज़ाखस्तान (Kazakhstan) में उईघुर-शैली (Uyghur-
style) के समोसे बनाए जाते हैं जिनमें मोटे आटे के गोले अंदर मटन भरा जाता है; अफ्रीका (Africa) के
पूर्वी हॉर्न (Eastern Horn) में रमज़ान, ईद और मेस्केल (Mesqel) के स्थानीय उत्सवों में सांबुसा
(sambusa) तैयार किए जाते हैं।भारत में ही इसकी कई किस्में हैं, उन सभी को चटनी के साथ परोसा
जाता है।
त्रिकोणीय और पूर्ण-आकार के समोसे बांग्लादेश में लोकप्रिय स्नैक्स हैं।नेपाल के पूर्वी क्षेत्र में समोसे
को सिंगदा कहा जाता है ; बाकी क्षेत्र में इसे समोसा कहते हैं। भारत की तरह, यह नेपाली व्यंजनों में
एक बहुत ही लोकप्रिय नाश्ता है।पूरे पाकिस्तान में विभिन्न प्रकार के समोसे उपलब्ध हैं। सामान्य
तौर पर, दक्षिणी सिंध प्रांत और पूर्वी पंजाब, विशेष रूप से लाहौर शहर में बिकने वाली अधिकांश
समोसा किस्में मसालेदार होती हैं और इनमें ज्यादातर सब्जी या आलू भरे होते हैं। हालांकि, देश के
पश्चिम और उत्तर में बेचे जाने वाले समोसे में ज्यादातर कीमा भरा हुआ होता है और यह सब्जियों
की तुलना में कम मसालेदार होता है।मालदीव में बने समोसे की किस्मों को बाजीया (Bajiyaa) के
नाम से जाना जाता है। वे मछली और प्याज के मिश्रण से भरे हुए होते हैं।
समोसे के इसी तरह के स्नैक्स (Snacks) और वेरिएंट (Variants) कई अन्य देशों में पाए जाते हैं। वे
या तो दक्षिण एशियाई सोमासा से प्राप्त हुए हैं या मध्य पूर्व में उत्पन्न मध्यकालीन संस्करण से
प्राप्त हुए हैं।
समोसे का यह सफर बड़ा निराला रहा है। समोसे की उम्र भले ही बढ़ती गई पर पिछले एक हजार
साल में उसकी तिकोनी आकृति में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ। आज समोसा भले ही शाकाहारी-
मांसाहारी दोनों रूप में उपलब्ध है पर आलू के समोसों का कोई सानी नहीं है और यही सबसे ज्यादा
पसंद भी किया जाता है। इसके बाद पनीर एवं मेवे वाले समोसे पसंद किये जाते हैं। अब तो मीठे
समोसे भी बाजार में उपलब्ध हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3iY8ZA9
https://bit.ly/3l4pqO9
https://bit.ly/37896ng
चित्र संदर्भ
1. आलू समोसे का एक चित्रण (unsplash)
2. करी गांव - छोले के साथ आलू समोसा का एक चित्रण (flickr)
3. भारत में शाकाहारी तथा मांसाहारी समोसे बेचती महिला का एक चित्रण (youtube)
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