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वर्तमान समय में भले ही हमारे देश की आबादी के बीच क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल बना हुआ है,
लेकिन क्रिकेट में हमारे देश की सफलता से पहले, एक खेल ऐसा था, जिस पर हमारा दबदबा था तथा
कोई भी उस खेल में हमारी बराबरी नहीं कर सकता था। जी हां, हम बात कर रहे हैं हॉकी की। हॉकी में
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए भारत को प्राप्त आठ ओलंपिक स्वर्ण पदक यह साबित करते हैं, कि हम इस
खेल में अजेय थे। 1928 से लेकर 1956 तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण जीते। इसके बाद 1964 और
1980 में इस सूची में 2 और पदक शामिल हुए। लेकिन अब स्थिति ऐसी बन गयी है, कि हमें विश्व
कप जैसे टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करना पड़ता है, क्योंकि इस खेल में हमारा स्तर गिर गया है।
लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ तथा हमारे स्तर में गिरावट की शुरूआत कब होने
लगी? तो चलिए जानते हैं, कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। यूं तो हॉकी में प्रदर्शन में गिरावट के अनेकों
कारण हैं, लेकिन इसका मुख्य कारण एस्ट्रो टर्फ (AstroTurf) को माना जाता है। एस्ट्रो टर्फ एक कृत्रिम
मैदान है, जो प्राकृतिक घास के मैदान की तरह दिखता है। यह मैदान सिंथेटिक फाइबर का बना है।
एस्ट्रो टर्फ का उपयोग अक्सर उन खेलों के लिए किया जाता है, जिन्हें मूल रूप से घास पर खेला जाता
था। यूं तो ऐतिहासिक रूप से, हॉकी को प्राकृतिक घास के मैदान पर खेला जाता था, लेकिन एस्ट्रो टर्फ
या कृत्रिम मैदान के आगमन से हॉकी के विभिन्न खेलों को एस्ट्रो टर्फ पर खेला जा रहा है। कृत्रिम पिचों
का उपयोग 1970 के दशक के दौरान शुरू किया गया था और 1976 में प्रमुख प्रतियोगिताओं के लिए
इसके इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया गया था। मॉन्ट्रियल (Montreal) में 1976 का ओलंपिक ऐसा
पहला खेल था जिसमें हॉकी में एस्ट्रो टर्फ का इस्तेमाल किया गया। 1928 से हॉकी खेलने के बाद यह
पहला ऐसा मौका था, जब भारत ने एक कांस्य भी नहीं जीता।
भारत में भी कुछ एस्ट्रो टर्फ मैदान हैं, जो कि महंगे तो हैं ही साथ ही इन पर खेलना भी बहुत मुश्किल
है। प्राकृतिक घास के मैदान पर हॉकी खेलने से कुशल भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी आसानी से गेंद
को फंसा सकते थे और उसे हल्के स्पर्श से या उछालकर आगे ले जा सकते थे। किंतु एस्ट्रो टर्फ तकनीकी
कौशल पर आधारित नहीं है, जिससे भारतीय खिलाड़ियों का इस पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना
मुश्किल हो जाता है। वहीं हम यूरोपीय (European) और ऑस्ट्रेलियाई (Australian) हॉकी खिलाड़ियों की
बात करें तो एस्ट्रो टर्फ उनकी शारीरिकता के अनुकूल है, जो उनके खेल को अपेक्षाकृत आसान बना देता
है। चूंकि हमारे अधिकांश खिलाड़ी घास पर खेलते हुए बड़े हुए, तथा उन्हें इस पर ही अपना अभ्यास
करने की आदत थी, इसलिए कृत्रिम टर्फ से समायोजन बनाना उनके लिए कठिन था। परिणामस्वरूप
हॉकी के स्तर में गिरावट आने लगी और क्रिकेट की लोकप्रियता ने गति पकड़नी शुरू की।
भारत के कई लोगों को यह लग सकता है कि भारत हॉकी का "आध्यात्मिक" घर है, लेकिन अगर हम
हॉकी के "वास्तविक" घर की बात करें तो, यह नीदरलैंड (Netherlands) में स्थानांतरित हो गया है (कम
से कम उस समय से जब उन्होंने 1998 में यूट्रेक्ट (Utrecht) में हॉकी विश्व कप की मेजबानी की, और
पुरुष खिताब भी जीता। इसके अलावा महिला टीम भी फाइनल में पहुंची)। अगले दशक में यहां हॉकी के
विकास में और भी तीव्रता आयी।
1898 में गठित कोने क्लिज्के निदरलैंड हॉकी बॉन्ड (Koninklijke Nederlandse Hockey Bond), जो
फील्ड हॉकी के लिए देश का आधिकारिक शासी निकाय है, के अनुसार विभिन्न क्लबों में पंजीकृत
125,000 खिलाड़ियों से, संख्या बढ़कर लगभग 225,000 हुई और अब इनकी संख्या लगभग 240,000
है। घरेलू प्रतियोगिताओं का सबसे व्यापक नेटवर्क भी यहां फैला हुआ है। आकार के मामले में देंखे तो,
नीदरलैंड का आकार 41,500 वर्ग किलोमीटर है, जो कि हरियाणा से छोटा है। लेकिन लगभग 165 लाख
की आबादी (हरियाणा की आबादी 250 लाख से अधिक है) के साथ लगभग एक चौथाई आबादी 35,000
स्पोर्ट्स क्लबों में से एक की सदस्य है। यहां 15 वर्ष से अधिक की लगभग दो-तिहाई आबादी खेल में
संलग्न है। नीदरलैंड में फुटबॉल सबसे लोकप्रिय खेल है, जबकि लोकप्रियता के मामले में हॉकी दूसरे
स्थान पर है। नीदरलैंड की पुरूष टीम ने दो ओलंपिक स्वर्ण और दो रजत, तीन विश्व कप स्वर्ण और दो
रजत, आठ चैंपियंस ट्रॉफी खिताब और सात सिल्वर जीते हैं। इसके अलावा यहां हॉकी के खेल में
महिलाओं की भी सक्रिय भूमिका है। यहां की महिला टीम ने तीन ओलंपिक स्वर्ण और एक रजत, 12
संस्करणों में छह विश्व कप खिताब और चार रजत, छह चैंपियंस ट्रॉफी खिताब आदि जीते हैं। 2013 में,
उन्होंने इनोग्रल विश्व लीग (inaugural World League) भी जीती थी।
भारत में अधिकांश स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एस्ट्रो टर्फ नहीं है। हॉकी में अपना करियर
बनाने के इच्छुक बच्चों को यदि अन्य देशों की तुलना में सभी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, तो वे हॉकी
के क्षेत्र में चमत्कार कर सकते हैं। भारत में अब हालात सुधरने लगे हैं जिसका मतलब है, बच्चों और
युवाओं को अधिक सुविधाएं प्राप्त हो पाएंगी तथा खेल में वे अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे। वर्तमान समय में
भारत में भी कुछ कृत्रिम टर्फ वाले स्टेडियम मौजूद हैं, जिनमें से एक स्टेडियम लखनऊ में भी है, तथा
यहां पर विश्व स्तर की हॉकी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।चूंकि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है,
इसलिए देश में हॉकी स्टेडियमों को विश्व स्तरीय आवश्यकताओं के साथ अद्यतन रखने के लिए
जबरदस्त प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में कुछ हॉकी स्टेडियम सिंथेटिक टर्फ और दर्शकों के अनुकूल
सुविधाओं के अनुसार बनाए गये हैं। भारत के कुछ प्रमुख हॉकी मैदानों में मेयर राधाकृष्णन स्टेडियम,
एग्मोर (चेन्नई), मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम (दिल्ली), गच्चीबौली स्टेडियम (हैदराबाद), के डी सिंह
बाबू स्टेडियम (लखनऊ), सुरजीत हॉकी स्टेडियम (जालंधर) शामिल हैं। लखनऊ के केडी सिंह बाबू
स्टेडियम, का नाम प्रसिद्ध भारतीय हॉकी खिलाड़ी 'कुंवर दिग्विजय सिंह बाबू' की याद में रखा गया था।
यह स्टेडियम प्रमुख भारतीय हॉकी स्टेडियमों में से एक है और भारतीय हॉकी टूर्नामेंट के कई यादगार
टूर्नामेंट यहां सम्पन्न हुए हैं। हॉकी के प्रति लोगों का रूझान बढ़ाने और खेल प्रदर्शन को अच्छा करने हेतु
उत्तर प्रदेश राज्य, हॉकी स्टेडियमों को एस्ट्रो टर्फ स्टेडियमों में बदलने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।
राज्य सरकार दो हॉकी छात्रावासों को झांसी और रायबरेली जैसे नए स्थानों पर स्थानांतरित कर रही है,
जहां एस्ट्रो टर्फ जैसी सुविधाएं मौजूद हैं। इससे हॉस्टलर्स को आधुनिक हॉकी की मांग के अनुसार खेल
का अभ्यास करने में मदद मिलेगी।
संदर्भ:
https://bit.ly/3BChvxw
https://bit.ly/3xW2HHR
https://bit.ly/3BqY1f5
https://bit.ly/3iBNxRk
https://bit.ly/3eDzeKY
https://bit.ly/3rqNL1Q
https://bit.ly/3hVdHQ8
चित्र संदर्भ
1. 1952 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का एक चित्रण (flickr)
2. सरगोधा में स्थित एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम का एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय महिला हॉकी टीम का एक चित्रण (newsnation)