ऐसे अनेकों उपन्यास मौजूद हैं, जो पढ़ने वाले के मन और मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ते हैं, तथा
ऐसा ही एक उर्दू उपन्यास मिर्जा हादी रुसवा का भी है, जिसे "उमराव जान अदा" के नाम से जाना जाता
है,जिसे पहली बार 1899 में प्रकाशित किया गया था। यह एक साहित्यिक क्लासिक उपन्यास है, जिसके
आधार पर एक बॉलीवुड फिल्म का निर्माण भी किया गया, जिसने इसे अत्यधिक प्रसिद्ध बनाया। इस
उपन्यास में उन्नीसवीं सदी के लखनऊ से उमराव जान अदा नामक एक तवायफ, जो कि एक कवि भी
थी,की कहानी को चित्रित किया गया है।
इस उपन्यास के लेखक मिर्जा मुहम्मद हादी रुसवा एक उर्दू कवि तथा कथाओं, नाटकों और ग्रंथों (मुख्य
रूप से धर्म, दर्शन और खगोल विज्ञान पर) के लेखक थे। उन्होंने कई वर्षों तक भाषा मामलों पर अवध
के सलाहकार बोर्ड में नवाब की सेवा की, तथा उर्दू, यूनानी और अंग्रेजी सहित अनेकों भाषाएं बोलीं।
उनका प्रसिद्ध उर्दू उपन्यास, उमराव जान अदा, कई लोगों द्वारा पहला उर्दू उपन्यास माना जाता है।
उपन्यास के अनुसार, उमराव जान की कहानी खुद उमराव जान के द्वारा लेखक को सुनाई गई थी, जब
वह लखनऊ में एक मुशायरे (कविता सभा) के दौरान उनसे मिलने आए थे। उनकी कविताएं सुनने पर,
मुंशी अहमद के साथ लेखक ने उमराव जान को उसकी जीवनी की कहानी उनके साथ साझा करने को
कहा।
पुस्तक को पहली बार गुलाब मुंशी एंड संस प्रेस, लखनऊ ने 1899 में प्रकाशित किया था।
उपन्यास 19वीं शताब्दी के मध्य के लखनऊ, इसके पतनशील समाज के विस्तृत चित्रण के लिए जाना
जाता है। साथ ही यह उस युग के नैतिक पाखंड का भी वर्णन करता है, जहां उमराव जान एक ऐसा
प्रतीक बन गयी थी, जिसने लंबे समय तक कई लोगों को आकर्षित किया, लेकिन वे केवल उसका शोषण
करना चाहते थे। उपन्यास के अनुसार उमराव जान का जन्म फैजाबाद के एक मामूली परिवार में अमीरन
(Amiran) के रूप में हुआ। अपराधी दिलावर खान के जेल से रिहा होने के बाद, वह उसके पिता से
बदला लेने का फैसला करता है क्योंकि उसके पिता ने अदालत में उसके खिलाफ गवाही दी थी।
खान,अमीरन का अपहरण कर लेता है और उसे लखनऊ में बेचने का फैसला करता है। उसे एक और
लड़की, राम दाई के साथ कैद किया जाता है, लेकिन दोनों तब अलग हो जाते हैं, जब दिलावर खान
अमीरन को लखनऊ ले जाता है, तथा वहां उसे एक कोठे की मुखिया तवायफ खानम जान को 150
रुपये में बेच देता है। उसका नाम बदलकर उमराव रखा जाता है, तथा शास्त्रीय संगीत और नृत्य का
अध्ययन कराना शुरू कर दिया जाता है। अन्य प्रशिक्षु तवायफों के साथ उसे उर्दू और फारसी दोनों में
पढ़ना और लिखना सिखाया जाता है। जैसे-जैसे उमराव बड़ी होती है, वह विलासिता, संगीत और कविता
की संस्कृति से घिरती चली जाती है। उमराव जान की मुलाकात एक सुंदर और धनी नवाब सुल्तान से
होती है,तथा दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं, लेकिन दिलावर खान उसके जीवन में वापस आ
जाता है। सुल्तान के साथ अनेकों तर्क-वितर्क के बाद सुल्तान उसे गोली मार देता है, जिससे दिलावर
खान घायल हो जाता है। नवाब का अब कोठे में आना बंद हो जाता है, तथा गौहर मिर्जा की मदद से
उमराव उससे गुपचुप तरीके से मिलती है। जैसा कि उमराव जान नवाब सुल्तान से मिलना जारी रखती
है और अन्य ग्राहकों की भी सेवा करती है, इसलिए वह अपनी कमाई से गौहर मिर्जा को भी सहयोग
देती है। एक नया ग्राहक, रहस्यमय फ़ैज़ अली, उमराव जान को बहुत सारे गहने और सोना भेंट करता
है, लेकिन उसे अपने उपहारों के बारे में किसी को न बताने की चेतावनी देता है। जब वह उसे फर्रुखाबाद
की यात्रा करने के लिए आमंत्रित करता है, तो खानम जान मना कर देती है, इसलिए वह फ़ैज़ अली के
साथ वहां से भाग जाती है। फर्रुखाबाद के रास्ते में, उन पर सैनिकों द्वारा हमला किया जाता है और
उमराव जान को पता चलता है कि फैज़ एक डकैत है और उसके सभी उपहार चोरी के सामान हैं। फैज
अली अपने भाई फजल अली के साथ भाग जाता है और उमराव जान को कैद कर लिया जाता है, लेकिन
सौभाग्य से खानम जान के कोठे की एक अन्य तवायफ की मदद से वह मुक्त हो जाती है। जैसे ही वह
राजा के दरबार से निकलती है, फ़ैज़ अली उसे ढूंढ लेता है और उसे अपने साथ ले आता है। उमराव जान
कानपुर पहुंचती है, लेकिन गौहर मिर्जा कानपुर आकर उसे वापस लखनऊ ले जाता है। एक बार उमराव
जान अपने शहर फैजाबाद पहुंचती है, तथा अपनी मां से मिलती है, किंतु उसका भाई उसे धमकी देकर
वहां से जाने को कह देता है। उमराव जान वापस लखनऊ लौट आती है। वह लखनऊ में राम दाई से
मिलती है। राम दाई को नवाब सुल्तान की मां को बेच दिया गया था और अब नवाब तथा वह शादीशुदा
हैं। दिलावर खान को डकैती के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है और फांसी पर लटका दिया जाता
है। अपनी कमाई और फ़ैज़ अली ने उसे जो सोना दिया था, उससे वह अपना आगे का जीवन व्यतीत
करती है और अंततः तवायफ़ के रूप में अपने जीवन से सेवानिवृत्त हो जाती है।
उमराव जान अदा का अस्तित्व विद्वानों के बीच विवादित है क्योंकि रुसवा की पुस्तक के अलावा भी
उनके कुछ उल्लेख अन्य जगह मौजूद हैं। उनका वर्णन उनके पहले अधूरे उपन्यास अफशाई रज़ में भी
किया गया है, लेकिन यह उमराव जान अदा में उनके सुसंस्कृत चरित्र से बहुत अलग है।अफशाई रज़ में
उमराव जान को सांवले रंग तथा ऊंचे कद का बताया गया था, जिसका स्वभाव भी चुलबुला था, लेकिन
उमराव जान अदा में उनके व्यक्तित्व को ऐसा नहीं दर्शाया गया। इसके अलावा यह भी कहा जाता था
कि वह एक अच्छी नर्तकी थी लेकिन एक बुरी गायिका थी। जबकि पुस्तक में ऐसा वर्णन नहीं मिलता
है।यूं तो माना जाता है कि उमराव जान की कहानी खुद उमराव के द्वारा लेखक को सुनाई गई थी,
लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि हम एक आत्मकथा नहीं, बल्कि उपन्यास पढ़ रहे
है।
जैसे उमराव का कहना है कि बचपन में उनके पिता फैजाबाद में नवाब शुजा उद-दौला की पत्नी बहू
बेगम के मकबरे पर सफाई का कार्य करते थे।लेकिन यद्यपि बहू बेगम की मृत्यु 1816 में हो गई थी,
उनकी कब्र पर काम कई कारणों से धीरे-धीरे चला, और मकबरा 1857 के विद्रोह के बाद तक भी पूरा
नहीं हुआ। उपन्यास में, हालांकि, 1857 की घटनाएं तब होती हैं,जब उमराव वयस्क थीं और अपने
पेशेवर करियर में अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी थीं। इसी प्रकार एक जगह पर खानम का कहना है
कि राम देई के पास एक आकर्षक चेहरा और फिगर था, और वह उसके लिए उतना ही भुगतान करती
जितना बेगम ने किया, लेकिन खानम को उससे मिलने का मौका कब मिला?और अगर उसे ऐसा मौका
मिला भी तो उसने उस समय तुरंत ऐसा प्रस्ताव क्यों नहीं दिया? इस उपन्यास ने भारत और पाकिस्तान
दोनों के फिल्म जगत को अत्यधिक प्रेरित किया है। 1972 में इस पर हसन तारिक द्वारा निर्देशित
“उमराव जान अदा” नामक एक पाकिस्तानी फिल्म बनायी गयी। इसी प्रकार भारत में इससे प्रेरित होकर
1958 में मेहंदी और जिंदगी या तूफान,1981 में मुजफ्फर अली द्वारा निर्देशित उमराव जान तथा 2006
में जेपी दत्ता द्वारा निर्देशित उमराव जान बनाई गई। यह उपन्यास 2003 में जियो टीवी पर प्रसारित
एक पाकिस्तानी टेलीविजन धारावाहिक उमराव जान अदा का भी विषय था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3hCbdG0
https://bit.ly/3eka97Q
https://bit.ly/3B4cKMX
https://bit.ly/3knCPkd
https://bit.ly/2T8tGAA
https://bit.ly/3xAMaJ3
चित्र संदर्भ
1. उमराव जान अदा पुस्तक का एक चित्रण (goodread)
2. लखनऊ के प्रसिद्द लेखक मिर्जा हादी रुसवा का एक चित्रण (wikimedia)
3. उमराव जान अदा का एक काल्पनिक चित्रण (pustak)
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