आरआईसी (RIC) अर्थात रूस-भारत-चीन (Russia-India-China) के त्रिपक्षीय विश्व समूहीकरण को नई विश्व
व्यवस्था की परिभाषा माना गया था। यह यूरेशिया (Eurasia) भूभाग के कारण ब्रिक (BRICS) (जिसमें भारत
और चीन के अलावा रूस (Russia), ब्राज़ील (Brazil) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) भी सदस्य हैं) से
अलग है, ब्रिक्स संगठन भी इन तीनों देशो को एक साझा मंच प्रदान करता है। जहाँ इन तीनों के अतिरिक्त
ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे महत्वपूर्ण देश हैं। रूस-भारत-चीन समूह एक रणनीतिक समूह है, जिसने
1990 के दशक के उत्तरार्ध में पहली बार एक रूसी राजनेता येवगेनी प्रिमाकोव (Yevgeny Primakov) के
नेतृत्व में आकार लिया था। समूह की स्थापना अमेरिका द्वारा निर्देशित अपनी उप-प्रधान विदेश नीति को
समाप्त करने, भारत के साथ पुराने संबंधों को नवीनीकृत करने और चीन के साथ नई दोस्ती को बढ़ावा देने के
आधार पर की गई थी। वैश्विक भूभाग का 19% से अधिक हिस्सा आरआईसी देशों द्वारा अधिकृत है और
वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 33% से भी अधिक है।
जब 2000 के दशक की शुरुआत में आरआईसी संवाद शुरू हुआ, तो तीनों देश एकध्रुवीय दुनिया के बहुपक्षीय
व्यवस्था के लिए एक परिवर्तन के लिए खुद को तैयार कर रहे थे। यह एंटी-यू.एस. (Anti-U.S.) नहीं था
क्योंकि तीनों देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने संबंधों को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए
एक आवश्यक तत्व माना।आरआईसी (RIC) ने वैश्विक व्यवस्था पर कुछ गैर-पश्चिम (पश्चिम विरोधी नहीं)
दृष्टिकोणों को साझा किया, जैसे कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर जोर, सामाजिक नीतियों पर गृहणियों के
साथ अधीरता और विदेशों में शासन परिवर्तन का विरोध इत्यादि।
आरआईसी संवाद के प्रारंभिक वर्षों में रूस और चीन के साथ भारत के संबंधों में तेजी आई। राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन के आगमन ने भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के राजनीतिक, रक्षा और ऊर्जा स्तंभों को
मजबूत किया। चीन के साथ, सीमा विवाद के लिए एक राजनीतिक दृष्टिकोण लाने और अन्य सहयोग
विकसित करने के लिए 2003 के फैसले ने संबंधों में बहु- क्षेत्रीय वृद्धि को प्रोत्साहित किया। लेकिन कोविड-19
ने कई कमजोरियों को उजागर किया है। गृह मंत्री (राजनाथ सिंह) की मास्को (Moscow) यात्रा ने दिखाया है
कि भारत को अब चीन समूह या तो संयुक्त राज्य अमेरिका समूह में से एक को चुनना होगा, जैसा कि कुछ
अमेरिकी थिंक-टैंक (think-tanks) और राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा सुझाया गया है।
रूस-भारत-चीन (RIC) समूह एक महत्त्वपूर्ण बहुपक्षीय समूह है, क्योंकि यह तीन सबसे बड़े यूरेशियन देशों को
एक साथ लाता है जिनकी भौगोलिक सीमाएँ आपस में जुड़ी हैं। तीनों ही देश परमाणु शक्ति से सम्पन्न हैं,
जिनमें से दो देश रूस और चीन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य भी हैं, जबकि भारत इस परिषद
का स्थायी सदस्य होने के लिए महत्वाकांक्षी है। भारत ने 2018 में आरआईसी शिखर सम्मेलन के पुनरुद्धार
की भी शुरुआत की। एक मायने में, रूस भारत और चीन के बीच सेतु का कार्य करता है, क्योंकि इसके दोनों
के साथ मजबूत संबंध हैं। इसके अलावा, आरआईसी शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation
Organisation (SCO)) और ब्रिक्स दोनों का मूल भी है।साथ ही साथ तीनों देश ब्रिक्स, शंघाई सहयोग
संगठन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS), जैसे साझा समूहों के माध्यम से
आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने पर सहमत हैं। चीन के लिए,
आरआईसी एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहां वह यूरेशिया में अपने हितों को आगे बढ़ा सकता है जबकि
भारत के लिए, यह एक अच्छा भूस्थिर स्थान है। यह हर किसी - पूर्वी एशिया में छोटी शक्तियों से लेकर
अमेरिका, रूस और चीन जैसी बड़ी शक्तियों तक को लुभाने वाला है। आरआईसी शिखर सम्मेलन इस नई
प्राप्त स्थिति का प्रतिबिंब है। जापान-अमेरिका-भारत (JAI) समूह के समान आरआईसी को महत्व देकर भारत
अच्छा कर सकता है।
यदि भारत केवल क्वाड (Quad) और जेएआई जैसे समूहों पर ध्यान केंद्रित रहता है, तो पहला नुकसान यह है
कि ये समूह भारत को केवल एक समुद्री शक्ति होने तक ही सीमित कर देंगे, क्योंकि ये समूह अनिवार्य रूप से
इंडो पैसिफिक (Indo pacific) के चारों ओर ध्यान केंद्रित करते हैं।जबकि RIC समूह वास्तव में भारत को
महसागरीय शक्ति के साथ-साथ महाद्वीपीय शक्ति के रूप में उभरने में मदद कर सकता है।एक महत्वाकांक्षी
शक्ति के रूप में भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह समुद्री और महाद्वीपीय दोनों क्षेत्रों में चीन की
तानाशाही सम्बंधित आकांक्षाओं को विफल करने में सक्षम हो। अगर भारत एक बड़ी शक्ति बनना चाहता है
और यह समझता है कि रूस अकेले चीन को यूरेशिया (Eurasia) में एक तानाशाह के रूप में उभरने से नहीं
रोक पाएगा तो भारत, यूरेशियन सुपरकॉन्टिनेंट (Eurasian Supercontinent) में चीन को भूरणनीतिक स्थान
नहीं दे सकता। इसके अलावा, आरआईसी कई कारणों से भारत की महत्वाकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है। चूंकि
यूरेशियन सुपरकॉन्टिनेंट विश्व मामलों में प्रधान है और क्षेत्र में भारत, रूस और चीन के हित गहरे भी हैं और
आपस में टकराते भी हैं, इसलिए इस स्थिति में आरआईसी सहयोग के क्षेत्रों पर चर्चा करने और मतभेदों को
समझने के लिए एक उपयोगी मंच होगा।भारत सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा
के लिए प्रतिबद्ध है और आरआईसी संवाद के माध्यम से सभी मतभेदों (भारत-चीन सीमा पर) के समाधान के
लिए एक मंच प्राप्त होगा। इसके अलावा, आरआईसी, पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान (Afghanistan), जलवायु
परिवर्तन, आतंकवाद, क्षेत्रीय संपर्क, कोरियाई प्रायद्वीप (Korean Peninsula) पर तनाव आदि जैसे मुद्दों पर
चर्चा करने के लिए भी एक सार्थक मंच प्रदान करता है।
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस-भारत-चीन समूह की 'आभासी बैठक' (Virtual Meeting)
में भाग लिया। जिसमें वैश्विक महामारी की वर्तमान स्थिति और इस संदर्भ में वैश्विक सुरक्षा, वित्तीय स्थिरता
और आरआईसी सहयोग की चुनौतियां पर चर्चा की गयी। चीनी विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi ) और उनके
रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव (Sergey Lavrov) के साथ बातचीत करते हुए, जयशंकर ने दुनिया के शक्तिशाली
देशों से हर तरह से अनुकरणीय बनने का आग्रह किया। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) (Line of Actual
Control (LAC) पर चल रहे भारत-चीन सीमा गतिरोध का उल्लेख किए बिना, विदेश मंत्री ने कहा कि देशों को
अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिए और भागीदारों के वैध हितों को पहचानना चाहिए।जयशंकर के
बयानों को चीन के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश के रूप में देखा जा सकता है, जो अपने पड़ोसी देशों के साथ कई
क्षेत्रीय विवादों को लेकर है। मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों का भी आह्वान किया ताकि विश्व निकाय विश्व
की वर्तमान वास्तविकता का प्रतिनिधित्व कर सके। बैठक में कोरोना विषाणु महामारी से उत्पन्न वैश्विक
स्थिति, क्षेत्रीय विकास, वैश्विक चुनौतियों जैसे आतंकवाद और त्रिपक्षीय आदान-प्रदान और गतिविधियों पर भी
चर्चा की गयी। जैसा कि रक्षा मंत्री (राजनाथ सिंह) ने पिछले सप्ताह मास्को की यात्रा की थी, यह देखना रोचक
होगा कि क्या अभी भी इस समूह में उम्मीद बाकी है, या जैसा कि कुछ अमेरिकी थिंक-टैंक (think-tanks) और
राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा सुझाया गया है कि भारत या तो चीन समूह या फिर अमेरिकी समूह को चुनेगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ywdbgZ
https://bit.ly/3wkeeyM
https://bit.ly/3xjvVQv
https://bit.ly/3hAFLa5
https://bit.ly/3wkdJVJ
चित्र संदर्भ
1. रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय बैठक का एक चित्रण (flickr)
2. जापान-अमेरिका-भारत (JAI) समूह के सदस्य देशो का एक चित्रण (dreamstime)
3. नक्शा पश्चिमी (अक्साई चिन) क्षेत्र में सीमा के भारतीय और चीनी दावों, मेकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन, विदेश कार्यालय लाइन के साथ-साथ चीनी सेना की प्रगति को दर्शाता है क्योंकि उन्होंने चीन-भारतीय युद्ध के दौरान क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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