कोविड–19 महामारी ने भारत में प्रवासी श्रमिकों की अनिश्चित कामकाजी परिस्थितियों पर ध्यान आकर्षित
किया है। देश व्यापी तालाबंदी ने कई श्रमिकों को बेरोजगार कर दिया, जिससे उन्हें अपने पैतृक गाँव चले जाने के
लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि अब महामारी की प्रतिक्रिया में, राज्य अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने और
चलाने के लिए श्रम कानूनों में ढील दे रहे हैं। जिसके नतीजतन, प्रवासी श्रमिकों को और भी अधिक घंटे काम
करना पड़ता है।पंजाब और गुजरात ने अप्रैल में अपने कारखाने अधिनियम में संशोधन किया, जिससे काम का
समय हर हफ्ते 72 घंटे तक बढ़ा दिया गया है। राजस्थान ने काम के घंटे प्रतिदिन 8 से बढ़ाकर 12 घंटे कर
दिए हैं। उत्तर प्रदेश ने कंपनियों को अगले तीन साल के लिए लगभग सभी श्रम कानूनों से छूट दी है। उत्तर
प्रदेश में श्रम कानूनों में दी गई ये ढील व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति को काफी
गंभीर रूप से प्रभावित करेगी और अनुबंधित श्रमिकों और प्रवासी श्रमिकों पर भी इसका काफी गंभीर असर पड़
सकता है।
अनुमानित 450 मिलियन आंतरिक प्रवासी श्रमिक भारत में 92 प्रतिशत कार्यबल में योगदान देते हैं, लेकिन तब
भी इन श्रमिकों की देखभाल कोई नहीं करता है। स्वास्थ्य संकट के बावजूद, वैश्विक स्तर पर 700 मिलियन से
अधिक आंतरिक प्रवासियों द्वारा काम करने के जोखिम को उठाया जाना जारी रखा गया है। भारत में प्रवासी
मजदूर लंबे समय से विशेष रूप से अनुचित श्रम प्रथाओं के प्रति संवेदनशील रहे हैं और श्रम सुरक्षा अक्सर
संकटों के दौरान और कमजोर हो जाती है। उत्तर प्रदेश और गुजरात में श्रम कानूनों को ढीला करने का हालिया
आह्वान भारत में प्रवासी श्रमिकों के लिए न्यूनतम सुरक्षा को खतरनाक रूप से हटा कर श्रमिकों के शोषण को
बढ़ावा देता है।
हालांकि भारत में कोविड-19 महामारी ने बच्चों को कैसे प्रभावित किया है, इस पर कुछ व्यापक आंकड़े मौजूद
हैं, लेकिन बीमारी के अलावा, उपाख्यानात्मक साक्ष्य, गैर-सरकारी बाल कल्याण संगठनों से एकत्र किए गए
विवरण और सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कम उम्र में विवाह, श्रम और शोषण के लिए अतिसंवेदनशील
बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है।
विद्यालयों के बंद होने और ऑनलाइन शिक्षा केवल कुछ के लिए ही सुलभ होने के कारण कई बच्चों के पास
घर में कुछ करने के लिए नहीं है, जिस वजह से कई को अपने परिवारों का समर्थन करने के लिए बाल श्रम में
मजबूर होना पड़ रहा है। 2020 में पहली कोविड -19 लहर के दौरान तीन-चौथाई से अधिक बच्चों की
ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच नहीं थी और एक तिहाई से अधिक बच्चों के पास किसी भी शिक्षण सामग्री तक
पहुँच नहीं थी। चार दक्षिणी राज्यों में बाल विवाह दोगुने हो गए हैं, दरसल भविष्य के बारे में चिंतित माता-पिता
ने महामारी के दौरान प्रतिबंधित लोगों को आमंत्रित करने के इस अवसर (जिसका मतलब कम मेहमान और
कम खर्चीली शादियां थीं) में बच्चों (ज्यादातर लड़कियां लेकिन लड़के भी) को जल्दी शादी करने के लिए मजबूर
किया जाने लगा। वहीं कोविड -19 तालाबंदी की दूसरी लहर के दौरान पिछले महीने काफी कष्ट दायक रहे हैं,
भूख से लेकर बाल श्रम से लेकर बाल विवाह तक हर चीज के मामले में वृद्धि देखी जा रही है। विद्यालयों के
बंद होने के साथ-साथ सस्ते श्रम और परिवार की कम आय की मांग के साथ, बच्चों को श्रम की ओर धकेल
दिया जा रहा है।
2020 में देश व्यापी तालाबंदी के बाद जब भारत को खोलना शुरू किया जाने लगा, तो सामान्य से कम ट्रेनें चल
रही थीं। हालांकि उद्योग खुलने लगे और तस्करों ने राज्यों में तस्करी करना शुरू कर दिया और बच्चों को श्रम
के लिए लाने-ले जाने के लिए बसों का उपयोग किया। चूंकि अधिकांश नागरिक समाज समूह आमतौर पर
तस्करी के लिए उपयोग की जाने वाली ट्रेनों पर नजर रखते हैं, लेकिन कम ट्रेन चलने की वजह से कई तस्कर
समूह द्वारा बसों को उपयोग किया गया, जिस वजह से शुरू में इनमें से कई मामले जहां बसों का इस्तेमाल
किया गया था, चूक गए होंगे। दरसल महामारी के कारण कई श्रमिक अपने बड़े परिवार को दो वक्त की रोटी भी
प्रदान करने में असमर्थ हो गए हैं, जिसकी वजह से वे अपने बच्चों को रोजी रोटी के लिए तस्करों के साथ श्रम
के लिए भेजने को तैयार हो गए।
सरकारी स्कूलों में भारत का मध्याह्न भोजन कार्यक्रम स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए पोषण का स्रोत है।
2020 में तालाबंदी के दौरान मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं हो पाया था, कम आय के साथ, कई बच्चों को
नमक या चीनी के साथ सिर्फ चावल या रोटी खाने के लिए मजबूर हो गए थे। हालांकि केंद्र सरकार ने आदेश
दिया है कि स्थानीय उचित मूल्य की दुकानें अपने आत्मानिर्भर पैकेज (Package) के तहत राशन कार्ड (Ration
card) के बिना वित्तीय छूट वाले अनाज को भी दें, लेकिन हर किसी को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो पाई।
भारत में श्रमिकों के साथ शोषण महामारी से पहले से किया जाता आ रहा है, लगभग 6% श्रमिक बंधुआ
मजदूरी के अंतर्गत फंसे हुए हैं जिन्हें क़र्ज़ चुकाने के लिए जबरन कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है।
इसके अलावा तीन-चौथाई लोग ऐसे हैं जो पारिवारिक दबाव या गंभीर वित्तीय कठिनाई के कारण श्रमिक के रूप
में कार्य कर रहे हैं। लगभग 99.2% श्रमिकों को भारतीय कानून के तहत राज्य-निर्धारित न्यूनतम वेतन प्राप्त
नहीं होता है। ज्यादातर मामलों में उन्हें न्यूनतम श्रम का केवल दसवां हिस्सा दिया जाता है और अत्यधिक
श्रम करने के बावजूद भी इन श्रमिकों को भुगतान देर से किया जाता है। ऐसा भी देखा गया कि जब श्रमिक
अत्यधिक कार्य को समय पर पूरा नहीं करते तो उन्हें दंडित भी किया जाता है। यह अवस्था विशेषकर त्यौहारों
में अधिक होती है क्योंकि इस समय उत्पादों की मांग सर्वाधिक होती है।
कार्य के वक्त चोट लगने या बीमार पड़ने की अवस्था में कर्मी को किसी भी प्रकार की चिकित्सीय देखभाल की
सुविधा भी नहीं दी जाती तथा इनके बदले किसी और श्रमिक को कार्य पर रख दिया जाता है। एक रिपोर्ट के
अनुसार भारत में लगभग 85% घर-आधारित श्रमिक अमेरिका या यूरोप को कपड़े भेजने वाली आपूर्ति
श्रृंखलाओं में कार्य करते हैं। भारत में लगभग 50 लाख श्रमिक घरेलू कामों में शामिल हैं। एक सर्वैक्षण के
अनुसार घर पर काम करने वाले श्रमिकों का औसत वेतन 3,000 रुपये प्रति माह से अधिक नहीं होता है।
आंकड़ों की मानें तो उदारीकरण के बाद के दशक में घरेलू श्रमिकों में 120% की वृद्धि देखी है। 1991 में यह
आंकड़ा 7,40,000 था जोकि 2001 में बढ़कर 16.6 लाख हुआ। दिल्ली श्रम संगठन द्वारा उपलब्ध कराए गए
आंकड़ों के अनुसार, भारत में पाँच करोड़ से अधिक घरेलू कामगार हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं।
हालांकि भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को शोषण के विरूद्ध अधिकार दिया गया है।इस शोषण से भारत
को मुक्त करने के लिए श्रम मंत्रालय द्वारा एक राष्ट्रीय नीति बनायी गयी है जो घरेलू कामगारों को उचित
कानूनी स्थिति और एक सामाजिक सुरक्षा का तंत्र प्रदान करती है। इस नीति को 16 अक्टूबर 2017 में एक
परिपत्र में जारी किया गया था। इसका उद्देश्य स्पष्ट और प्रभावी ढंग से घरेलू श्रमिकों के अधिकारों को लागू
करने के लिए कानून बनाना, तथा उनसे सम्बंधित नीतियों और योजनाओं के दायरे को विस्तारित करना है।
नीति के ज़रिए श्रमिकों को समान पारिश्रमिक तथा न्यूनतम मजदूरी दी जायेगी। इसके अलावा रोज़गार की
उचित शर्तों और शिकायत निवारण का प्रयास भी किया जायेगा। नीति के अंतर्गत श्रमिकों को संगठन बनाने
का अधिकार होगा तथा उन्हें हिंसा और दुर्व्यवहार से भी सुरक्षा दी जाएगी। इसके अलावा स्वास्थ्य लाभ और
पेंशन (Pension) की सुविधा भी उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा।
संदर्भ :-
https://bit.ly/2UsmYFM
https://bit.ly/3hjI0j1
https://bit.ly/36fvlXZ
https://bit.ly/2MOonQk
https://bit.ly/3wktoUT
https://bit.ly/2ZLy3R3
https://bit.ly/2QD1j8q
https://reut.rs/2Qku8Ys
चित्र संदर्भ
1. राजस्थान में नन्हे बाल श्रमिकों का एक चित्रण (flickr)
2. स्कूल से बाहर काम करने वाले बच्चे बनाम बच्चों द्वारा काम किए गए घंटों का एक चित्रण (wikimedia)
3.बोझा धोते भारतीय श्रमिक का एक चित्रण (flickr)
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