संख्याएँ हमारे आधुनिक जीवन को सुलभ बनाती हैं। वास्तविकता में बिना संख्या के इस विश्व में हम कोई भी
कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकते हैं, फिर चाहे वह कार्य गगनचुंबी इमारत बनाने का हो, राष्ट्रीय चुनाव कराने
का हो, शादी की योजना बनाने का हो या बाजार में समान खरीदने का हो। हमारे जीवन के मूलभूत सभी कार्यों
को बिना संख्या के हम करने में असमर्थ हैं। लेकिन एक सवाल यह उठता है कि वास्तव में यह गणितीय तर्क
या क्षमता कहां से आती है? हालांकि इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए काफी लंबे समय से कई प्रयास किए
जा रहे हैं, और हाल ही में किए गए कुछ शोध मनुष्यों में गणितीय तर्क की उत्पत्ति के बारे में लंबे समय से
पूछे जाने वाले इस सवाल का जवाब देने में मदद करते हैं।कैंटन (Cantlon) और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा किये
गए शोध में यह पता चलता है कि मानव मस्तिष्क में एक जन्मजात विधा गणित को लेकर विकसित होता है
और यह करीब 30 मिलियन (Million) वर्ष से हमारे समाज में व्याप्त है। जिससे यह पता चला है कि बच्चों
द्वारा ‘दो, एक से अधिक होता है’ बताने की क्षमता में जो तंत्रिका तंत्र शामिल होता है, वही तंत्रिका तंत्र पेशेवर
गणितज्ञों द्वारा सबसे जटिल गणितीय प्रश्नों को करने या सोचने में भी उपयोग किया जाता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वेरोनिक इजार्ड (Harvard University Veronique Izard) जो की एक संज्ञात्मक
मनोवैज्ञानिक हैं ने हाल में ही नवजात शिशुओं पर अध्ययन किया जिसमे उन्होंने कंप्यूटर (computer) के
सामने उन बच्चों को रखकर उनकी रूचि को देखा। इसमें उन्होंने पाया की नवजात शिशुओं में पहले से ही
संख्याओं की समझ होती है।
जैसे जैसे मनुष्य बड़ा होता है वैसे वैसे गणितीय ज्ञान और भी विकसित होता है।
अध्ययन से यह पता चलता है की छह महीने का बच्चा संख्याओं के बीच का अंतर कर सकता है जैसे 2 और
4। नौ महीने के शिशु में यह अनुपात घटकर 1.5 हो जाता है और वयस्कता के दौरान यह अनुपात मात्र 10
से 15 फीसद ही रह जाता है।लेकिन इन आंकड़ों में एक बात सिद्ध होती है कि इसमें एक-दो नियम ही हमेशा
सही होते हैं। इन सभी अध्ययनों से हमें पता चलता है कि हम मनुष्य एक ही प्रकार के गणना का प्रयोग
अपने पूरे जीवन काल में करते हैं।शोध के अनुसार उन्नत गणितीय तर्क मस्तिष्क की पृष्ठीयपार्श्विका और अग्र
भाग और भाषा कौशल में शामिल मस्तिष्क क्षेत्रों पर निर्भर है। कई शोधकर्ताओं के अनुमान के अनुसार उच्च
गणित समस्याओं को हल करने की क्षमता भाषा की क्षमता से संबंधित होनी चाहिए, क्योंकि दोनों के लिए
प्रतीकों और संबंधों के जटिल जोड़-तोड़ की आवश्यकता होती है।
वहीं एक नए अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि गणित के गंभीर प्रश्नों को हल करने के दौरान मस्तिष्क की
गतिविधि का स्तर कैसे बदलता है, और यह पहली बार पता चला है कि प्रश्नों को हल करते समय चार अलग-
अलग तंत्रिका चरण शामिल हैं।अध्ययन के लिए दो अलग-अलग मस्तिष्क इमेजिंग (Imaging) तकनीकों को
जोड़ा गया था,एक जो मस्तिष्क में न्यूरॉन्स (Neurons) की वास्तविक स्राव को देखता है, और एक जो इस बात
पर ध्यान केंद्रित करता है कि समय के साथ प्रतिभागियों द्वारा गणना को समाप्त करने के बाद ये प्रतिमान
कैसे बदलते हैं?ये चार चरण एन्कोडिंग (Encoding-समस्या को पढ़ना और समझना), योजना (यह सोचना कि
इसे कैसे हल किया जाये?) हल करना (संख्याओं की गणना करना), उत्तर देना (सही उत्तर लिखना) हैं। ये चरण
दिमाग के कार्य करने की प्रक्रिया की बेहतर समझ प्रदान करते हैं।
हालांकि विश्व भर में संख्याओं को एक केन्द्रीय भूमिका प्राप्त है तथा ये भूमिका संख्याओं को पहचानने और
उन्हें समझने में हमारे मस्तिष्क की अलौकिक क्षमता या कौशल का साक्ष्य भी प्रदान करती है।परंपरागत रूप
से, वैज्ञानिकों का मानना है, कि हम उसी तरह से संख्याओं का उपयोग करना सीखते हैं, जिस तरह से हम
कार चलाना सीखते हैं। इस दृष्टि से, संख्याएँ एक प्रकार की तकनीक है, एक मानव-निर्मित आविष्कार हैं,
जिसके लिए हमारा दिमाग अनुकूलित हो सकता है। इस बात का समर्थन इतिहास भी करता है, क्योंकि संख्या
का उपयोग करने वाले लोगों का सबसे पुराना साक्ष्य लगभग 30,000 साल पहले का है।हार्वर्ड (Harvard)
विश्वविद्यालय के एक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक, वेरोनिकइज़ार्ड (Veronique Izard) द्वारा किया गया
अध्ययन भी यह बताता है, कि नवजात शिशुओं में पहले से ही संख्याओं की बुनियादी समझ होती है। उनकी
संख्या की अवधारणा अमूर्त है, वे इसे अपनी इंद्रियों के माध्यम से स्थानांतरित कर सकते हैं। उनके अनुसार
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, गणितीय अंतर्ज्ञान विकसित होता है। मस्तिष्क स्वचालित रूप से संख्याओं को
परिष्कृतकरता है तथा बचपन से बुढ़ापे तक गणितीय अंतर्ज्ञान के कुछ नियमों का पालन करता है। मनुष्य के
दिमाग में तंत्रिका-कोशिकाओं की एक पट्टी होती है,
जो इंट्रापैरियटसल्कस (Intraparietal Sulcus) के पास
स्थित होती है। यह तब सक्रिय होती है, जब कठिन संख्याओं का सामना होता है। ये सभी अध्ययन यह सुझाव
देते हैं, कि हम अपने पूरे जीवन में एक ही मानसिक एल्गोरिथ्म (Algorithm) का उपयोग करते हैं तथा
गणित का मौलिक अंतर्ज्ञान मनुष्य की प्रकृति में ही स्थित है।
हम मनुष्यों ने धीरे-धीरे प्रकृति में कई अतिरिक्त आवर्ती आकृतियों और प्रतिमानों की खोज की है, जिसमें न
केवल गति और गुरुत्वाकर्षण शामिल हैं, बल्कि बिजली, चुंबकत्व, प्रकाश, गर्मी, रसायन विज्ञान, रेडियोधर्मिता
और उप-परमाणु कणों के रूप में असमान क्षेत्र भी शामिल हैं। इन प्रतिमानों को संक्षेप में हम भौतिकी के हमारे
नियम कहते हैं। एक दीर्घवृत्त के आकार की तरह ही, इन सभी नियमों को गणितीय समीकरणों का उपयोग
करके वर्णित किया जा सकता है। वहींसमीकरण केवल गणित के संकेत नहीं हैं जो प्रकृति में निर्मित हैं, बल्कि
इनमें संख्याएँ भी शामिल हैं।हमारा ब्रह्मांड लगभग पूर्ण रूप से गणितीय है, और जितना अधिक ध्यान से हम
इसे देखते हैं,उतना ही अधिक गणित हमें प्राप्त होता है। गणितीय ब्रह्मांड परिकल्पना का तात्पर्य है कि हम
एक संबंधपरक वास्तविकता में रहते हैं, इस अर्थ में कि हमारे आस-पास की दुनिया के गुण इसके अंतिम
निर्माण खंड के गुणों से नहीं, बल्कि इन निर्माण खंड के बीच संबंधों से उत्पन्न होते हैं।बाहरी भौतिक
वास्तविकता इसलिए इसके भागों के योग से अधिक है, इस अर्थ में कि इसमें कई दिलचस्प गुण हो सकते हैं
जबकि इसके भागों में कोई आंतरिक गुण नहीं हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3h4Zdwu
https://bit.ly/3dqokaM
https://bit.ly/3dphLWb
https://bit.ly/2Ud2pxe
चित्र संदर्भ
1. मस्तिष्क में इंट्रापैरियटसल्कस (Intraparietal Sulcus) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गणित के सवाल हल करते बच्चे का एक चित्रण (unsplash)
3. गणितीय आंकड़ों का आंकलन करते लोगों का एक चित्रण (unsplash)
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