पृथ्वी पर दुर्लभ धातुओं और खनिजों में से कई अंतरिक्ष में निकट अनंत मात्रा में हैं। उल्कापिंडों में ग्रैफिन
(graphene) की खोज अंतरिक्ष में 'बहुमूल्य पर्दाथ' के लिए पूर्वेक्षण के महत्व को रेखांकित करती है, क्षुद्रग्रहों के
खनिजों को निकलने में कई निवेशकों में दौड़ हुई है, कई निजी कंपनियां एक दूसरे से निवेश करने के लिए
प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। बहुत से लोगों का कहना है कि पहला खरबपति पृथ्वी में नहीं बल्कि अंतरिक्ष में बनाया
जाएगा। 2008 में, दो वैज्ञानिकों, कार्नेगी इंस्टीट्यूशन (Carnegie Institution), वाशिंगटन डीसी (Washington
DC) के एंड्रयू स्टील (Andrew Steele) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नासा (US space agency, NASA) के
मार्क फ्राइज़ (Marc Fries) ने दो उल्कापिंडों – एलेंडे और क्यूई 94366 (Allende and QUE 94366) का
अध्ययन किया। ये चोंड्राइट उल्कापिंड (chondrite meteorites) थे, जो धूल के एकत्रीकरण द्वारा बने थे।
उल्कापिंड लगभग 4.5 अरब वर्ष पुराने थे। इन चट्टानों के घटकों में ‘कैल्शियम-एल्यूमीनियम (calcium-
aluminium) समृद्ध समावेशन’ या सीएआई (CAI) नामक पर्दाथ था, जो केवल अत्यधिक उच्च तापमान (लगभग
2,000 डिग्री सेल्सियस) पर बना सकता है। इन्हें सीएआई के भीतर कम मात्रा में ग्रेफाइट (graphite) भी मिला।
जिसे ‘ग्रेफाइट व्हिस्कर्स’ (graphite whiskers) कहा जाता है। इस खोज ने वैज्ञानिक समुदाय में काफी चर्चा होने
लगी।
ग्रेफाइट व्हिस्कर्स के अस्तित्व की भविष्यवाणी पहले सैद्धांतिक भौतिकविदों (theoretical physicists) द्वारा की
गई थी, जिसमें अंग्रेजी वैज्ञानिक फ्रेड हॉयल (Fred Hoyle) और उनके प्रसिद्ध भारतीय सलाहकार जयंत नार्लीकर
(Jayant Narlikar) शामिल थे। उन्होंने ‘कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन’ (सीएमबी)(cosmic microwave
background radiation (CMB)) की व्याख्या करने के लिए ग्रेफाइट व्हिस्कर्स के अस्तित्व को माना था, जिसे
कुछ लोग ब्रह्मांड की शुरुआत में बिग बैंग (Big Bang)का अवशेष मानते हैं। 2016 में, एक ग्रह और खगोल-
भौतिक वैज्ञानिक, चैतन्य गिरि (Chaitanya Giri), दो उल्कापिंडों की एक झलक के लिए वाशिंगटन डीसी गए।
उन्होंने पाया कि ग्रेफाइट की सुइयां ग्रेफीन से बनी होती हैं ।
ग्रैफिन (कार्बन (carbon) की एक-परमाणु-मोटी शीट),
एक अद्भुत सामग्री जो उद्योग में बहुत अधिक उपयोग की जाती है। अंतरिक्ष में कई क्षुद्रग्रह, ट्रोजन (trojans),
धूमकेतु (comets), छोटे ग्रह (dwarf planets) और ट्रांस-नेप्च्यूनियन वस्तुएं (trans-Neptunian objects) जो
प्रकृति में कार्बनयुक्त हैं।
आने वाले दिनों में भारत का चंद्रमा अंतरिक्ष कार्यक्रम (चंद्रयान -2) वहां जाना चाहता है जहां पहले कोई राष्ट्र नहीं
गया है - चंद्रमा के दक्षिण की ओर। इसका मकसद चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, किसी न किसी रूप में
पानी की उपस्थिति का पता लगाना, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और का खनिजों की मौजूदगी का
पता लगाना होगा, जिनकी कीमत खरबों डॉलर हो सकती है। ये कार्य चंद्रमा, मंगल और उससे आगे के वैज्ञानिक,
वाणिज्यिक या सैन्य लाभ के लिए खोजकर्ता के शीघ्रगामी के बीच भारत के स्थान को मजबूत करेगा। अमेरिकी
(America), चीन (China), भारत, जापान (Japan) और रूस (Russia) की सरकारें स्टार्टअप (Startup) और
अरबपतियों एलोन मस्क, जेफ बेजोस और रिचर्ड ब्रैनसन के साथ मिलकर उपग्रहों, रोबोट लैंडर, अंतरिक्ष यात्रियों
और पर्यटकों को ब्रह्मांड में लॉन्च करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। वर्तमान में नासा पानी और हीलियम-3
(helium-3) के संकेतों के लिए अक्टूबर में एक रोवर लॉन्च करेगा। वह समस्थानिक पृथ्वी पर सीमित है फिर भी
चंद्रमा पर इतना प्रचुर मात्रा में है कि सैद्धांतिक रूप से 250 वर्षों तक वैश्विक ऊर्जा मांगों को पूरा कर सकता है
यदि इसका उपयोग किया जाए। पानी और खनिज की मौजूदगी चांद के दक्षिणी धुव्र पर भविष्य में इंसान की
उपस्थिति के लिए फायदेमंद हो सकती है। यहां की सतह की जांच ग्रह के निर्माण को और गहराई से समझने में
भी मदद कर सकती है। साथ ही भविष्य के मिशनों के लिए संसाधन के रूप में इसके इस्तेमाल की क्षमता का पता
चल सकता है।पहली क्षुद्रग्रह कंपनी, प्लैनेटरी रिसोर्सेज (Planetary Resources), की स्थापना 2012 में क्रिस
लेविकी (Chris Lewicki) और पीटर डायमंडिस (Peter Diamandis) ने की, उनका यह स्टार्टअप क्षुद्रग्रहों से
खनिजों, धातुओं, पानी और अन्य क़ीमती सामानों के खनन पर आधारित था। कंपनी का दीर्घकालिक लक्ष्य क्षुद्रग्रहों
का खनन करना था। इसमें कई बड़े निवेशकों ने निवेश के लिये हाथ बढ़ाया।कंपनी ने अंतरिक्ष कक्षा में दो परीक्षण
उपग्रह लॉन्च किए। पहला प्रौद्योगिकी प्रदर्शक एथ्रीआर (Arkyd3 Reflight (A3R)) था, जिसे 2015 के अप्रैल में
ISS को भेजा गया था और वहां 16 जुलाई, 2015 तक तैनात किया गया था। इसके बाद 2018 में Arkyd6,
उनका दूसरा प्रदर्शनकारी उपग्रह, 11 जनवरी को सफलतापूर्वक कक्षा में लॉन्च किया गया था। परंतु अक्टूबर 2018
में, वित्तीय समस्याओं के कारण, कंपनी की संपत्ति को एक सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी कंपनी कोन्सेंसे (ConsenSys)
द्वारा खरीदी गई थी।
वैज्ञानिकों ने नासा के गैलीलियो और डॉन (Galileo and Dawn ) शिल्प जैसे जमीन पर आधारित दूरबीनों और
अंतरिक्ष मिशनों का उपयोग करके क्षुद्रग्रहों का अध्ययन किया है, जो एक साथ करीब से तस्वीर और विवरण एकत्र
कर चुके हैं। सबसे महत्वपूर्ण विवरण जापान के हायाबुसा (Hayabusa) से आया था, जो 2010 में एक क्षुद्रग्रह पर
उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान था और सफलतापूर्वक नमूनों के साथ घर लौटा था। इन अध्ययनों से पता चला है
कि दो प्रकार के क्षुद्रग्रहों के खनन हितकारी हैं। पहले अकोन्ड्राइट(Achondrites) हैं, जो प्लैटिनम समूह धातुओं
(रुथेनियम (ruthenium), रोडियम (rhodium), पैलेडियम (palladium), ऑस्मियम (osmium), इरिडियम
(iridium) और प्लैटिनम (platinum)) में समृद्ध हैं। साथ ही अन्य क्षुद्रग्रह कोन्ड्राइट (Chondrites) हैं, जो शायद
काफी मूल्यवान हैं क्योंकि ये पानी में समृद्ध हैं।
पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह कहा गया की फिलहाल क्षुद्रग्रहों में खनन के लिए मनोवैज्ञानिक बाधा
अधिक है, जबकि वास्तविक वित्तीय और तकनीकी बाधाएं बहुत कम हैं। कैलटेक अध्ययन ने क्षुद्रग्रह-खनन कार्य की
लागत 2.6 बिलियन डॉलर रखी, जो आश्चर्यजनक रूप से नासा के पूर्ववर्ती एआरएम (ARM) के समान अनुमानित
लागत नहीं थी। हालांकि यह सुनने में बहुत अधिक लग रही है, लेकिन एक दुर्लभ-पृथ्वी-धातु की खदान की
तुलनात्मक लागत 1 बिलियन डॉलर तक है और क्षुद्रग्रह से खनन किये हुए एक फुटबॉल के आकार के प्लैटिनम
की कीमत लगभग 50 बिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया गया है। वहीं इस तरह के क्षुद्रग्रह में खनन के लिए
इच्छुक किसी भी व्यक्ति को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे उसे वायुमंडल के माध्यम से
बिना ग्रह को कोई नुकसान पहुंचाए पृथ्वी पर वापस कैसे लाया जाएगा? यदि आप उसे वापस पृथ्वी पर लाने में
समर्थ नहीं हो पाते हैं, तो आप इसे अंतरिक्ष में किसे बेचेंगे? और यहां तक कि अगर आप इसे पृथ्वी पर ला देते
हैं, तो फिलहाल प्लेटिनम दुर्लभ नहीं है। यह देखते हुए कि आम धातु दुर्लभ धातुओं जितनी महंगी नहीं है, क्या
क्षुद्रग्रह खनन वास्तव में इसके लायक होगा? कई बार तकनीक तो मौजूद होती है लेकिन इस्तेमाल के लिए बाकी
बातों की तैयारी में ज्यादा समय लग जाता है। उन्हें निकालना जितनी बड़ी चुनौती होती है उतना ही उस पर खर्च
भी आता है। इसके आलवा गुरुत्वाकर्णष, तापमान, वायुमंडलीय दबाव और विकिरण सभी इस दिशा में अलग अलग
समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3jdywHq
https://bit.ly/3wYNhBR
https://bit.ly/2U0T5fF
https://bit.ly/35PJoU0
https://bit.ly/3wZaoMG
चित्र संदर्भ
1. चंद्रयान-2 का एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्रैफेन कार्बन परमाणुओं से बना एक परमाणु पैमाने पर हेक्सागोनल जाली है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. आकार और संख्या के आधार पर वर्गीकृत सौर मंडल के क्षुद्रग्रह का एक चित्रण (wikimedia)
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