लखनऊ की लोकप्रिय चिनहटकुंभकारी. एक शिल्प जो समय के साथ विलुप्तिकी कगार पर आ खड़ी हो गई है

मिट्टी के बर्तन से काँच व आभूषण तक
25-06-2021 09:12 AM
लखनऊ की लोकप्रिय चिनहटकुंभकारी. एक शिल्प जो समय के साथ विलुप्तिकी कगार पर आ खड़ी हो गई है

भारत की समृद्ध कुंभकारी की परंपरा, चाहे वह जयपुर के नील मृद्भाण्ड हो या पश्चिम बंगाल की टेराकोटा (Terracotta) हो, उनकी उत्पत्ति प्रागैतिहासिक काल से मानी जाती है।इसी तरह की कलात्मक विरासत उत्तर प्रदेश में पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसे लोकप्रिय रूप से चिनहट कुंभकारी के रूप में जाना जाता है।चिनहट कुंभकारी का नाम उस स्थान के नाम पर रखा गया है, जहां मुख्य रूप से ये प्रचलित हैं। चिनहट लखनऊ के बाहरी इलाके में लखनऊ-बाराबंकी सड़क के किनारे एक छोटा सा गांव हुआ करता था। मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग की शुरुआत के कारण चिनहट को लोकप्रियता हासिल हुई, जिसने गाँव को राज्य में मिट्टी के बर्तन बनाने के केंद्र के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने में मदद की, केवल इतना ही नहीं इसने कई पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। यह भी व्यापक रूप से माना जाता है कि चिनहट कारीगरों द्वारा कॉफीमग (Coffee mugs) पेश करने से पहले, लखनऊवासी अपनी कॉफी पीने के लिए प्याले और तश्तरी का इस्तेमाल करते थे। उस समय, लखनऊ के बाजार में यह वास्तव में एक क्रांतिकारी परिचय था, जिसने निस्संदेह खरीदारों का ध्यान खींचा!
लखनऊ में मिट्टी के बर्तन बनाने का इतिहास उस समय से है जब मुगलों और नवाबों का शासन था। शहर में मिट्टी के बर्तन बनाने का मूल रूप मिट्टी के साथ टंकी के आधारों के आवरण से शुरू हुआ था, इसमें इन टंकियों पर विभिन्न आकार के रंगीन आकृतियाँ बनाना शामिल था। इसमें मिट्टी के फलों की नक्काशी भी शामिल थी, मिट्टी के बर्तनों का एक रूप जो अभी भी बड़े पैमाने पर शहर में प्रचलित है।चिनहट में शिल्प की उत्पत्ति के साथ, लखनऊ में मिट्टी के बर्तन बनाने की कला फली-फूली और अभी भी बड़ी संख्या में कुम्हारों के लिए रोजी-रोटी के स्रोत के रूप में काम करती है।वास्तव में, लखनऊ की निकटता तैयार उत्पादों के लिए एक अच्छे बाजार के रूप में कार्य करने में मदद करती है। आतिथ्य उद्योग और घर के अंदरूनी हिस्सों में भी परिदृश्य के सौंदर्यी करण के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करने की हालिया प्रवृत्ति के साथ मिट्टी के बर्तन बनाना एक आकर्षक उद्योग के रूप में उभरा है। मिट्टी के बर्तनों को बनाने का शिल्प बहुत पुराना है जोकि पायलट प्रोजेक्ट (Pilot project) के साथ शुरू किया गया, इस योजना को राज्य योजना विभाग के योजना अनुसंधान और कार्य संस्थान द्वारा प्रारंभ किया गया था। पायलट प्रोजेक्ट को वर्ष 1957 में क्षेत्र के बेरोज़गार युवाओं को कुम्हारी में प्रशिक्षित करने तथा उद्योग ईकाईयां खोलने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। जल्द ही परियोजना के प्रयासों को सफलता मिलने लगी और उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अच्छी तरह से स्थापित किया गया। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले उद्योग को विकसित करने के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए योजना अनुसंधान और कार्य संस्थान ने चिनहट में एक भट्ठी का निर्माण भी किया। वहीं इस शिल्प को यूपी लघु उद्योग निगम से भी समर्थन मिला। चिनहट कुंभकारी की मुख्य विशेषता यह है कि यह पूरी तरह से हस्तनिर्मित होती है जिसमें चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे अन्य शिल्पों के विपरीत कोई मशीनरी (Machinery) का उपयोग नहीं किया जाता है।चिनहट कुंभकारी ग्लेज्ड टेराकोटा (Glazed Terracotta)कुंभकारी और मृत्तिका कला की श्रेणी में आता है।इससे बनने वाली वस्तुएं साधारण दिखायी देती हैं और उनकी दिखावट मिट्टी जैसी होती है तथा चमकीली सतह आमतौर पर हरे और भूरे रंग की होती है।चिनहट मिट्टी के बर्तनों को 1180 से 1200 सेल्सियस (Celsius) पर आग पर पकाया जाता है।चिनहट कुंभकारी से बनने वाले उत्पादों में मग, कटोरे, फूलदान, प्याले और थाली शामिल हैं। इस पर कई ज्यामितीय आकृतियों के प्रारूप बनाए जाते हैं, फल और फूलों के आकार के प्लेट और कटोरे चिनहट मिट्टी के बर्तनों में सबसे तेजी से बिकने वाली वस्तुओं में से थे। कुम्हारों के लिए, मिट्टी के बर्तन बनाना केवल आजीविका कमाने का व्यवसाय नहीं है, वे अपने इस कार्य को पूजते हैं। हालांकि बाज़ारों में सस्ते चीनी (Chinese) उत्पादों की उपलब्धता में हालिया वृद्धि और अधिकारियों की अनदेखी की वजह से कुम्हारों के लिए चिंता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।कुंभकारी उद्योग में गिरावट आनी तब शुरू हुई जब इसे 1970 में उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम के अधीन किया गया।
उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम द्वारा चिनहट के साथ-साथ मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए एक और केंद्र विकसित किया गया था, जिसे खुर्जा के नाम से जाना जाता है।उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम के कारखाने द्वारा किया गया उत्पादन स्थानीय चिनहट मिट्टी के बर्तनों की तुलना में काफी कम था। उनके द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तनों में परिष्करण का अभाव, अशुद्ध और मूल हस्त निर्मित चिनहट मिट्टी के बर्तनों की सुंदरता का अभाव था। उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम द्वारा उत्पादित उत्पाद स्वयं बाजार में विफल साबित हुए और बाद में इसका उत्पादन बंद कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप उत्पादों की बिक्री में अत्यधिक गिरावट आई।उद्योग में अभी भी राज्य के लिए एक बड़े लाभदायक व्यवसाय में बदलने की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन इसके लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर शिल्प को बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज करने की आवश्यकता है। साथ ही आम नागरिकों द्वारा भी इस अद्भुत कला को बढ़ावा देना चाहिए और प्लास्टिक या अन्य देशों से आयातित बर्तनों का परित्याग कर अपने देश में बने बर्तनों को खरीदना चाहिए नहीं तो एक दिन यह कला पूरी तरह विलुप्त हो जायेगी।

संदर्भ :-
https://bit.ly/2UAKYqF
https://bit.ly/3qskOlB
https://bit.ly/3qkWQbW
https://bit.ly/3gQ0Q0X Extra Link :
https://bit.ly/2SmV5hX

चित्र संदर्भ
1. चिनहट के लखनवी चीनी मिट्टी के बर्तन का एक चित्रण (Prarang)
2. चिनहट के मिटटी के बर्तन और विभिन्न वस्तुओं से सजी दुकानों का एक चित्रण (Prarang)
3. प्राचीन मृद्पात्र का एक चित्रण (Prarang)