भारत में भाषा तथा लिपि का विकास

लखनऊ

 15-06-2021 11:43 AM
ध्वनि 2- भाषायें

सभ्यता की प्रगति में लेखन कला का महत्वपूर्ण योगदान है। मानव समाज को नई दिशा देने में लिपि का अविष्कार बहुत महत्वपूर्ण है। इसी के कारण मनुष्य के लिए यह संभव हो सका है कि वह अपने ज्ञान का सर्जन, संरक्षण और संवर्धन करता रहे, अपने अनुभवों, विचारों और कल्पनाओं को एक स्थायी रूप दे सके। जिस प्रकार से लेखन की परम्परा की शुरुआत हुई, उस समय का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है। लिपि (script) मनुष्य का एक महान अविष्कार है। जब से पुराने लेख मिलते है तब से मानव इतिहास की शुरुआत मानी जाती है। मुख्यतः पुराने लेखों के आधार पर ही प्रामाणिक इतिहास की रचना की जाती हैं।भारत में लेखन का एक लंबा इतिहास रहा है। हालांकि सहस्राब्दियों पहले यहां मौखिक ज्ञान को बहुत भी महत्व दिया जाता था। प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ, वेद, जिनमें से सबसे पुराने 1500 ईसा पूर्व के हैं, को लिखने के लिए प्रतिबद्ध होने से पहले कम से कम एक हजार वर्षों तक इन्हे कंठस्थ किया गया था। उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला सबसे पुराना लेखन सिंधु घाटी सभ्यता का है जो अभी तक अपरिभाषित लिपि है। जो कुछ हद तक लोगो-सिलेबिक (logo-syllabic) प्रकृति का लगता है। सिंधु घाटी सभ्यता में लेखन प्रणाली का पहला प्रमाण रहमान ढेरी के मिट्टी के बर्तनों पर पाया जाता है। इसके बाद हड़प्पा काल की मुहरों और मुहरों पर लेखन प्रणाली देखी जा सकती है।
लंबे शिलालेख गुजरात में विशेष रूप से धोलावीरा में पाए जाते हैं जहां हमें शिलालेखों के साथ पत्थर के स्लैब (slabs) मिलते हैं जो 24 से 34 प्रतीकों वाले घरों की नाम प्लेटों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि पात्र काफी हद तक चित्रमय हैं लेकिन इसमें कई अमूर्त संकेत शामिल हैं। माना जाता है कि शिलालेख ज्यादातर दाएं से बाएं लिखे गए हैं, लेकिन वे कभी-कभी एक बुस्ट्रोफेडोनिक (boustrophedonic) शैली का पालन करते हैं।प्रमुख चिह्नों की संख्या लगभग 400 है। कुछ विद्वानों ने तर्क दिया है कि ब्राह्मी लिपि का सिंधु प्रणाली से कुछ संबंध है, लेकिन अन्य, जैसे कि इरावाथम महादेवन (Iravatham Mahadevan) ने तर्क दिया है कि लिपि का द्रविड़ भाषा से संबंध था। दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान उपमहाद्वीप का भाषाई परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया, इसलिए यह निर्धारित करना असंभव है कि सिंधु घाटी लिपि और भारत में अगली स्पष्ट रूप से प्रमाणित लिपि के बीच कोई संबंध है भी या नहीं। मौर्य सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व शासन) के शिलालेखों में मिली ब्राह्मी लिपि भी असंबंधित भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती थी। ब्राह्मी लेखन प्रणाली की अचानक उपस्थिति भारत में लेखन के महान रहस्यों में से एक है। मौर्य साम्राज्य द्वारा ब्राह्मी लिपि पूरे भारत में फैली हुई थी, इसका उपयोग उपमहाद्वीप के अभिजात वर्ग द्वारा किया जाता था। भारत में शास्त्र, मौखिक संस्कृति और क्षेत्रीय मतभेदों ने ब्राह्मी लिपि को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग लिपियों में विभेदित और विकसित किया। दक्षिण भारत में, लेखन के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री के रूप में ताड़ के पत्तों और उत्तर भारत में कपड़ा और छाल का उपयोग किया जाने लगा। इस प्रकार ब्राह्मी लिपियों में प्रमुख विभाजन दक्षिणी भारतीय/दक्षिणपूर्व एशियाई लिपियों और उत्तरी भारतीय और तिब्बती लिपियों के बीच हुआ।क्षेत्रीय भाषाई भिन्नताओं ने भी दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया दोनों में कई लिपियों में भारतीय लेखन के प्रसार में मदद की। ब्राह्मी की उत्तरी धारा में गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा और देवनागरी को रखा गया है। दक्षिणी धारा में तेलुगु, कन्नड़, तमिल, कलिंग, ग्रंथ, मध्य देशी और पश्चिमी लिपि शामिल हैं।ब्राह्मी भारत की अधिकांश लिपियों की जननी है, ब्राह्मी लिपि शब्दांश लेखन प्रणाली की पुष्टि करती है और प्राकृत लिखने के लिए इसका अधिक उपयोग किया गया था, शुरू में आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा और बाद में संस्कृत भी इस लिपि में लिखी गई थी। पुरालेखों के अनुसार- सभी भारतीय लिपियाँ ब्राह्मी से ली गई हैं। लिपियों के दो मुख्य परिवार हैं:
1. देवनागरी, जो उत्तरी और पश्चिमी भारत की भाषाओं का आधार है, जिसमें हिंदी, गुजराती, बंगाली, मराठी, डोगरी, पंजाबी, आदि शामिल है।
2. द्रविड़, दक्षिण भारत की कई सम्बन्धित भाषाओं का समूह है।

इसमें मुख्यतः तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम आती हैं।

एक अन्य लिपि, उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान की खरोष्ठी (Kharosthi) स्पष्ट रूप से फारसियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली शाही आरमेइक (Aramaic) लिपि से ली गई प्रतीत होती है, जिन्होंने सिकंदर महान के आने तक दो शताब्दियों तक सिंधु घाटी के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। यह ब्राह्मी की बहन लिपि और समकालीन है। इसका उपयोग उत्तर-पश्चिमी भारत की गांधार संस्कृति में किया गया था और इसे कभी-कभी गांधारी लिपि भी कहा जाता है। इसके बाद समय आया गुप्त लिपि का इसे स्वर्गीय ब्राह्मी लिपि के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रयोग गुप्त काल में संस्कृत लिखने के लिए किया जाता था। इसने नागरी, शारदा और सिद्धम लिपियों को जन्म दिया जिसने बदले में भारत की सबसे महत्वपूर्ण लिपियों जैसे देवनागरी, बंगाली आदि को जन्म दिया।नागरी लिपि देवनागरी लिपि का प्रारंभिक रूप है। इसका उपयोग प्राकृत और संस्कृत दोनों लिखने के लिए किया जाता था। शारदा लिपि ब्राह्मण परिवार की लिपि थी, यह 8वीं शताब्दी के आसपास विकसित हुई। इसका इस्तेमाल संस्कृत और कश्मीरी लिखने के लिए किया जाता था। सिद्धम लिपि छठी शताब्दी ईस्वी में पूर्वी भारत में प्रमुख थी जिससे गौड़ी लिपि का विकास हुआ। इसका उपयोग दो मुख्य भाषाओं बंगाली और असमिया से जुड़ा हुआ है। पश्चिमी भारत में लण्डा लिपियाँ जिसका अर्थ 'बिना पूँछ का' है, का विकास हुआ। यह एक पंजाबी शब्द है जिसका उपयोग उत्तर भारत में लिपियों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। लंडा लिपि शारदा लिपि से 10वीं शताब्दी में व्युत्पन्न हुई। गुरुमुखी लिपि लांडा लिपियों से विकसित हुई। 16वीं शताब्दी के दौरान सिख धर्म के दूसरे गुरु, गुरु अंगद द्वारा मानकीकृत किया गया था। इस लिपि में पंजाबी भाषा में ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संकलन हुआ है। दक्कन (Deccan) में मोड़ी लिपि माराठी भाषा लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक लिपि बन गयी, और गुजराती लिपि का उपयोग गुजराती और कच्छी भाषाओं को लिखने के लिए किया जाने लगा, यह देवनागरी लिपि का एक प्रकार है। दक्षिण भारत में ग्रंथ लिपि ब्राह्मी से उत्पन्न होने वाली सबसे प्रारंभिक दक्षिणी लिपियों में से एक है।यह तमिल और मलयालम लिपियों में विभाजित हो गया, जो अभी भी इन भाषाओं को लिखने के लिए उपयोग की जाती हैं। वट्टेऴुत्तु लिपि भी ब्राह्मी से ली गई एक लिपि थी और भारत के दक्षिणी भाग में इसका उपयोग तमिल और मलयालम लिखने के लिए किया जाता था। कदम्ब लिपि भी ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न एक लिपि है जिसे 'पूर्व-प्राचीन कन्नड लिपि' भी कहते हैं। इसी लिपि से कन्नड में लेखन का आरम्भ हुआ। कर्नाटक में संस्कृत ग्रंथों को लिखने के लिए कन्नड़ लिपि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भारत और श्रीलंका में तमिल भाषा लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लिपि “तमिल लिपि” है। यह भी ब्राह्मी के दक्षिणी रूप से विकसित हुई। तेलुगु और मलयालम लिपि भी ब्राह्मी से उत्पन्न भारतीय लिपियां हैं। भारतीय लिपियों को इतने रूपों में विभेदित किया जाना, यह इंगित करता है कि साक्षरता व्यापक नहीं थी और कुछ व्यक्तियों तक सीमित थी, एक प्रवृत्ति जो संभवतः एक अखिल भारतीय ग्रहण के कारण तेज हो गई थी। पूरे भारत में एक आधुनिक, जन संस्कृति के उद्भव से पहले,लेखन शैली और लिपियां कुछ क्षेत्रों और यहां तक कि कुछ जातियों के लिए ही थीं। जिसमें शास्त्री और व्यापारी अक्सर अपनी स्वयं की लिपियों का उपयोग करते थे। परंतु जैसे ही भारत में एक राजनीतिक रूप से एकीकृत, उपमहाद्वीप-विस्तृत राज्य का उदय हुआ जिसने भारतीय लिपियों पर कुछ क्षेत्रों और जातियों के विशेषाधिकार को उलट दिया। परंतु देशी लिपियों में करोड़ों लोगों को साक्षरता प्रदान करना संभव नहीं था। संचार के लिए प्रतिदिन लाखों लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली कई सारी लिपियों का इस्तेमाल भी संभव नहीं था, इससे भ्रम और संचार की कमी हो सकती थी।
इसलिये बड़े पैमाने पर प्रिंट और ऑनलाइन (print and online) के लिए कुछ लिपियों का मानकीकरण और उपयोग किया जाने लगा। इस कारण जाति और व्यापार आधारित लिपियों के साथ-साथ कई स्थानीय लिपिओं का भी पतन हो गया। परंतु अब प्रौद्योगिकी और आधुनिकता इन प्राचीन लिपिओं के उपयोग के पैटर्न (pattern) को बदल रही है और उन्हें पहले की तरह मानकीकृत तथा व्यापक में उपयोग किए जाने वाले रूपों में पनपने की अनुमति दे रही है।क्योंकि अब लोग साक्षरता और इंटरनेट तक पहुंच रहे हैं। कई यूरोपीय (European) भाषाएं (अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश (English, French, German, Spanish)इत्यादि) लैटिन लिपि (Latin script)का उपयोग एक आम लिपि के रूप में करती है, इससे उन सभी देशों में संचार में आसानी होती है, जिन देशों में इस लिपि का उपयोग किया जाता है।इस प्रकार हमारे देश में विभिन्न भाषाएं हैं, यदि हमारे देश में ही एक आम लिपि हो तो संचार बाधा काफी हद तक कम हो जायेगी।इसके लिये IIT मद्रास ने, नौ भारतीय भाषाओं के लिए एक एकीकृत लिपि विकसित की, जिसका नाम “भारती लिपि” रखा गया। भारती स्क्रिप्ट एक एकीकृत लिपि है, इसमें नौ भारतीय भाषाएँ शामिल हैं। इसमें देवनागरी, बंगाली, गुरुमुखी, गुजराती, ओड़िया, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम तथा तमिल शामिल हैं। इसे विभिन्न लिपियों के बीच मध्यस्थ के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही, भारती में लिपिबद्ध प्रलेखों को पढ़ने के लिए एक बहुभाषीय ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (Optical Character Recognition – OCR) योजना भी तैयार की गई है। इस प्रणाली के द्वारा भारती लिपि में लिखे गये दस्तावेजों को कंप्यूटर द्वारा पढ़ा जा सकता है और कहा गया है कि यह लगभग 100% सटीक है।

संदर्भ:
https://bit.ly/2RTD7TT
https://bit.ly/2SxAuHM
https://bit.ly/3vn8oML

चित्र संदर्भ
1. हिंदी भाषाई किताबों का एक चित्रण (Flickr)
2. धोलावीरा के उत्तरीय महाद्वार के ऊपर लिखे गये दस अक्षर का एक चित्रण (wikimedia)
3. सिरियेक-अरामिक वर्णमाला का एक चित्रण (Wikimedia)
4. हिंदी वर्णमाला चार्ट का एक चित्रण (flickr)



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