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कमर से नीचे पैजामा और सिर पर पगड़ी
पहनी जाती थी, जो इसे एक मुकम्मल पोशाक बनाती थी। इन पगड़ियों की भी विभिन्न
शैलियां होती थी, जिनमे मुख्यतः गुम्बद के आकार की "कुब्बदार", कढ़ाई की गयी पगड़ी
"नुक्का डार", मखमली पगड़ी "मंडिल" और चौ-गोशिया, कशिती, दुपल्ली जैसी अन्य
पगड़ियां भी शामिल थी। यहाँ मुग़ल बादशाह की पगड़ी बेहद खास होती थी, क्यों की इसमें
स्वर्ण (सोने) समेत पन्ना, माणिक, हीरे, और नीलम आदि बेशकीमती रत्न जड़े रहते थे।
मुगलई जूतियां प्रायः सिरे से घुमावदार होती थी, इन जूतियों की भी झुटी", "काफ्श",
"चारहवन", "सलीम शाही" और "खुर्द नौ" जैसी अनेक शैलियाँ थी। मुग़ल महिलाएं सलवार,
चूड़ीदार, ढिलजा, फर्शी और घागरा पहनती थी, श्रृंगार के तौर पर वें झुमके, नाक के गहने,
हार, चूड़ियाँ, और पायल जैसे ढेरों खूबसूरत आभूषण भी पहनती थी।
भारत में गहनों के प्रति महिलाओं की हमेशा से खासा जिज्ञासा रही है गहनों का इतिहास
तकरीबन 5000 वर्ष पुराना है भारतीय महिलायें किसी त्यौहार, विशेष अवसर और किसी
भी यात्रा के दौरान गहने (आभूषण) आवश्यक रूप से पहनती हैं, यहां गहनों को विलासिता
दर्शाने के अलावा वित्तीय संकट में सुरक्षा श्रोत के तौर पर देखा जाता है। इन गहनों में निहित
डिज़ाइन और इनकी सुंदरता का श्रेय कारीगरों की कुशलता को दिया जाता है।
बदलते दौर
के साथ कुचिपुड़ी, कथक या भरतनाट्यम जैसी लोकप्रिय भारतीय नृत्य शैली की सुंदरता
को मूर्त रूप देने में, गहनों ने विशेष भूमिका निभाई है। जहां शास्त्रीय नर्तकियां इन गहनों
की सुंदरता का लाभ उठाते हुए अपने नृत्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। यहाँ राजशाही
दौर में भी कलाकारों और शासकों ने गहनों का संरक्षण किया साथ ही उन्होंने गहनों की
सुंदरता को फलने- फूलने और विस्तार करने में भी अहम योगदान दिया। कुंदन और
मीनाकारी शैली के गहने मुगल वंश के डिजाइनों से प्रेरित हैं। पारंपरिक भारतीय गहने
आमतौर पर वजनी सोने के टुकड़ों से निर्मित होते हैं। हालांकि बदलते समय के साथ कम
हलके वजनी गहनों ने भी यहाँ भारतीय महिलाओं के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है,
जिनमे मांगटीका, झुमके, नाक के छल्ले, हार, मंगलसूत्र और चूड़ियों जैसे कुछ बुनियादी
गहने विशेष रूप से विवाहित महिलाएं पहनती हैं। अनेक प्रकार के बेशकीमती गहने कीमती
पत्थरों जैसे पन्ना, मोती, हीरे, माणिक, नीलम आदि से निर्मित होते हैं, जिनका श्रृंगार भारत
में महिला-पुरुषों के साथ-साथ देवी देवता यहाँ तक की उनकी सवारियां (जानवर) भी करती
हैं। अपनी डिज़ाइन और कुशलता पूर्वक किये गए निर्माण के आधार पर भारतीय आभूषण
विश्व भर में लोकप्रिय हैं, यहाँ सोने के साथ-साथ चांदी के गहनों की भी विस्तृत डिज़ाइन
देखने को मिल जाती हैं।
भारत में चांदी के मनके तथा आभूषण गुजरात, राजस्थान,
हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में खासा लोकप्रिय हैं। जिनकी जटिल तथा उन्नत
डिज़ाइन का श्रेय इन राज्यों के शिल्पकारों को जाता है। साथ ही यहाँ सोना और चांदी केवल
श्रृंगार सामग्री न होकर धार्मिक तौर पर भी बेहद पवित्र मानी जाती हैं। भारत में अक्षय
तृतीया, धनतेरस, गुड़ी पड़वा, पुष्यनक्षत्र, गुरुपुष्यामृत, लक्ष्मी पूजन, दिवाली और भाई दूज
जैसे शुभ अवसरों पर सोने या चांदी के बर्तन और आभूषण विशेष तौर पर खरीदे जाते हैं,
क्योंकि इन धातुओं को शुभ और पवित्र माना जाता है। इसी कारण बेटी के विवाह होने पर
इन धातुओं के गहनो को उपहार स्वरूप भेंट भी किया जाता है, अनेक भारतीय ग्रंथों में स्वर्ण
(सोने) का भी उल्लेख मिलता है। भारत में मुग़ल काल गहनों, आभूषणो के प्रयोग के
परिपेक्ष्य में एक लोकप्रिय युग था। लगभग सभी मुग़ल कालीन चित्रों में विशिष्ट डिज़ाइन
के आभूषणो खासतौर पर महिलाओं के गहनों जैसे झुमके, हार, कंगन,अंगूठी और नाक के
आभूषण जैसे फूल, बेसर, लौंग, बालू, नाथ और फुली इत्यादि को खासा वरीयता दी गयी है।