भारत के किसान लगभग 130 करोड़ की आबादी वाले देश को भोजन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं,किंतु उनके सामने अनेकों चुनौतियां हैं, जिनमें से एक कीट भी हैं, जो उनकी फसलों
को हर वर्ष बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते है। भारत में हर साल कीट और रोग किसानों द्वारा उत्पादित
की गयी उपज का औसतन 20-30% हिस्सा खा जाते हैं, जिसकी कीमत लगभग 45000 करोड़ रुपये
तक होती है। भारत में, तिलहन, जीरा,गेहूं आदि कुछ ऐसी फसलें हैं, जो टिड्डियों के झुंड द्वारा सबसे
अधिक प्रभावित होती हैं।यहां गुजरात, राजस्थान आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जो टिड्डियों के हमले से अत्यधिक
प्रभावित होते हैं। कीटों के अलावा कीड़े, कवक आदि अन्य जीव भी हैं, जो फसलों को अत्यधिक नुकसान
पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए दुनिया भर में, कवक लगभग 1250 लाख टन चावल, गेहूं, मक्का, आलू
और सोयाबीन का नुकसान करते हैं।इस प्रकार कीट, कीड़े, कवक इत्यादि खाद्य सुरक्षा और आजीविका
के लिए अभूतपूर्व खतरा बने हुए हैं।
वर्तमान समय में पादप विज्ञान और फसल सुरक्षा उत्पाद या उपकरण उपज को कीटों, कीड़ों, कवक
इत्यादि के संकट से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय लोग अपनी दैनिक प्रोटीन
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मटर, अरहर, मूंग और दाल पर अत्यधिक निर्भर हैं, और ये सभी कई
देशी व्यंजनों का आवश्यक घटक भी हैं।
लेकिन यह अनुमान लगाया गया है, कि यदि फसल सुरक्षा
उत्पादों का उपयोग नहीं किया जाता है, तो दलहनी फसल की उपज 30 प्रतिशत तक गिर सकती
है।भारत दुनिया के लगभग 20 प्रतिशत कपास का उत्पादन करता है, हालांकि कीटों के कारण कपास की
उत्पादकता को अत्यधिक खतरा है। यह फसलों के साथ-साथ किसानों की आजीविका को भी बर्बाद करता
है। ऐसी स्थिति में फसल सुरक्षा उपकरण अत्यधिक उपयोगी साबित होते हैं।फसल सुरक्षा उपकरणों में
रासायनिक फसल सुरक्षा उत्पाद, जिन्हें आमतौर पर कीटनाशक के रूप में जाना जाता है, भी शामिल हैं,
जिन्हें कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने में अत्यंत प्रभावी माना गया है।इनके उपयोग से खाद्य
उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि होती है, क्यों कि ये फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों
और कीड़ों को नष्ट कर देते हैं।यह अनुमान लगाया गया है, कि फसल सुरक्षा उत्पादों के उपयोग के बिना
वार्षिक फसल नुकसान दोगुना हो सकता है।
1960 और 1970 के दशक के दौरान फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए हरित क्रांति की शुरूआत की गयी,
जिसने देश को आत्मनिर्भर बनाया। किंतु इस दौरान अधिक उपज देने वाले बीजों के अलावा रासायनिक
खाद, सिंचाई और कीटनाशकों ने भी हरित क्रांति को सफल बनाने में योगदान दिया। फसलों की सुरक्षा
के लिए अनेकों पादप सुरक्षा उपकरण उपयोग किए जा रहे हैं,जिनमें नेपसेक स्प्रेयर (Knapsack
sprayer), मोटर चालित नेपसेक मिस्ट ब्लोअर कम डस्टर (Motorised Knapsack Mist Blower
Cum Duster), ट्रैक्टर माउंटेड बूम स्प्रेयर (Tractor Mounted Boom Sprayer), एयरो-ब्लास्ट स्प्रेयर
(Aero-Blast Sprayer) आदि शामिल हैं। नेपसेक स्प्रेयर का उपयोग छोटे पेड़ों, झाड़ियों और पंक्ति में
लगी फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किया जाता है। मोटर चालित नेपसेक मिस्ट ब्लोअर
कम डस्टर का उपयोग कीटनाशकों के साथ-साथ कवकनाशकों के छिड़काव के लिए भी किया जाता है,
जो चावल, फल और सब्जियों की फसलों के लिए फायदेमंद होता है। तरल और पाउडर दोनों रूपों में
छिड़काव के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। ट्रैक्टर माउंटेड बूम स्प्रेयर का उपयोग सब्जियों के
बगीचों, फूलों, गन्ना, मक्का, कपास, ज्वार, बाजरा आदि फसलों में छिड़काव के लिए किया जाता है।
इसी प्रकार से एयरो-ब्लास्ट स्प्रेयर, बागवानी फसलों और कपास, सूरजमुखी, गन्ना जैसी फसलों पर
छिड़काव के लिए उपयुक्त है।
भारत में कीटनाशक उद्योग, कीटनाशक अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करता है,
जिसे कृषि और सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय के माध्यम से प्रशासित किया जाता है।कीटनाशकों के
निर्माण, वितरण, निर्यात, आयात, प्रतिबंध और उपयोग को विनियमित करने के लिए केंद्रीय कीटनाशक
बोर्ड और पंजीकरण समिति बनायी गयी है। कीटनाशकों के दुरूपयोग को रोकने, उसकी गुणवत्ता की जांच
करने, परीक्षण, कीटनाशकों के उपयोग की समीक्षा आदि कृषि और सहकारिता विभाग की देख-रेख में
किए जाते हैं।फसल सुरक्षा उत्पादों के लाभों को देखते हुए, पूरे भारत में छोटे पैमाने के किसानों को
फसल सुरक्षा उत्पादों का सही तरीके से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। उदाहरण के
लिए आंध्र प्रदेश के एक शहर अडोनी में एक सार्वजनिक-निजी समिति ने कीटों के खतरे को अधिक
प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए 100,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया है।
कृषि उपज
क्षति को कम करने के लिए कीटों पर नज़र रखना आवश्यक है, तथा इसलिए भारतीय कृषि अनुसंधान
परिषद के तहत भारत स्थायी “टिड्डी चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली” (locust warning and control
system) के माध्यम से टिड्डियों के झुंड की निगरानी करता है। इनके हमलों से बचने के लिए ड्रोन और
स्प्रेयर के साथ बड़ी मात्रा में कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
कृषि में सुधार लाने के लिए पादप संरक्षण उपकरण मौजूदा और पुराने तरीकों को बदल रहे हैं,जिसका
श्रेय कृषि अनुसंधान को दिया जाना चाहिए।कृषि अनुसंधान ने हमारी दुनिया को बड़े पैमाने पर बदल
दिया है। कृषि में, वैज्ञानिक सक्रिय रूप से ऐसी प्रक्रियाओं की खोज कर रहे हैं, जो पशुधन और फसल
की पैदावार में वृद्धि करें, कृषि उत्पादकता में सुधार करें, बीमारी और कीड़ों से होने वाले नुकसान को
कम करें, अधिक कुशल उपकरण विकसित करें तथा समग्र खाद्य गुणवत्ता में वृद्धि करें।शोधकर्ता
किसानों के मुनाफे को बढ़ाने और पर्यावरण की रक्षा के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
कृषि अनुसंधान
और निरंतर परीक्षण की मदद से, आज हम जिस जीवन स्तर का आनंद ले रहे हैं, उसमें और भी अधिक
सुधार की उम्मीद की जा सकती है।कृषि अनुसंधान की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों में पशु प्रतिरक्षण,
कृत्रिम गर्भाधान, कीटों का जैविक नियंत्रण, भ्रूण स्थानांतरण, आनुवंशिक इंजीनियरिंग, टिशू कल्चर आदि
शामिल हैं। पशु प्रतिरक्षण के तहत टीकों और दवाओं की शुरूआत से पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ
है। कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा उत्तम गुणों वाली किस्मों को विकसित किया गया है। जैविक नियंत्रण के
तहत शिकारी कीड़े, जीवाणु, कवक और विषाणु आदि का उपयोग करके फसलों को खाने वाले और
बीमारी उत्पन्न करने वाले कीटों को नियंत्रित किया जाता है। भ्रूण स्थानांतरण की मदद से उचित
गुणवत्ता वाले पशु समूह प्राप्त किए जा सकते हैं। आनुवंशिक इंजीनियरिंग के द्वारा जीन्स (Genes) की
अदला-बदली करके उच्च गुणवत्ता वाले पौधे और पशु प्राप्त किए जा सकते हैं।इन उपलब्धियों के कारण
ही भारत फसलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर पाने में सक्षम हो पाया है, जो देश में कृषि अनुसंधान
की आवश्यकता और महत्व को दर्शाता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3i3Zkt0
https://bit.ly/3fCtj9U
https://bit.ly/3fCxX84
https://bit.ly/34y3hyi
https://bit.ly/3vGu4oa
चित्र संदर्भ
1. कीटनाशक दवाई का छिड़काव करती महिला का एक चित्रण (flickr)
2. फसल के कीट का एक चित्रण (flickr)
3. जैव कीटनाशकों के साथ टिड्डी नियंत्रण का एक चित्रण (Youtube)