नौकरी खोजने से पहले रोजगार से संबंधित विभिन्न चरणों और भारतीय श्रम संरचना तथा कानून को समझना महत्वपूर्ण है

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
31-05-2021 07:58 AM
नौकरी खोजने से पहले रोजगार से संबंधित विभिन्न चरणों और भारतीय श्रम संरचना तथा कानून को समझना महत्वपूर्ण है

देश महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है, और बुरी तरह त्रस्त है। स्वास्थ्य संकट के साथ-साथ बेरोज़गारी भी अपने चरम पर है। देश के विभिन्न शहरों से मजदूरों का पलायन जारी है। हालांकि पलायन से उनकी नौकरियां छूट रही हैं, परन्तु घातक कोरोना वायरस के सामने सभी घुटने टेक चुके हैं।
सामान्य शब्दों में नौकरी का सीधा सा अर्थ होता है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी सेवा देता है जिसके बदले वह दूसरा व्यक्ति, कंपनी अथवा संस्था अपने श्रमिक को धन या कोई अन्य प्रकार का लाभ प्रदान करती है।
अर्थशास्त्रियों द्वारा काम को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है : औपचारिक तथा अनौपचारिक। वस्तुतः दोनों प्रकार के काम में धन या लाभ के बदले में नौकरी और सेवा देने की समानता के साथ ही कुछ अंतर भी होते हैं, जैसे अनुबंध, मुआवजा और नौकरी की सुरक्षा आदि।
औपचारिक कार्य के अंतर्गत कोई भी कंपनी एक कर्मचारी को समझोते के आधार पर किसी निश्चित काम के लिए रखती है। जहाँ कर्मचारी को वेतन,मजदूरी या स्वास्थ्य लाभ जैसी सुविधाओं के साथ निर्धारित दिनों तथा घंटों के अंतर्गत ही काम करना पड़ेगा। आमतौर पर यह हस्ताक्षरित अनुबंध न होकर उन समझौतों के आधार पर काम करते हैं जो की नियोक्ता ने कर्मचारी की भर्ती के समय प्रस्तुत किये थे। औपचारिक कार्य समझौते में कर्मचारियों के वार्षिक प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है, और प्रदर्शन के आधार पर ही उन्हें पदोन्नत तथा उनके वेतन में वृद्धि की जाती है। वहीं अनौपचारिक कार्य में नियोक्ता कर्मचारी को बिना किसी समझौते के आधार पर अस्थाई रूप से काम पर रखता है। कार्य के अंतर्गत कर्मचारी स्वास्थ्य लाभ से वंचित रहते हैं, और काम के घंटे भी अनिश्चित रहते हैं। यानी माना पहले हफ्ते आपसे 30 घंटों का काम लिया गया, हो सकता है अगले हफ्ते 10 ही घंटों का काम लिया जाय। अनौपचारिक श्रमिकों की तुलना ठेकेदारों के अंतर्गत कार्यरत श्रमिकों से की जा सकती है। उन्हें कभी भी किसी भी अन्य नौकरी में भेजा जा सकता है। आमतौर पर अनौपचारिक श्रमिकों को नकदी में भुगतान किया जाता है, परन्तु चेक से भुगतान करने पर किसी भी प्रकार का कर नहीं काटा जायेगा। औपचारिक और अनौपचारिक कार्य के बीच कई भिन्नताएं भी होती हैं। जैसे अनौपचारिक कार्य अल्पकालीन, अस्थिर तथा आमतौर पर मौसमी होता है और निश्चित साल के निश्चित महीनों या हफ़्तों के लिए कर्मचारी को रखा जाता है। वहीं दूसरी ओर औपचारिक कर्मियों को प्रशक्षित और शिक्षित करने में कंपनी अपने समय तथा धन का भी निवेश करती है, ताकि कर्मचारियों की कुशलता बढ़ने से कंपनी को फायदा हो सके। साथ ही औपचारिक कर्मियों को अनौपचारिक कर्मियों की तुलना में अधिक मानदेय दिया जाता है, यह अंतर इसलिए भी है क्यों की अनौपचारिक कार्य की तुलना में औपचारिक कार्य करने के लिए उच्च स्तर की शिक्षा और प्रशिक्षण ज़रूरी होता है।
भारत में कार्यरत सभी श्रमिकों में से लगभग 81% अनौपचारिक क्षेत्र में काम करके जीवन यापन करते हैं, औपचारिक क्षेत्र में केवल 6.5% लोग ही काम करते हैं। भारत में 94 प्रतिशत से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, असंगठित क्षेत्र के भीतर सभी गैर-लाइसेंसी, स्व-नियोजित या अपंजीकृत उद्द्योग आते हैं जैसे - जरनल स्टोर, हस्तशिल्प और हथकरघा श्रमिक, ग्रामीण व्यापारी, किसान, आदि। वही संगठित क्षेत्र में सार्वजानिक कंपनियां, पंजीकृत व्यवसाय जैसे की निगम, कारखाने, शॉपिंग मॉल, बड़े होटल और बड़े व्यवसाय शामिल हैं। भारतीय श्रम मंत्रालय ने 2008 की रिपोर्ट के अंतर्गत असंगठित श्रमिकों को चार समूहों: व्यवसाय, रोजगार की प्रकृति, विशेष रूप से संकटग्रस्त श्रेणियों और सेवा श्रेणियों के आधार पर वर्गीकृत किया है। 94 प्रतिशत श्रमिकों की निर्भरता के बावजूद असंगठित क्षेत्र ने 2006 में भारत के राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद में केवल 57 प्रतिशत की भागीदारी दी। भारत में अकेले कृषि, डेयरी, बागवानी और संबंधित व्यवसायों में 41.49 प्रतिशत श्रमिक कार्यरत हैं। 2008 में संगठित क्षेत्र में प्रति कंपनी 10 से अधिक कर्मचारियों के साथ संगठित निजी क्षेत्रों में 5 मिलियन श्रमिक कार्यरत थे। 2.2 मिलियन निजी स्कूल और अस्पताल जैसी सामाजिक सुविधाओं में संलग्न हैं, 1.1 मिलियन पर वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंक, बीमा और रियल एस्टेट शामिल हैं। आंकड़ों के अनुसार संगठित सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में 5.5 मिलियन महिलाएं और 22 मिलियन पुरुष कार्यरत हैं।
भारत श्रमिकों के हितों के देखते हुए कई श्रम क़ानून भी बनाये गए जिनमे बाल श्रम प्रतिबंधित करने, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने, ट्रेड यूनियन जैसे महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किये गए हैं।
व्यावसायिक क्षेत्र में भारत में कई कठोर नियम हैं जैसे कि अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में कर्मचारियों की सीमित संख्या, छंटनी पर नियोक्ताओं की सीमाएं , और कंपनियों में श्रम में बदलाव के लिए सरकार की मंजूरी इत्यादि। भारत में मार्च 2020 से जारी लॉकडाउन के दौरान लगभग 75% से अधिक श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी। कोरोना महामारी के मद्देनज़र श्रमिकों के व्यापक विस्थापन को देखते हुए भारतीय इतिहास में पहली बार विभिन्न राज्यों के द्वारा कठोर श्रम कानूनों में ढील दी गयी। हालाँकि देश में विभिन्न श्रमिक संघ सरकार के फैसले के बहुत खुश नहीं हैं। उनका कहना है की यह कानून नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों को अधिक आसानी से काम पर रखने और निकालने की छूट देगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इसमें श्रमिकों के हित में कुछ भी नहीं हैं, यह श्रमिकों द्वारा बेहतर शर्तों और मजदूरी संबंध में नियोक्ता पर पड़ने वाले दबाव को काफी काम कर देगा।

संदर्भ
https://bit.ly/34adNM0
https://bit.ly/2Snh5sr
https://bit.ly/3woycsP
https://bit.ly/34cyJSB
https://bit.ly/2TeNRfZ
https://bit.ly/3wFWPS3
https://bit.ly/346y6Ka

चित्र संदर्भ
1. उदयपुर, राजस्थान में सभी ट्रेड यूनियनों की रैली का एक चित्रण (wikimedia)
2. दिहाड़ी श्रमिकों का एक चित्रण (wikimedia)
3. बाल श्रम प्रतिबन्ध नोटिस का एक चित्रण (wikimedia)