तंबुर (Tambur) लकड़ी से बने लंबी गर्दन वाले तंत्रीय वाद्ययंत्रों को कहा जाता है। इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है, जिसमें तांबूर, तनबूर, तार आदि शामिल हैं। तंबुर को आधुनिक गिटार का पूर्वज कहा जा सकता है, जिसकी उत्पत्ति कई हजार साल पहले मेसोपोटामिया (Mesopotamia) और दक्षिणी और मध्य एशिया (Asia) में हुई थी। यूं तो कई संस्कृतियों ने इस उपकरण की समान शैलियों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए अपनाया है, किंतु प्रारंभिक उपयोग की बात करें, तो माना जाता है, कि इसके सबसे पहले उपयोगों में से एक उपयोग बीमार व्यक्ति का उपचार करना, उसे शांत करना और आंतरिक संतुलन का निर्माण करना था। इस प्रतीकवाद का उपयोग 18वीं शताब्दी के दौरान उत्तरी अफ्रीका (Africa) और मध्य पूर्व के धार्मिक पंथों द्वारा मुख्य रूप से किया गया, जिसे ज़ार (Zaar) के नाम से जाना जाता है।
जार, शब्द उस दानव या आत्मा के लिए प्रयोग किया गया है, जो व्यक्तियों को अपने वश में करती है। ज़ार अनुष्ठान के द्वारा उस दानव या आत्मा को व्यक्ति से बाहर निकाला जाता है। ज़ार अनुष्ठान में अक्सर ऐसे संगीत को बजाया जाता है, जो अनियंत्रित और उग्र हों तथा निरंतर एक स्वर में चलता रहे। माना जाता था, कि यह संगीत जब प्रभावित व्यक्ति सुनता था, तो संगीत और गीत के साथ उसकी आत्मा शुद्ध होती जाती थी। इस अनुष्ठान के लिए वाद्ययंत्रों का एक विशिष्ट समूह चुना जाता था, जिनमें तंबुर, टैम्बोरिन (Tambourine), लयबद्ध ड्रम आदि शामिल थे। आइए इन दो वीडियो के माध्यम से तंबूर के कुछ सुखदायक संगीत को सुनें और ज़ार अनुष्ठान में इसकी भूमिका को देखें।
संदर्भ
https://bit.ly/3fwP8rv
https://bit.ly/3vxfora
https://bit.ly/3fSfuTD