"जय जवान जय किसान" 1964 में (भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान) भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल
बहादुर शास्त्री के द्वारा दिया गया था। यह लोकप्रिय नारा यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है, की हमारे देश भारत में
सुरक्षा के बाद खेती-किसानी ही पहली प्राथमिकता है। कोरोना के कठिन दौर में खेतों में उगने वाले अनाज ने ही
जीवन को सामान्य रूप से संचालित रखा है। देश में अनाज के पर्याप्त भंडारों तथा प्रचुरता से उगने वाले अनाज के
कारण देश में अन्न की कोई कमी नहीं है, और शायद यही कारण है की बहुत कम बार ही हम दैनिक दिनचर्या में
अनाज का ज़िक्र करते हैं। परंतु कृषि के इतिहास और वर्तमान परिस्थितियों से परिचित होना भी हम सभी के लिए
उतना ही आवश्यक है।
पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता ,की आधुनिक मानव लगभग 200,000-300,000 वर्षों से
अस्तित्व में है। हम सभी यह भली भांति जानते हैं की हमारे पूर्वज (आदिमानव के रूप में ) जंगली जानवरों का
शिकार कर के खाते थे। उन्हें अधिक की आवश्यकता भी नहीं थी। परन्तु समय के साथ कबीलों की संख्या बढ़ने
लगी। चूँकि सीमित क्षेत्र के अंदर ही शिकार किया जाता इसलिए शिकार कम पड़ने लगा, और भोजन के अभाव में
भूखे मरने की स्तिथि उत्पन्न होने लगी। ऐसा अनुमान लगाया जाता है की आज से 10,000 साल पहले, इंसानो की
आबादी लगभग 6 से 10 मिलियन थी। धरती पर मौजूद भोजन (शिकार) से केवल 10 मिलियन लोगों का पेट ही भर
सकता था।
परंतु जैसा की हम अक्सर सुनते हैं "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है"।
आज से अनुमानित 10,000 से 15 ,000 साल पूर्व मनुष्य प्रकृति को अपने अनुरूप ढालना सीखने लगा,आज से अनुमानित 10,000 से 15 ,000 साल पूर्व मनुष्य प्रकृति को अपने अनुरूप ढालना सीखने लगा, और धरती पर चारों ओर लहराती कृषि का उदय
हुआ। हालांकि मानव ने भूख मिटाने के लिए कंद-मूल फलों का सहारा भी लिया परन्तु यह पर्याप्त न था। कृषि की
खोज मानव इतिहास में क्रांतिकारी साबित हुई। धीरे-धीरे कृषि का चलन मेसोपोटामिया, चीन, दक्षिण अमेरिका और
उप-सहारा अफ्रीका समेत विभिन्न महाद्वीपों में फैलने लगा। सर्वप्रथम कृषि की खोज पाषाण युग के समानांतर ही
हुई क्यों की पाषाण युग की कलाकृतियों में अनेक ऐसी हैं, जिनमे कृषि सम्बंधित चित्र तथा औजार चित्रित हैं। पहली
बार खेती जंगली पौधों , कंदमूल आदि से शुरू की गयी । साथ ही इंसान ने जानवरों को पालना भी शुरू कर दिया था।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, मनुष्य उन पौधों और पशुओं के प्रजनन करने में अधिक परिष्कृत होने लगे। आज जिस
भी तरह के अनाज को हम खाते हैं, वह प्राचीन काल के किसी न किसी कंद मूल अथवा पौधे की अधिक विकसित
नस्ल है। इमर, कॉर्न, गेहूं, फिर जौ, मटर, मसूर, कड़वा वीच को शुरुआती फसलों के तौर पर देखा जाता है। 10,000
से 15,000 साल पूर्व के निकट ही हिमयुग भी समाप्त हुआ इसलिए यह मान सकते हैं की इसके समाप्त होने के बाद
हवा की नमी और कम जमी हुई मिट्टी, कृषि करने के लिए सबसे उपयुक्त परिस्थिति थी। खेती करने में सक्षम होने
के कारण अब मनुष्य के पास केवल भोजन खोजने के अलावा अपने समय को अन्य कामों जैसे व्यापार, जानवरों के
विकास, औजारों तथा उपकरणों के निर्माण जैसे अन्य कामों में लगा सकते थे। कृषि का विकास मानव सभ्यता में
क्रांतिकारी साबित हुआ, और हम आज के आधुनिक शहरों और विकसित सभ्यता का निर्माण कर पाए।
उत्तर प्रदेश जिले के प्रयागराज जिले में बेलन नदी घाटी पर स्थित चोपानीमांडो एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है,
जो खाद्य संग्रह, उत्पादन में मनुष्य के विकास के प्रमाण देता है।
इस साइट का विस्तार 15000 वर्ग किलोमीटर के
अंदर है। यहाँ हुए उत्खनन के दौरान 7000-6000 ईसा पूर्व के छत्ते की झोपड़ियां, हाथ से बने तार , मिट्टी के बर्तन,
और चावल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह पुरातात्विक स्थल लखनऊ से अधिक दूर नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश के
प्रयागराज जिले में ही कोल्डीहवा नामक एक अन्य पुरातात्विक स्थल पर 7000 ईसा पूर्व में की जाने वाली चावल की
खेती के भी प्रमाण मिले हैं। कार्बन डेटिंग परिणाम स्वरूप यहाँ 7000 ईसा पूर्व से मिट्टी के बर्तनों और चावल के
अवशेष मिले हैं, इसके अलावा यहाँ मवेशियों के खुर के निशान और बकरी, भेड़, घोड़े, हिरण और जंगली सूअर की
हड्डियां तथा मवेशियों को पालतू बनाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। इन प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की आज से कई
वर्षों पूर्व यहाँ पर धान की खेती की जाती थी।
संदर्भ
https://bit.ly/3fAjM24
https://bit.ly/3oDGWII
https://bit.ly/346uWGf
https://bit.ly/3hMwVaI
https://bit.ly/2T0BVOH
चित्र संदर्भ
1. ईंट में हान राजवंश मकबरे की प्राचीन चावल के उद्पादन को दिखा रही है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
2. स्लैश एंड बर्न शिफ्टिंग खेती, थाईलैंड का एक चित्रण (wikimedia)
3.चोपनी मांडो और कोल्डिहवा के अवशेषों का एक चित्रण (prarang)
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