विश्व स्वस्थ संगठन के मानक के अनुसार प्रत्येक 1000 लोगो के लिए एक चिकित्सक की जरुरत होती है जबकि भारत में यह आकड़ा 1674 है; इसका मतलब यह है की भारत में एक चिकित्सक पर 1674 लोगो की चिकित्सा की जिम्मेदारी है जो विश्व स्वस्थ संगठन के मानक से कहीं ज्यादा है | हम और आप इसी जानकारी से अंदाज़ा लगा सकते हैं की अगर कोई बहोत बड़ी स्वास्थ्य आपदा आयी तो चिकित्स्कों की भारी कमी पड़ेगी | जैसा की अभी कोरोना दूसरी लहर में हम सभी को अस्पतालों में बिस्तर ,ऑक्सीजन और चिकित्सक की अधिक संख्या की आवश्यकता पड़ रही है, अगर शुरू से एक निश्चित अनुपात को ध्यान में रखा जाता जैसे की कितने लोगो पर कितने चिकित्सक होने चाहिए और साथ ही कितने बिस्तर की आवश्यकता पड़ेगी | इन सभी चीज़ों का अगर शुरू से ध्यान रखा जाता तो शायद आज के समय में जो देश के हालात हैं शायद उतने ख़राब ना रहते |
भारत में सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त या बहुत ही कम पैसों में इलाज किया जाता है| साथ ही साथ निजी क्षेत्र को भी अनुमति के साथ अस्पताल खोलने तथा इलाज करने की अनुमति है | भारत में निजी अस्पतालों की संख्या सरकारी अस्पतालों की तुलना में काफी अधिक है | आम नागरिक सुविधाओं के आभाव में निजी अस्पतालों का रुख करता है साथ ही अधिक कीमत भी चुकाता है | सरकार के द्वारा विभिन्न योजनIए भी चलायी जा रही है जिन्हे सरकारी तथा निजी अस्पतालों में लागु किया जा रहा है| सरकार के द्वारा ये प्रयास किया जा रहा है की देश के नागरिकों को कम मूल्य पर अच्छी स्वस्थ्य सुविधायें मिल सके जिसके लिए सरकार के द्वारा चलायी जा रही प्रमुख योजनाओं में से एक है वित्तपोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना) | यह योजना भारत में सार्वजनिक व निजी सूचीबद्ध अस्पतालों में माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य उपचार के लिए प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक की धन राशि लाभार्थियों को मुहया कराती है। 10.74 करोड़ से भी अधिक गरीब व वंचित परिवार (या लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) इस योजना के तहत लाभ प्राप्त कर सकतें हैं। भारत में कई सरकारी वित्त-पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं रही है जिनके अंतर्गत विभिन्न राज्यों में प्रति परिवार 30,000 रुपये से लेकर 3,00,000 रुपये तक की धन राशि मुहैया कराई जाती थी जो असमानता उत्पन करती थीं। इसमें समस्त लाभार्थियों को सूचीबद्ध माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रति परिवार प्रति वर्ष 5,00,000 रुपये मुहैया कराती है। इस योजना के तहत निम्नलिखित उपचार निशुल्क उपलब्ध हैं - चिकित्सिक परीक्षा, उपचार और परामर्श ,अस्पताल में भर्ती से पूर्व ख़र्चा,दवाइयाँ और चिकित्सा उपभोग्य,गैर-गहन और गहन,स्वास्थ्य सेवाएँ,नैदानिक और प्रयोगशाला जांच,चिकित्सा आरोपण सेवाएं (जहां आवश्यक हो),अस्पताल में रहने का ख़र्चा,अस्पताल में खाने का ख़र्चा,उपचार के दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताएँ और अस्पताल में भर्ती होने के बाद 15 दिनों तक की देखभाल |
भारत का संविधान सभी के लिए "स्वास्थ्य का अधिकार" सुनिश्चित करने के लिए सरकार को बाध्य करता है। प्रत्येक राज्य को स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए मुफ्त सार्वभौमिक सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता है। हालांकि भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की भरी कमी है | स्वास्थ्य प्रणाली की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विभाजित है | संघीय स्तर पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पास स्वास्थ्य नीति निर्णयों के बहुमत पर नियामक शक्ति है लेकिन स्वास्थ्य देखभाल वितरण में सीधे शामिल नहीं है। मंत्रालय में दो विभाग शामिल हैं जिसमें से पहला स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग जो की अपने स्वयं के प्रशासनिक निकाय के नेतृत्व वाले प्रत्येक कार्यक्रम के साथ सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के आयोजन और वितरण के लिए जिम्मेदार है और दूसरा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग जो अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा स्वास्थ्य अनुसंधान के विकास और नैतिकता दिशानिर्देशों, प्रकोप जांच और इस तरह के प्रशिक्षण के लिए उन्नत अनुसंधान प्रशिक्षण और अनुदान का प्रावधान करने के लिए जिम्मेदार है | 2014 में सरकार ने आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के संघीय मंत्रालय की स्थापना की। यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में अनुसंधान को विकसित और बढ़ावा देता है | सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product GDP) के प्रतिशत के रूप में कुल सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य व्यय 3.9 प्रतिशत अनुमानित है जो दुनिया के औसत 9.9 प्रतिशत से काफी कम है। सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य व्यय का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है | स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय हाल ही में 12 वीं योजना (2012-2017) की अवधि के दौरान सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य के बारे में एक आधिकारिक विज्ञप्ति के साथ सामने आया। उसके अनुसार ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में भी स्थिति चिंताजनक है जबकि सबसे अधिक ग्रामीण जनसंख्या घनत्व वाले हिमाचल प्रदेश में सबसे अच्छा स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा है, मध्य प्रदेश में चिकित्स्कों के बिना स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या सबसे अधिक है और ग्रामीण भारत में 12,300 से अधिक विशेषज्ञ डॉक्टरों (लगभग 64%) की कमी है, 3,880 डॉक्टरों के लिए रिक्ति और 9,814 स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। ग्रामीण भारत में लगभग 47% अस्पताल में प्रवेश ऋण और परिसंपत्तियों की बिक्री के माध्यम से किया जाता है, ग्रामीण भारत में लगभग 30% लोगों ने आर्थिक तंगी के कारण इलाज का विकल्प नहीं चुना तथा 39 मिलियन भारतीय हर साल बीमार होने के कारण गरीबी की ओर धकेल दिए जाते हैं |
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में अंतराल को संबोधित करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञ की आम सहमति यह है कि स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक व्यय को मौजूदा 1% से दोगुना जीडीपी के 2% से अधिक होना चाहिए। लेकिन चिंता की बात यह है कि खर्च बढ़ने के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे की कमी और चिकित्स्कों की पहुंच ग्रामीण भारत के लिए बड़ी चिंता बनी हुई है। यदि आप विश्व स्वास्थ्य संगठन को देखें तो प्रस्तावित सार्वभौमिक स्वास्थ्य व्याप्ति वास्तव में एक महत्वाकांक्षी विचार है |
संदर्भ
https://bit.ly/3uYcCek
https://bit.ly/3bwj0lk
https://bit.ly/2QlRJKW
चित्र संदर्भ
1. चिकित्सकों का एक चित्रण (wikimedia)
2. कब्रिस्तान का एक चित्रण (flickr)
3. तापमान जाँच का एक चित्रण (Flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.