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कोरल रीफ (Coral reef) या प्रवाल भित्तियां अंडमान और निकोबार द्वीप के 2,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हुए हैं,जो इस द्वीप समूह के कुल क्षेत्रफल का लगभग छह प्रतिशत है। पूर्वी किनारे पर झालरदार चट्टानें और पश्चिमी किनारों पर अवरोधी चट्टानें एक सुंदर दृश्य बनाती हैं। इन चट्टान में, क्लैम (clams), स्पॉन्ज (sponge), घोंघे (snail), एनीमोन (anemones), केकड़े (crabs), स्टारफिश (starfish), कीड़े (worms), झींगा (shrimp), लॉबस्टर (lobster) आदि मिलते हैं, इनके अलावा विभिन्न प्रजातियों की मछलियां जैसे डैम्फिश (damselfish), ग्रुपर्स (groupers), सर्जनफिश (surgeonfish), बटरफ्लाईफिश (butterflyfish) आदि भी यहां पाई जाती है।
हिंद महासागर में प्रवाल भित्तियों का 65% हिस्सा स्थानीय खतरों (जैसे, तटीय विकास, अत्यधिक मछली पकड़ना,समुद्र-आधारित प्रदूषण और/या जल-आधारित प्रदूषण) से तनाव में है। जिनमें से एक तिहाई प्रवाल भित्तियों को अधिक जोखिम के रूप में मूल्यांकन किया गया है। क्लोजर अवलोकन से पता चलता है कि खतरे वाले क्षेत्रों के साथ-साथ महाद्वीपीय तटों पर ध्यान आवश्यक है जहां 90 प्रतिशत से अधिक चट्टानें खतरे में हैं। दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों को गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है जो उनके अस्तित्व को खतरे में डालते हैं और ये पहले ही कई स्थानों पर गिरावट और विनाश का कारण बन चुके हैं। वर्तमान में नए प्रबंधन कार्यों की सख्त जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चट्टानें आगे बनी रहें।
प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए शैलों और कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं। प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है। ये कम गहराई पर पाए जाते हैं, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के रोशनी व ऑक्सीजन की कमी होती है। प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स (polyps) नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा, कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।

भारत में ये चट्टाने मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar), पाक खाड़ी (Palk bay), लक्षद्वीप तथा इसके अलावा अंडमान निकोबार, कच्छ की खाड़ी (Gulf of Kutch), में भी पायी जाती हैं। 7,500 किलोमीटर और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियों में फैली तटरेखा के साथ भारत में बहुत कम प्रवाल भित्ति वाले क्षेत्र हैं। उपर्युक्त स्थलों के अतिरिक्त भारत के अन्य क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियां अनुपस्थित है, जैसे कि बंगाल की खाड़ी में ये चट्टान अनुपस्थित है जिसकी प्रमुख वजह नदियों द्वारा लाए गए ताजे पानी और गाद की विशाल मात्रा है। समुद्र में स्वच्छ जल का अधिक प्रवाह लवणता को सामान्य के आधे से भी कम कर देता है, अतः यहाँ प्रवाल का विकास नहीं हो पाता है। इसके अलावा अधिक जमाव, प्रवाल विकास के लिए आदर्श स्थिति प्रदान नहीं करता है।
कोरल रीफ समुद्री जीवन के हजारों रूपों के लिए आवास प्रदान करते हैं और उच्च समुद्रों से तट रेखाओं की रक्षा करते हैं।
प्रवाल भित्तियाँ व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण सजावटी मछलियों, और मोलस्क जाति के जंतुओं आदि कई प्रजातियों के लिए आवास स्थल के रूप में कार्य करती हैं। पारंपरिक रूप से यह स्थानीय निवासियों के लिए भोजन का एक प्रमुख स्रोत रहे हैं। भारत में ये चट्टानें उन समुदायों को आर्थिक रूप से सुरक्षा प्रदान करती हैं जो इनके पास रहते हैं। मन्नार की खाड़ी के आसपास के गांवों में सदियों में मछुआरे कोरल रीफ से ही मछली पकड़ते रहे हैं, मोती चुनते हैं, और समुद्री खरपतवार लाते हैं। लक्षद्वीप में भी ये चट्टानें मानसून के मौसम में भोजन प्राप्त करने का एक अच्छा साधन हैं और यह मछलियों का चारा भी प्रदान करता है जो वाणिज्यिक टूना (Tuna) मछली को पकड़ने का आधार बनता है। ये प्रदूषकों के निम्नीकरण, मृदा निर्माण तथा जल के पुनर्चक्रण एवं शुद्धिकरण में भी भूमिका निभाती हैं। यह समुद्री तटरेखा को धाराओं, तरंगों और समुद्री तूफानों के प्रतिरोध से बचाती है, जिससे जान-माल की क्षति और क्षरण को रोकने में सहायता मिलती है। प्राकृतिक समुद्री पुलिन (Beach) के निर्माण में भी प्रवाल सहयोगी होते हैं। विशाल जैविक संपदा के भंडार होने के कारण, प्रवाल आर्थिक और पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान करते हैं। प्रवाल भित्तियों के निकट गोताखोरी, पर्यटन, मत्स्यन, होटल, रेस्तरां, और अन्य व्यवसायों को रोजगार प्राप्त होता है। ये कई देशों के लिए एक आर्थिक सहारा भी हैं, और उनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे कि कैरेबियन राष्ट्र बेलीज (Caribbean nation of Belize)। ये प्रवाल भित्तियां इस देश की सकल घरेलू उत्पाद में 10 से 15 प्रतिशत के बराबर का योगदान करती हैं। जो मुख्य रूप से पर्यटन और मत्स्य पालन के माध्यम सेआती है। और बेलीज अकेला देश नहीं है जहां ये प्रवाल भित्तियां आर्थिक सहारा हैं। कम से कम 94 देशों में ये भित्तियां गोताखोरी, पर्यटन, मत्स्यन, होटल, रेस्तरां आदि जैसे व्यवसायों को रोजगार प्राप्त कराती हैं।

परंतु दुनिया भर में प्रवाल-भित्ति या मूंगे की चट्टानों को जैसा नुकसान आजकल पहुंच रहा है, उसे देख कर लगता है कि इनका अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है। मानव गतिविधियों से समुद्री तापमान बढ़ने से प्रवाल का क्षय हो रहा है और यदि इसे रोका नहीं गया, तो ये समाप्त हो जाएंगे। इसके साथ ही कई अन्य जीव और साथ ही द्वीप भी खत्म हो जाएंगे। ब्लीचिंग (bleaching) या विरंजन से भी इन्हें खतरा है। जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल जूजैंथिली को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं। ब्लीचिंग से कोरल तुरंत निर्जीव नहीं होते परंतु बार-बार होने वाले विरंजन, जलवायु परिवर्तन और महासागर अम्लीकरण से प्रवाल का क्षरण होता जा रहा है। आज इनको संरक्षण की आवश्यकता है।पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत में प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के लिए प्रबंधन और दिशा-निर्देश देता है। यदि कोरल रीफ क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है तो यह राज्य वन्य जीवन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। साथ ही 1991 का तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone- CRZ) अधिसूचना सभी समुद्री संसाधनों को संरक्षण देती है। सभी प्रकार की प्रवाल भित्तियों को CRZ1 श्रेणी के अंतर्गत संरक्षित किया जाता है। हालांकि प्रवाल भित्ति मृत होने के बाद भी पुनर्जीवित हो सकती हैं, लेकिन इसमें बहुत समय लगता है, जो कुछ वर्षों से लेकर दशकों तक हो सकता है।उनके प्राकृतिक वातावरण को समझ कर उन्हें और अधिक प्रभावी ढंग से संरक्षित किया जा सकता है। वर्तमान में इंडोनेशिया (Indonesia) और स्पेन (Spain) में इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा हैं। प्रत्येक परियोजना की शुरुआत में, इनके टुकड़े एकत्र किए जाते हैं और उनके विकास के लिए अनुकूल स्थानों में रखे गए ठोस संरचनाओं में प्रत्यारोपित किए जाते हैं। कोरल को सीधे उनके प्राकृतिक वातावरण में भी प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3gGkVXU
https://bit.ly/2R2vkCj
https://bit.ly/32NYzvr
https://bit.ly/3gIwOwq
https://bit.ly/32MGf5I
https://bit.ly/2PrPXHU
https://bit.ly/3sMiohi