रोज़गार, और रोज़ी-रोटी की तलाश में इंसान हजारों वर्षों से एक देश से दूसरे देश में प्रवास करते आ रहे हैं। 18 वीं शताब्दी के अंत तक, भारत से लोगों के प्रवास की दर ने पूरी गति पकड़ ली। तब पूरी दुनिया में वैश्वीकरण, औद्योगीकरण बड़ी ही तेज़ी से फैल रहा था। विकसित देशों में बड़े पैमाने पर उपनिवेशवाद बढ़ रहा था। उस समय अधिक सांख्य में कुशल कारीगरों और मजदूरों की आवश्य्कता पड़ी। चूँकि भारतीयों के सामने भी रोज़ी रोटी कमाने की ज़िम्मेदारी थी, अतः वे भी बड़ी संख्या विदेशों की ओर रुख करने लगे। अधिकतर प्रवासी दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया की ओर गए। उस समय दूसरे देशों में जाने वाले अधिकतर प्रवासी अकुशल थे, उनमें से अधिकतर मजदूर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के मूल निवासी थे। विदेशों में काम करने वाले अधिकतर मजदूरों से कुछ खास अनुबंधों के आधार पर काम लिया जाता था। अनुबंधों का भरपूर दुरप्रयोग भी किया जाता, मजदूरों पर कई प्रकार के अमानवीय अत्याचार भी किये जाते थे। मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं भी बेहद आम थी। ऐसे माहौल में मजदूरों में असंतोष बढ़ रहा था, वे बड़ी संख्या में भारत वापस आने लगे। अनुमान में मुताबिक 1834 से 1937 के बीच 30.2 मिलियन लोगों ने रोज़ी-रोटी और अन्य सुख सुविधाओं की तलाश में भारत छोड़ा था। तथा जिसमें से 23.9 मिलियन लोग वापस भारत लौट आये थे। 1990 के दशक के अंत तक अमेरिका में आद्योगिक इकाइयों के बढ़ते विस्तार ने एक बार फिर युवाओं में प्रवासी रोज़गार हेतु इच्छा उत्पन्न कर दी। और आज भी विदेशों में रह रहे प्रवासियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। आज पूरी दुनिया में लगभग 15 मिलियन लोग ऐसे हैं जो अनेक कारणों से भारत से विस्थापन कर चुके हैं।
उन्हें आमतौर पर अनिवासी भारतीय NRI (एनआरआई) के रूप में जाना जाता है। आज पूरी दुनिया के लगभग 48 देशों में भारतीय प्रवासी रहने लगे हैं। तथा लगभग 11 देशों में ये लोग वहां की आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। और वहां के महत्वपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक फैसलों को लेने में उनका प्रमुख योगदान होता है। पिछले चार दशकों में विदेशों से आने वाले पैसे में लगातार इजाफा हुआ है, जो कि विदेशों में रह रहे भारतीय नागरिकों द्वारा लाया गया है। भारत को प्रतिवर्ष विदेशों में रह-रहे भारतीय नागरिकों से लगभग 70 बिलियन डॉलर प्राप्त होता है। जो की भारत सरकार के लिए राजस्व का भी एक बड़ा श्रोत हैं। साथ ही वोटर तबका होने के कारण यह प्रवासी नागरिक चुनावों में भी गहरा प्रभाव डालते हैं।
हालाँकि अप्रवासी भारतियों का एक बड़ा तबका विदेशों में सम्पन्नता से बसर कर रहा है। परंतु हाल में ही पूरे विश्व में व्याप्त कोरोना महामारी COVID-19 ने उनके सामने भी एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी है। COVID-19 महामारी के कारण दो-पांच भारतीय-अमेरिकी अपने दीर्घकालीन वित्तीय स्थिरता के बारे में चिंतित हैं। वे अपने स्थिर भविष्य की आर्थिक स्थति को लेकर चिंतित हैं। और धीरे-धीर विदेशों में रहने वाले भारतीय समुदाय अपने जीवन जीने की शैली को बदल रहे हैं। जहां वे अपने खर्चों को कुछ बेहद आधारभूत आवश्यकताओं तक सीमित कर रहे हैं। फाउंडेशन फॉर इंडिया और इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस) ने एक रिपोर्ट में कहा है, की कोरोना महामारी ने लगभग 30 प्रतिशत भारतीय प्रवासियों को आर्थिक रूप से प्रभावित किया है। ये लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं, अथवा इंटर्नशिप (Internship) से बाहर हो चुके हैं। छह में से पांच भारतीय-अमेरिकियों के बीच रिश्तों में किसी प्रकार की सकारात्मकता नहीं देखी गयी है। वरन इसके विपरीत उनमें तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं बड़ी हैं। भारत दुनिया में सबसे बड़ा प्रवासी मुल्क है। हांगकांग से कनाडा और न्यूजीलैंड से स्वीडन तक सभी देशों में बड़ी ही तेज़ी के भारतीय प्रवासियों की संख्या बढ़ रही थी । परन्तु महामारी ने पूरी प्रक्रिया को स्थगित कर दिया है हाल ही में भारतीय छात्रों ने विदेशों में अलग-अलग स्थानों पर प्रवेश लिया था, परंतु वायरस के फैलाव के बाद नए नामांकनों पर भी रोक लगा दी है। साथ ही देश अपनी सीमाओं को भी बंद कर रहे हैं। और प्रवासियों को अपने देशों को लौटने पर मजबूर भी कर रहे हैं। इसी तरह, खाड़ी देशों से 300,000 से अधिक लोग भारत लौटने की मांग कर रहे हैं क्योंकि उन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी हैं।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.