ट्यूलिप (Tulip): प्रकृति की सुंदरता का पर्याय

लखनऊ

 22-04-2021 01:21 PM
बागवानी के पौधे (बागान)

प्रकृति ने इंसानो को अनेक महत्वपूर्ण उपहार दिए है, जिनमे से पुष्प (फूल) सर्वाधिक सुंदर होते हैं। ट्यूलिप (Tulip) का पुष्प भी कुदरत के दिए कुछ बेहद शानदार उपहारों में से एक है।
ट्यूलिप वसंत ऋतु में खिलने वाला एक बहुत सुन्दर पुष्प होता है, जो की भारत में कश्मीर और उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ट्यूलिपI (Tulipa) होता है जो कि ईरानी भाषा के शब्द टोलिबन अर्थात पगड़ी से निकला है, क्यों की इस पुष्प को उल्टा करने पर यह पगड़ी के आकार का दिखाई पड़ता है। यह फूल उत्तरी ईरान, तुर्की, जापान, साइबेरिया तथा भूमध्य सागर के निकटवर्ती देशों में प्रचुरता से पाया जाता है।
ट्यूलिप वास्तव में एक जंगली फूल था, जो मूल रूप से मध्य एशिया में उगाया जाता था। इन फूलों की खेती सबसे पहले 1000AD में तुर्क ने की थी। 1554 ई0 में यह पुष्प तुर्की से ऑस्ट्रिया(Austria), 1571 ई0 में हॉलैंड (Holland) और 1577 ई0 में इंग्लैंड तथा धीरे-धीरे अपनी अद्वितीय खूबसूरती की वजह से पूरे विश्व के हिमालयी क्षेत्रों में यह विस्तारित हो गया। इस पुष्प का वर्णन सर्वप्रथम 1559 में गेसनर (gesene) के लेखों तथा चित्रकारियों में मिलता है। जिसके आधार पर ट्यूलिप गेसेनेरियाना (Tulipa gesenereana) वंश का नामकरण हुआ। अपने बेहद आकर्षक रंग-रूप की वजह से पूरे यूरोप में इसका विस्तार बेहद तेज़ी से और कम समय में हुआ, और समस्त विश्व में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।
ट्यूलिपा वंश के पुष्प की अपनी कुछ ख़ास अद्वितीय खासियतें हैं।
● इसकी लगभग 100 से अधिक प्रजातियां होती हैं, जिनसे 4000 से अधिक किस्म के नस्लों के पुष्प निकलते हैं।
● सभी तरह के ट्यूलिप पुष्प गंधहीन होते है अर्थात इनमें अपनी कोई खुशबू नहीं होती।
● यह पुष्प मुख्यतः लाल, सुनहरे और बैंगनी आदि अनेक रंगों में पाये जाते हैं। और इनके अत्यंत मनमोहक और अन्य मिश्रित रंग देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं।
● यह पुष्प अत्यधिक विशाल नहीं होते, परंतु कुछ फूलदार डंठल की ऊँचाई 760 मिमी तक हो सकती है।
● भारत में यह पुष्प 1,500 से लेकर 2,500 मीटर तक की ऊँचाई पर पाया जाता है। जिनमें कश्मीर तथा उत्तराखंड के कुछ पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं।
ट्यूलिपा पुष्प का रोपण वर्षा ऋतु के पश्चात लगभग दीपावली के समय में रेतीली तथा जल सोखने वाली मिट्टी में किया जाता है। जिसके लिए गोबर की पक्की खाद को गहराई तक डाला होना चाहिए। और कच्ची खाद किसी भी सूरत में इसके बीजों के पास नहीं होनी चाहिए। चूंकि इसे पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, परन्तु फिर भी इसके आस पास लगातार जलजमाव नहीं होना चाहिए।
16 वीं शताब्दी में वैश्विक व्यापार बड़ी तीव्र गति से बड़ा। समुद्र के रास्ते व्यापार बड़ी तेज़ी से फैलने लगा। उस समय वे लोग जिनके पास समुद्री जहाज थे, वे लोग अमीर होते गए। और उन व्यापारियों ने बड़े-बड़े मकान और बगीचे खरीदे। उस समय ट्यूलिप पुष्प अचानक से बहुत लोकप्रिय होने लगा, जो कि तुर्की, और ऑस्ट्रिया जैसे देशों से यूरोप में लाया गया था। रईस लोगों में यह अत्याधिक लोकप्रिय हो गया इस फूल को वे लोग घर के आस -पास के बगीचों तथा क्यारियों में लगाने लगे। और अपने प्रियजनों को उपहार के रूप में देने लगे। उस समय मध्य यूरोप में यह एक बहुमूल्य पुष्प माना जाता था। और इसका लेनदेन अपने चरम पर था। अचानक ट्यूलिप प्रजाति का एक पुष्प जो की जलती हुई आग के समान दिखाई पड़ता था, वह पुष्प एक वायरस से संक्रमित हो गया। और यह पुष्प 7 वर्षों में एक बार खिलता था। जिस कारण इसकी मांग में भारी इजाफा हो गया। और इसकी कीमत कई गुना बढ़ गयी। अब धीरे-धीरे रईस लोगों को लगने लगा कि यह मूल्य तो फूल की तुलना में काफी अधिक है। और वे लोग अपने जमा ट्यूलिप भण्डार को बेचने लगे। जिससे बाजार में इस पुष्प की मांग एकदम से गिर गयी। और यह वापस अपने पुराने सामान्य दामों पर बिकने लगा। जिससे वे लोग आर्थिक रूप से पूरी तरह डूब गए जिन्होंने इसे कई गुना अधिक दाम चुकाकर खरीदा था। तब से इस घटना को ट्यूलिप द्वारा वित्तीय क्रैश (Financial Crash by the Tulip Mania) कहा जाने लगा।
आज भी यह पुष्प बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में खरीदा और बेचा जाता है। यह विश्व में सबसे अधिक जाना-जाने वाला पुष्प है। भारत में उत्तराखंड और कश्मीर में इसके बेहद सुन्दर बगीचे हैं। श्रीनगर में ट्यूलिप गार्डन, जिसे पहले सिराज बाग के नाम से जाना जाता था, जहां 64 किस्मों के लगभग 15 लाख फूल अद्भुत छटा बिखेरते हैं। आप भी वहI जाकर उनकी अद्भुत सुंदरता को निखार सकते हैं।

सन्दर्भ:
● https://bit.ly/3uP5gJD
● https://bit.ly/3tiR5fp
● https://bit.ly/3dZy6An
● https://bit.ly/32enW9A

चित्र सन्दर्भ:

1.श्रीनगर में ट्यूलिप गार्डन (Youtube)
2.ट्यूलिप मेनिया का एक व्यंग्य जन ब्रूघेल द यंगर (सीए 1640) ने समकालीन उच्च-वर्ग की पोशाक में सट्टेबाजों को ब्रेनलेस बंदर के रूप में दर्शाया है। आर्थिक मूर्खता पर एक टिप्पणी में, एक बंदर पहले मूल्यवान पौधों पर आग्रह करता है, अन्य ऋणी के दरबार में दिखाई देते हैं और एक को कब्र में ले जाया जाता है।(Wikimedia)


RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id