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मोर बेहद खूबसूरत पक्षी है। मोर को देखकर ही मन में एक अलग तरह की खूबसूरती का अहसास होता है। मोरपंख की बात की जाए तो हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व भी है। मोर पृथ्वी पर सबसे सुंदर पक्षियों में से एक माना जाता है, यह दिखने में बहुत आकर्षक लगता है, विशेष रूप से अपने रंगीन पंखों के कारण। इसके कई संदर्भ भारतीय पौराणिक कथाओं और इतिहास में देखने को मिलते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मुकुट पर मोर पंख लगाया हुआ है। इसके साथ ही स्वर्ग में इन्द्र देव मोर पंख के सिंहासन पर बैठते हैं। इसके अलावा नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है और इसके शिकार पर प्रतिबंध लगा हुआ है।ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नर की एक ख़ूबसूरत और रंग-बिरंगी पखों से बनी पूँछ होती है, जिसे वो खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है, विशेष रूप से बसन्त और बारिश के मौसम में।यह पक्षी पावो (Pavo) और एफ्रोपावो (Afropavo) वंश की प्रजातियां हैं जो फेसिअनीडे (Phasianidae) परिवार से सम्बंधित हैं। मुख्य रूप से मोर की तीन प्रजातियाँ हैं जिनमें भारतीय मोर (भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले), ग्रीन पीकॉक (Green Peacock –दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाने वाले) और अफ्रीकी (African) प्रजाति का कोंगो मोर (Congo peacock - कांगो बेसिन में पाए जाने वाले) शामिल हैं।ये तीनों प्रजातियां एशिया की मूल निवासी हैं।परंतु इसके विस्तृत इंद्रधनुषी रंग के पंख हमेशा से ही वैज्ञानिक बहस का विषय रहे हैं।
मोर के पंख धात्विक नीले-हरे रंग के होते हैं जो बहुत चमकदार दिखाई देते हैं।लेकिन इनके आश्चर्यजनक सुंदर आकार के पीछे एक जटिल संरचना निहित है, जो प्रकाश के परावर्तन कोण के साथ रंग बदलती है।दरअसल जीवित प्राणियों में, संरचनात्मक रंगाई या वर्णक्रम (structural coloration) सूक्ष्मदर्शी रूप से संरचित सतहों द्वारा रंग का उत्पादन है, जो कि दृश्य प्रकाश से हस्तक्षेप करते हैं। उदाहरण के लिए, मोर की पूंछ के पंख भूरे रंग के होते हैं, लेकिन उनकी सूक्ष्म संरचना उन्हें नीले, फ़िरोज़ी (turquoise) और हरे रंग की रोशनी को प्रतिबिंबित करती है, और वे अक्सर इंद्रधनुषी दिखाई देते हैं।इनके इंद्रधनुषी रंग की पहचान 1634 में चार्ल्स प्रथम (Charles I) के चिकित्सक सर थिओडोर डी मायर्न (Theodore de Mayerne) ने की थी। उन्होंने देखा कि मोर के पंखों में आँख रुपी संरचना इंद्रधनुष के समान चमकती है। पक्षी के पंख के रंगों की विविधता को केवल दो कारकों द्वारा समझाया जा सकता है: पिगमेंट (pigments), और पंख में सरल संरचनाएं जो प्रकाश के साथ हस्तक्षेप करती हैं। पंखों द्वारा प्रकाश की तरंगदैर्ध्य का अवशोषण और प्रकीर्णन ही इनके इंद्रधनुषी रंग के लिए उत्तरदायी है। पंख कुछ तरंग दैर्ध्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं, या परावर्तित प्रकाश को तितर-बितर करते हैं। पिगमेंट के कण नए विकसित पंखों में सन्निहित होते हैं। प्रत्येक पंख में हज़ारों समतल शाखाएँ होती हैं। जब पंख पर प्रकाश चमकता है, तो हज़ारों झिलमिलाते रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जोकि माइनसक्यूल बाउल-आकार (minuscule bowl-shaped) के अभिस्थापन (indentations) के कारण दिखाई देते हैं।
मोर के पंख का हर बार अलग-अलग कोणों से प्रकाश पड़ने पर अपना रंग बदलते हैं। विभिन्न कोणों से देखने पर जब किसी जानवर का रंग बदल जाता है, तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस पशु की त्वचा में कुछ वर्णक संरचनाएं परावर्तित प्रकाश के साथ हस्तक्षेप करती हैं, जिससे प्रकाश के विभिन्न रंग हर दिशा में बिखर जाते हैं। यह इंद्रधनुषीता कई क्रिस्टल और चट्टानों में भी होती है, जैसे कि कुछ जानवरों में होती है। रचनात्मक हस्तक्षेप और विघटनकारी हस्तक्षेप सहित दो प्रकार के इंद्रधनुषीता होती हैं, इनमें से पहला प्रकाश को बढ़ाता है, जबकि विघटनकारी हस्तक्षेप प्रकाश को कम करता है। प्रत्येक प्रकार के हस्तक्षेप से एक अलग प्रकार का परावर्तन होता है, जिसके परिणामस्वरूप हमें विभिन्न रंग देखयी देते हैं। संरचनात्मक रूप से रंगीन इंद्रधनुषी पंख मोर्फो (Morpho) तितली के भी होते है, इसके अलावा लैम्प्रोसिफस अगस्टस (Lamprocyphus augustus) की सतह, नर पैरोटिया लॉयसी (Parotia lawesii) पक्षी के पंख भी इंद्रधनुषीता को प्रदर्शित करते हैं। संरचनात्मक रंगाई सबसे पहले अंग्रेजी वैज्ञानिकों रॉबर्ट हुक (Robert Hooke) और आइजैक न्यूटन (Isaac Newton) द्वारा देखी गई थी, और इसका सिद्धांत “तरंग हस्तक्षेप” (wave interference) थॉमस यंग (Thomas Young) द्वारा समझाया गया था।यंग ने इंद्रधनुषीपन को पतली फिल्मों के दो या अधिक सतहों के प्रतिबिंबों के बीच हस्तक्षेप के रूप में वर्णित किया। इसमें ज्यामिति तब निश्चित होती है कि कुछ कोणों पर, दोनों सतहों से दिखाई देने वाला प्रकाश रचनात्मक रूप से हस्तक्षेप करता है, इसलिए अलग-अलग रंग अलग-अलग कोणों पर दिखते हैं।
मोर के धात्विक नीले-हरे रंग के शानदार पंखों का उपयोग विभिन्न शिल्प कलाओं और ज्योतिषियों द्वारा किया जाता है। साथ ही इनका प्रयोग विभिन्न सजावटों के लिए भी किया जाता है। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि इन पंखों का इस्तेमाल लेडी कर्जन (Lady Curzon) की एक पोशाक में भी किया गया था। लेडी कर्जन की मोर पोशाक सोने और चांदी के धागे से बनी है, जिसे 1903 में दूसरे दिल्ली दरबार में किंग एडिशन VII (King Edward VII) और क्वीन एलेक्जेंड्रा (Queen Alexandra) के 1902 राज्याभिषेक का जश्न मनाने के लिए जीन-फिलिप वर्थ (Jean-Philippe Worth) द्वारा मैरी-कर्जन, बैरोनेस कर्जन (Mary Curzon, Baroness Curzon of Kedleston) के लिए डिजाइन किया गया था। इस गाउन (Gown) को महीन शिफॉन (Chiffon) की पट्टी से संकलित किया गया था, जो दिल्ली और आगरा के कारीगरों द्वारा कढ़ाई और अलंकृत किया गया था, जिसमें दिल्ली में चांदनी चौक पर किशन चंद की फर्म शामिल थी, जिसमें ज़र्दोज़ी (सोने के तार की बुनाई) विधि का उपयोग किया गया था। बाद में इसे पेरिस भेज दिया गया, जहां हाउस ऑफ वर्थ (House of Worth) ने सफेद शिफॉन गुलाब की एक लंबी श्रृंखला के साथ पोशाक को स्टाइल (Style) किया। स्टाइल की गई पट्टियाँ मोर के पंखों से भरी हुई थी, जिनके केंद्र में एक नीली / हरी बीटलविंग (Beetlewing) है। समय के साथ, पोशाक में धातु के धागे धूमिल हो गए हैं लेकिन बीटलविंग ने अपनी चमक नहीं खोई है। इस प्रकार लेडी कर्ज़न ने पश्चिमी फैशन में भारतीय कढ़ाई के उपयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। मोर के पंखो के यह पोशाक पश्चिमी दुनिया में काफी पसंद की गई।
चित्र सन्दर्भ:
1.प्राच्य सेटिंग में मोर का चित्रण (Freepik)
2.जंगल में एक अल्बिनो मोर की तस्वीर (Wikimedia)
3.एक मोर अपने पंखों को प्रदर्शित करता है, एक साथी को आकर्षित करने के लिए एक प्रेमालाप अनुष्ठान के भाग के रूप में मोर अपने पंखों को बाहर निकालते हैं
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