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बैसाखी का त्यौहार भारत में अनेक कारणों से अपनी एक खास महत्व रखता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह साल का प्रथम दिवस होता है। सिख समुदाय में यह पर्व खालसा पंथ की स्थापना के तौर पर मनाया जाता है। किसानों के लिए यह फसल पकने का संकेत होता है, जिसका वे उत्सव मनाते हैं। तथा ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में भी बैसाखी एक अहम् दिन माना जाता है। चलिए सभी को विस्तार से जानते हैं।
बैसाखी का ज्योतिष विज्ञान ।
प्रतिवर्ष बैसाखी 13 अप्रेल को तथा 36 सालों में एक बार 14 अप्रैल के दिन पड़ता है। यह तिथियां सौर मंडल में हो रहे बदलावों के अनुरूप बनाई गई हैं। ज्योतिष कारणों के अनुसार जिस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, उस दिन बैसाखी पर्व को मनाया जाता है। यही कारण है कि बैसाखी को माशा संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इसी के साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में यह अलग-अलग नामों से मनाई जाती है। जैसे असम में 'रोंगाली बिहू', बंगाल में 'नबा बरशा', तमिलनाडु में 'पुथंडु', केरल में 'पूरम विशु' और बिहार राज्य में 'वैशाख' आदि नामों से इसे संबोधित किया जाता है।
कृषि के क्षेत्र में बैसाखी का महत्व।
भारत के विभिन्न राज्यों के किसानों के लिए बैसाखी का पर्व फसल कटाई का सबसे उचित समय माना जाता है। यह ईश्वर द्वारा रबी की फसल कटाई शुरू करने का संकेत भी माना जाता है। इसी कारण किसान इसे ईश्वर के प्रति धन्यवाद दिवस के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन किसान अच्छे से नहा धोकर सुन्दर वस्त्र पहनकर मंदिर और गुरुद्वारों आदि के दर्शन हेतु भी जाते हैं। साथ विभिन्न स्थानों पर बैसाखी के दिन मेले और अन्य प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।
सिख समुदाय में बैसाखी का महत्व।
सभी सिख धर्म का अनुसरण करने वाले सिखों के लिए बैसाखी पर्व बेहद महत्वपूर्ण होता है। सर्वप्रथम बैसाखी पर्व की शुरुआत पंजाब से ही हुई थी। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में पंच प्यारों का चुनाव किया। जिनके साथ मिलकर उन्होंने खालसा पंथ अथ्वा ऑर्डर ऑफ प्योर ओन्स (Order of Pure Ones) को स्थापित किया, जिसने सम्पूर्ण सिख समुदाय को एक विशिष्ट पहचान दी। इस दिन को सिख समुदाय के लोग जन्मदिन के रूप भी मानते हैं। क्योंकी बैसाखी के दिन ही उन्होंने एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म लिया। गुरु गोबिंद साहिब ने सम्पूर्ण सिख समुदाय को सेवा और सौहार्द का संदेश भी दिया, उन्होंने गरीब और दुत्कारे गए लोगों के लिए सांत्वना प्रकट करने तथा उनकी मदद करने का भी संदेश दिया। बैसाखी सिख समुदाय के लिए भी नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। खालसा संवत के अनुसार खालसा 1 वैशाख 1756 विक्रमी (30 मार्च 1699) के दिन से शुरू होता है। यह प्रत्येक सिख प्रधान राज्य में मनाया जाता है। इस विशेष मौके पर सिख समुदाय द्वारा नगर कीर्तन आयोजित किये जाते है। यह एक प्रकार की शोभा यात्रा होती है, जिनमें पांच सिख पंचप्यारों के भेष में खालसा का नेतृत्व करते हैं। और कई प्रकार के कीर्तन होते हैं। वे झुंड के साथ शहर और गाँव आदि की यात्रा करते हैं। साथ ही आवत पौनी नामक एक विशेष परंपरा भी निभाई जाती है। जहां किसान अपने रिश्तेदारों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर फसल काटने की शुरुआत करते है। इस परंपरा में भाग लेने वाले सदस्यों और मेहमानों को दिन में 3 बार भोजन दिया जाता है। साथ ही लगभग 20 लोगों के समूह द्वारा ढोल (ड्रम) की धुनों के साथ फसल कटाई प्रारंभ की जाती है। कृषि क्षेत्रों में नयी मशीनों के आ जाने से यह परम्परा विलुप्त होती नज़र आ रही है। परन्तु आज भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
लखनऊ, जहाँ कि लगभग 20,000 से अधिक सिखों का निवास है, वहां पर भी बैसाखी बड़े ही धूम धाम के साथ मनाई जाती है। हालांकि, तेजी से फैल रही महामारी लॉकडाउन ने 2020 में बैसाखी के उत्सव को फीका कर दिया । लेकिन 2021 में भी यह पूरी तरह से खुला नहीं दिखता है।
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