हमारा शरीर एक जटिल संरचना है और शरीर के प्रत्येक अंग का निर्धारित कार्य निरंतर गति से चलता रहता है। हमारा मस्तिष्क प्रत्येक अंग को समान रूप से नियंत्रित करता है और सुचारु रूप से कार्य करने के लिए निर्देशित करता रहता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे शरीर के अंग धीरे-धीरे कम क्रियाशील होते चले जाते हैं। उदाहरण के लिए शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, कानों से कम सुनाई देना, आँखों से कम दिखाई देना इत्यादि। हालाँकि आज के समय में छोटी उम्र में ही शरीर का किसी रोग से ग्रसित हो जाना आम बात है, परंतु यह लक्षण सामान्यत: बड़ी उम्र के व्यक्तियों में ही दिखाई देते हैं। हमारी आँखें शरीर के सबसे महत्त्वपूर्ण अंगों में से एक हैं। यह जितनी विशेष हैं उतनी ही संवेदनशील होती हैं। छोटा सा कण भी यदि हमारी आँखों में प्रवेश कर जाए तो वह बहुत कष्टदायी होता है। आम तौर पर हम आँखों से संबंधित छोटे-बड़े रोगों के बारे में देखते व सुनते रहते हैं। जिनमें से कुछ रोग सामान्य तथा कुछ इतने विशिष्ट होते हैं कि हम इस प्रकार के रोग से पूर्णत: अपरिचित होते हैं। ऐसा ही एक विशिष्ट रोग है "नेत्र फ्लोटर्स" (Eye Floaters)। इसका शाब्दिक अर्थ है आँख में कुछ तैरता हुआ। जन्म के दौरान और बचपन से हमारी आँखों के अंदर विट्रियस (Vitreous) में जैली (Jelly) जैसे पदार्थ बनता है। जब विट्रियस के भीतर सूक्ष्म तंतु दब जाते हैं तब वह रेटिना (Retina) पर छोटी छाया बनाते हैं। समय के साथ, विट्रियस आंशिक रूप से द्रवीभूत हो जाता है। इस प्रक्रिया में किसी वस्तु का चित्र नेत्रगोलक की आंतरिक सतह से दूर बनता है। जैसे ही विट्रीयस सिकुड़ता और फैलता है, नेत्रगोलक की आंतरिक सतह थम जाती है और कठोर हो जाती है। एक मलबे जैसा पदार्थ आँख के माध्यम से गुजरने वाले प्रकाश के कुछ भाग को अवरुद्ध करने लगता है, जो आँखों की रेटिना पर छोटे-छोटे छाया प्रतिबिंब बनाते हैं। इन प्रतिबिंबों को ही हम नेत्र फ्लोटर्स के रूप में देखते हैं।
सामन्य शब्दों में, जब हम आँखों में कुछ काले या भूरे रंग के बिंदु, जाले, तार या धागे जैसे पदार्थ तैरते हुए अनुभव करते हैं। इसके अतिरिक्त जब हम अपनी आँखों को हिलाते हैं और उन्हें सीधे देखने की कोशिश करते हैं तो वे दूर दिखाई देते हैं। इस अवस्था को ही नेत्र फ्लोटर्स कहा जाता है। यह अधिकतर बढ़ती उम्र या अन्य बीमारियों के परिणामस्वरूप अधिक दिखाई दे सकते हैं। यदि यह स्थिति अधिक हो और आँखों में बिंदु आदि सामान्य से अधिक तैरते दिखाई दे रहे हों। विशेष रूप से जब वे प्रकाश के साथ दिखाई दें तो तुरंत ही नेत्र रोग विशेषज्ञ से अवश्य ही जाँच करवानी चहिए। अन्यथा यह परेशानी एक गंभीर रूप ले सकती है। यह रोग कष्टप्रद होने के साथ ही हमारी दॄष्टि को भी बाधित कर सकता है। इतना ही नहीं यह रोग आँख में सूजन और संक्रमण, रेटिना में आघात, मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी, आँखों में रक्त-स्त्राव, आँख का ट्यूमर आदि गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
इस रोग के लक्षणों के अचानक प्रकट होने का यह अर्थ भी हो सकता है कि विट्रीयस रेटिना से दूर खिंच रहा है या रेटिना स्वयं आँख के अंदरूनी रेखा के पीछे से अव्यवस्थित हो रही है, जिसमें रक्त, पोषक तत्व और ऑक्सीजन भी शामिल हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसे पोस्टीरियर विटेरियस डिटेचमेंट (Posterior Vitreous Detachment) कहा जाता है। वर्षों पहले आँखों के फ्लोटर्स के लिए एकमात्र उपचार एक इनवेसिव सर्जिकल (Invasive Surgical) प्रक्रिया थी जिसे विटरेक्टोमी (Vitrectomy) कहा जाता था। इस प्रक्रिया में, कुछ या सभी विट्रियस को आँख से हटा दिया जाता है और एक स्पष्ट तरल पदार्थ से बदल दिया जाता है। लेकिन इस प्रकार के उपचार में आमतौर पर विटेक्टोमी के जोखिम बहुत अधिक होते हैं। इन जोखिमों में सर्जिकल रूप से निर्मित रेटिना से अलगाव और गंभीर नेत्र संक्रमण शामिल हैं। इन जोखिमों से बचने के लिए लेजर विटेरोलिसिस (Laser Vitreolysis) नामक एक नई लेजर प्रक्रिया कि खोज कीं गई जो आँखों के फ्लोटर उपचार के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विटरेक्टोमी के लिए अधिक सुरक्षित विकल्प है। इस प्रक्रिया में, एक लेजर तरंग (Laser Beam) को पुतली के माध्यम से आँख में प्रक्षेपित किया जाता है और इसे बड़े फ्लोटर्स पर केंद्रित किया जाता है, जो उन्हें स्थान से अलग कर देती है या उन्हें वाष्पीकृत कर देती है ताकि वे गायब हो जाएं। परंतु यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस लेजर तरंग के माध्यम से किया जाने वाला यह उपचार पैंतालीस (45) वर्ष की आयु से कम के व्यक्तियों में नहीं किया जा सकता है। उपचार के अतिरिक्त हम अपने शरीर और आँखों की आंतरिक और बाह्य रूप से देख-भाल करके भी इस रोग के लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अपनी आँखों की नियमित जाँच, सूर्य की पराबैगनी किरणों और धूल-मिट्टी से आँखों की सुरक्षा, पोषक तत्व युक्त आहार, अधिक से अधिक जल ग्रहण करना, निरंतर किसी एक कार्य में आँखों को केंद्रित न करके उन्हें उचित आराम देना आदि बातों का ध्यान रखकर हम अपने नेत्रों को इस रोग से बचाए रख सकते हैं।
संदर्भ:
https://mayocl.in/3mo5aWp
https://bit.ly/3sZALQS
https://bit.ly/3cVwlEV
https://bit.ly/3mpXGSX
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र नेत्र फ्लोटर्स को दर्शाता है। (पिक्सहिव)
दूसरे चित्र में नेत्र फ्लोटर्स को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
तीसरा चित्र विटेरियस फ्लोटर्स दिखाता है। (विकिपीडिया)