लखनऊ शहर के बाहरी इलाके में मौजूद खेतों से आने वाली सुगंध अक्सर माउथवॉश (Mouthwash), टूथपेस्ट (Toothpaste), च्युइंग गम (Chewing gum), बालों के तेल और टेलकम पाउडर (Talcum powders) की याद दिलाती है। दरअसल यह खूशबू मेंथॉल मिंट (Menthol mint), जिसे मेंथा अरवेन्सिस (Mentha Arvensis) भी कहा जाता है, की पत्तियों की है, जो पुदीना की किस्म से अलग है। इसकी खेती जनवरी के मध्य में की जाती है, जो कि मई तक तैयार हो जाती है। इन पौधों के तेल का उपयोग फार्मास्यूटिकल (Pharmaceutical), कॉस्मेटिक (Cosmetic) और अन्य उत्पादों में किया जाता है। इसलिए इसकी मांग अत्यधिक है, जो किसानों को अत्यधिक फायदा पहुंचाती है। मेंथॉल मिंट की फसल भारत में लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को आवरित करती है, जिसमें से 90% क्षेत्र अकेले उत्तर प्रदेश का है। इस फसल के प्रमुख क्षेत्रों में बाराबंकी भी शामिल है, जहां मेंथॉल मिंट लगभग 60,000 हेक्टेयर भूमि को आवरित करता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि बाराबंकी तराई क्षेत्र में है, जो मिंट के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। मेंथा की खेती के तहत उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में मेंथा के लगभग 1.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैलने की उम्मीद है। दुनिया की मिंट आपूर्ति का लगभग 80% हिस्सा भारत द्वारा उत्पादित किया जाता है तथा भारत इस उत्पादन का 75% हिस्सा अन्य देशों में निर्यात करता है। रामपुर सहित राज्य के तराई क्षेत्र में मेंथा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। चूंकि पूरे विश्व में मेंथॉल मिंट की सर्वाधिक उपलब्धता भारत में है, इसलिए विभिन्न उद्यम कृषि प्रथाओं में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध हुए हैं, ताकि बेहतर गुणवत्ता के साथ अधिक मात्रा में मेंथॉल मिंट का स्थायी उत्पादन सुनिश्चित किया जा सके।
ऐसी ही एक कम्पनी कन्फेक्शनरी (Confectionery) निर्माता मार्स रिग्ले (Mars Wrigley) की भी है, जो 2017 से भारतीय मिंट से जुड़े हुए किसानों के साथ काम कर रहे हैं। इस कंपनी के उत्पादों का प्रमुख घटक मेंथॉल मिंट है, इसलिए कंपनी को इस घटक की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस संबंध में, 2014 में कंपनी ने शुभ मिंट प्रोजेक्ट (Shubh Mint project) लागू करने का संकल्प लिया, जो भारत में मिंट की खेती से जुड़े किसानों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण में सुधार करने पर केंद्रित है। मेंथा की खेती में उनके हस्तक्षेप के कारण लगभग 20,000 किसानों ने पुदीने की खेती में अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाया है। इससे जहां मेंथा की पैदावार बढ़ी है, वहीं पानी के उपयोग में भी लगभग 30 प्रतिशत की कमी आयी है। मेंथा की खेती में कई चुनौतियां आती हैं, जिनमें मृदा की गुणवत्ता का खराब होना, कृषि-इनपुट (Input) की खराब गुणवत्ता आदि शामिल हैं। ये सभी कारक भारत में मेंथा की खेती से जुड़े किसानों की उत्पादकता और आय को प्रभावित करते हैं। इसलिए, शुभ मिंट प्रोजेक्ट का उद्देश्य किसानों को बेहतर कृषि और आसवन प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि पैदावार की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करके मिंट तेल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। इस प्रोजेक्ट के तहत किसानों को अच्छी कृषि पद्धतियों (Good agricultural practices - GAP) के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जहां किसान रोपण, सिंचाई, उर्वरक अनुप्रयोग, मृदा प्रबंधन, जल संरक्षण आदि के लिए बेहतर तकनीक सीख सकते हैं। कुल मिलाकर, इन प्रयासों ने किसानों को बेहतर आय अर्जित करने और समय के साथ अपने जीवन स्तर में सुधार लाने में सक्षम बनाया है। परियोजना के कार्यान्वयन के एक वर्ष के भीतर, 2,600 से भी अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया गया, और उनकी उपज में औसतन 68% की वृद्धि हुई। इनमें से कई किसानों ने इनपुट पर भी कम खर्च किया और परिणामस्वरूप फसल के मौसम में लगभग 6,222 रुपये की औसत बचत की। उत्तरप्रदेश के किसानों के बीच मेंथॉल मिंट की खेती अत्यधिक लोकप्रिय है, क्यों कि, मेंथा का एक एकड़ का क्षेत्र तीन महीने में 30,000 रुपये तक का रिटर्न (Returns) दे सकता है, जो किसी भी नकदी फसल के लिए काफी अधिक है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मेंथा उत्पादों की मांग अत्यधिक बढ़ रही है, विशेष रूप से चीन में। ऐसा माना जाता है, कि मेंथॉल उद्योग लगभग 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
चूंकि सिंथेटिक (Synthetic) मेन्थॉल तेल की उपलब्धता में गिरावट आने लगी है, इसलिए प्राकृतिक मेन्थॉल तेल की कीमत, औसतन 1,500 रुपये किलोग्राम से अधिक हो गयी है। राज्य बागवानी विभाग के अनुसार, मेंथा की खेती ने 2007 में लगभग एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र को आवरित किया और तब से यह क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। फसल की लोकप्रियता का एक अन्य कारण यह है, कि अन्य नकदी फसलों के विपरीत इसकी खेती में कम समय लगता है। फसल का नकारात्मक पहलू यह है, कि इसे अधिकांश कृषि फसलों की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि और नहर, तालाब जैसे सिंचाई के पारंपरिक स्रोतों के दोहन से किसान अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। बागवानी विभाग छोटे आसवन प्रसंस्करण इकाइयों (Distillation processing units) को स्थापित करके पौधे से मेंथा तेल निकालने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी देता है।
किसानों और उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ने लखनऊ स्थित केंद्रीय औषधीय एवं सुगंधित पौधे (Lucknow-based Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants - CIMAP) के साथ हाथ मिलाया है। CIMAP को देश में प्रयुक्त मेंथा की चार उन्नत किस्मों को विकसित करने के लिए जाना जाता है, जिनमें हिमालय, कोसी, कुशाल और सक्षम किस्म शामिल है। यहां किसानों को मेंथा तेल के विपणन के लिए भी सुविधा प्रदान की जाती है। विदेशी और घरेलू दोनों बाजारों में मेंथा क्रिस्टल (Crystal) और फ्लेक्स (Flex) की भारी मांग को देखते हुए, उत्तरी क्षेत्र की फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने अनुबंध खेती के तहत मेंथा की खेती करने की योजना बनाई है। इन कंपनियों ने मेंथा व्युत्पन्नों (Derivatives) की मांग को पूरा करने के लिए अपनी प्रसंस्करण सुविधाओं को पहले ही उन्नत कर लिया है। इस प्रकार मेंथा के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में अनुबनध खेती भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कोविड (COVID-19) ने विभिन्न क्षेत्रों के साथ उत्तर प्रदेश में मिंट की खेती में संलग्न किसानों के जीवन को भी बाधित किया है। 2020 की शुरुआत में, बाजार और इनपुट आपूर्ति श्रृंखला अत्यधिक बाधित हुई। उदाहरण के लिए भारत में हुई तालाबंदी के चलते देश के भीतर घरेलू यात्रा पर प्रतिबंध के परिणामस्वरूप शुभ मिंट योजना से सम्बंधित किसानों को उर्वरकों और अन्य इनपुट सामग्रियों तक पहुंचने में थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा तथा व्यापार की सीमाओं के कारण घरेलू आय में कमी आई।
संदर्भ:
https://bit.ly/3mgdQOJ
https://bit.ly/3sNVVB2
https://bit.ly/2LWf9Rz
https://bit.ly/2TjIyJi
https://bit.ly/3cyKOGt
https://bit.ly/3g8R1IX
https://bit.ly/3fuNyH6
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र मेंथा कि खेती को दर्शाता है। (यूट्यूब)
दूसरा चित्र मेंथा और उसके फूल को दर्शाता है। (विकिमेडिया)
तीसरा चित्र मेंथा के पत्तों को दर्शाता है। (विकिमेडिया)