लखनऊ के मलिहाबाद को आम के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जाता है। आम की कई किस्में जैसे दशहरी, चौसा, फजली, लखनऊवा, जौहरी, सफेदा, आदि यहाँ उगाई जाती हैं। मलिहाबाद को भारत की आम राजधानी भी कहा जाता है। 2013 में उत्तर प्रदेश में कुल आम उत्पादन का 12.5% हिस्सा मलिहाबाद में उत्पादित आमों का था। एक समय ऐसा था, जब मलिहाबाद में आम मौजूद नहीं थे, लेकिन आज यह उत्तर प्रदेश के 14 आम बेल्टों (Belts) या क्षेत्रों में सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो ज्यादातर अफ़रीदी पठानों के वंशजों के स्वामित्व में है। अफ़रीदी पठान लगभग दो सौ साल पहले अफगानिस्तान (Afghanistan) के खंदर (Khandar) क्षेत्र से मलिहाबाद में आए थे। लखनऊ के नवाबों के शाही संरक्षण में, मलिहाबाद के आम के बागानों को पठानों द्वारा विकसित किया गया। जब पठान मलिहाबाद नहीं आये थे, तब 1884 से पूर्व यहां पासी समुदाय रहा करता था। किवदंतियों के अनुसार इस स्थान का नाम माली (दो पासी भाईयों में से एक) के नाम पर रखा गया था। इसके अलावा यह भी माना जाता है, कि इसका नाम फारसी शब्द मलिह के नाम पर रखा गया था। इस क्षेत्र में आम की खेती को फैलाने में फकीर मोहम्मद खान (Faqir Muhammad Khan) या गोया मलिहाबादी (Goya Malihabadi) की भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना जाता है, जो अवध के नवाब की सेना में प्रधान सेनापति थे। दशहरी आम का बागान इस क्षेत्र के प्रमुख आय स्रोतों में से एक है तथा इस आम को कई पड़ोसी देशों में भी निर्यात किया जाता है।
आम भारत का राष्ट्रीय फल है। इसके अलावा यह बांग्लादेश (Bangladesh) के राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में भी सुशोभित है। भारत में, आम की फसल की कटाई और बिक्री मार्च-मई के दौरान होती है। आम के पारंपरिक संदर्भों को दक्षिण एशिया (Asia) की संस्कृति में देखा जा सकता है। अपने अध्यादेशों में मौर्य सम्राट अशोक ने भी आम का उल्लेख किया है। मध्ययुगीन भारत में, इंडो-फ़ारसी (Indo-Persian) कवि अमीर खुसरो ने आम को "नगहजा तारिन मेवा हिंदुस्तान" (Naghza Tarin Mewa Hindustan) कहा, जिसका अर्थ है, हिंदुस्तान का सबसे शुद्ध फल। दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिजली (Alauddin Khijli) के दरबार में आमों का आनंद लिया जाता था तथा मुगल साम्राज्य विशेष रूप से इस फल का शौकीन था। बाबर (Babur) ने अपने बाबरनामे (Babarnameh) में आम की प्रशंसा की है, जबकि शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) ने मुगल सम्राट हुमायूं (Humayun) पर अपनी जीत के बाद चौंसा किस्म के निर्माण का शुभारम्भ किया था। मुगल द्वारा बागवानी का संरक्षण किया गया, जिसकी वजह से हजारों आमों की किस्मों की ग्राफ्टिंग (Grafting) की गयी, जिनमें प्रसिद्ध तोतापुरी भी शामिल है, जो ईरान (Iran) और मध्य एशिया को निर्यात की जाने वाली पहली किस्म थी। कहा जाता है कि अकबर (1556-1605) ने बिहार के दरभंगा के लक्खी बाग में 100,000 पेड़ों का एक आम का बाग लगाया, जबकि जहाँगीर (Jahangir) और शाहजहाँ (Shah Jahan) ने लाहौर और दिल्ली में आम के बाग लगाने और आम से बनने वाली मिठाइयों के निर्माण का आदेश दिया। जैन देवी अम्बिका को भी पारंपरिक रूप से आम के पेड़ के नीचे बैठा दिखाया जाता है। आम तौर पर आम मीठे होते हैं, हालांकि इनका गूदे का स्वाद और बनावट किस्म के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। आम का उपयोग व्यापक रूप से विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। खट्टे, कच्चे आम का उपयोग चटनी, अचार, आदि में किया जाता है। इसके अलावा इसे नमक, मिर्च, या सोया सॉस (Soy sauce) के साथ मिलाकर कच्चा भी खाया जा सकता है। ग्रीष्मकालीन पेय आम पन्ना आम से ही बनाया जाता है। आम से बनी लस्सी पूरे दक्षिण एशिया में लोकप्रिय है, जिसे पके आम या आम के गूदे को छाछ और चीनी के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। पके आम का उपयोग करी बनाने के लिए भी किया जाता है। आमरस चीनी या दूध के साथ आम से बना एक लोकप्रिय गाढ़ा रस है, जिसका सेवन चपातियों या पूरी के साथ किया जाता है। पके आमों के गूदे का इस्तेमाल जैम (Jam) बनाने के लिए भी किया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में आम का उपयोग जहां मुख्य रूप से दह्ल (Dahl) बनाने के लिए करते हैं, वहीं गुजराती लोग आम का इस्तेमाल चुंदा (Chunda) बनाने के लिए करते हैं। आम का उपयोग मुरब्बा, मुरम्बा, अमचूर, शराब आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। अनाज उत्पादों जैसे म्यूसली (Muesli) और ओट ग्रेनोला (Oat granola) बनाने में भी आम का उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान समय में कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में अपने पैर पसारे हुए हैं, तथा इससे बचाव में संलग्न कोरोना योद्धाओं को विभिन्न रूपों में सलामी दी गयी है। अब प्रकृति ने भी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दी जा रही सेवाओं के लिए आभार व्यक्त किया है।
दरअसल मलिहाबाद में आम के उत्पादक हाजी कलीमुल्लाह (Haji Kalimullah), जिन्हें 'मैंगो मैन' (Mango Man) के नाम से जाना जाता है, ने आम की एक नई किस्म विकसित की है, और इसे कोरोना विषाणु के खिलाफ लड़ाई में डॉक्टरों की निस्वार्थ सेवा के लिए समर्पित कर इसे 'डॉक्टर मैंगो' (Doctor Mango) नाम दिया है। डॉक्टर मैंगो, आम की दशहरी किस्म से सम्बंधित है, जिसकी जीवन अवधि लंबी है, तथा यह अत्यधिक मीठी है। कोरोना महामारी के कारण हुई तालाबंदी से जहां आम के निर्यात में बाधा उत्पन्न हुई वहीं, खराब मौसम और लगातार ओलावृष्टि की वजह से भी इसकी फसल को नुकसान उठाना पड़ा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ugmBuO
https://bit.ly/3rRXHQr
https://bit.ly/3mjQPKy
https://bit.ly/3sNQthI
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में मलिहाबाद के एक व्यक्ति को आम दिखाते हुए दिखाया गया है। (The Juggernaut)
दूसरा चित्र दशहरी आम को दर्शाता है। (विकिमेडिया)
तीसरा चित्र मलिहाबाद आम को दर्शाता है। (फ़्लिकर)