पिछले दो दशकों में सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के विस्तार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा आदि क्षेत्रों के साथ हमारे दैनिक जीवन के हर पहलू में बड़े बदलाव किये हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे नए-नए प्रयोगों ने आधुनिकीकरण की गति में एक उत्प्रेरक का काम किया है, साथ ही इसकी वजह से समाज में आपराधिक मामलों को सुलझाना भी संभव हो सका है। दुनिया भर की कंपनियां और शहर अपराध को कम करने और रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धि या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई (Artificial Intelligence) का उपयोग कर रहे हैं, और अपराधों के लिए और अधिक तेज़ी से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। वर्तमान युग को यदि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर क्षेत्र में इसकी उपस्थिति बढ़ती जा रही है तो फिर वह कृषि क्षेत्र हो या फिर भविष्यवक्ता। इन परियोजनाओं में से कई के पीछे विचार यह है कि अपराध अपेक्षाकृत अनुमानित हैं। हालांकि असली दुनिया में पूर्वानुमान लगाना अधिक कठिन है, लेकिन कम्प्यूटर की पूर्वानुमान लगाने की बढ़ती शक्ति के कारण ऐसी संभावना कल्पना जगत तक ही सीमित नहीं रही हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की शाखा मशीन-लर्निंग (Machine Learning) उल्लेखनीय रूप से सटीक पूर्वानुमान लगा सकती है। यह डेटा (Data) की प्रचंड मात्रा में पैटर्न तलाशने के सिद्धांत पर काम करती है। आज इसका उपयोग किसी बन्दूक या चाकू से होने वाले अपराध की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।
शहर का बुनियादी ढांचा स्मार्ट और जुड़ा हुआ होता जा रहा है। यह शहरों को वास्तविक समय की जानकारी के स्रोत प्रदान करता है, जिसमें पारंपरिक सुरक्षा कैमरे से लेकर स्मार्ट लैंप तक शामिल हैं, जिसका उपयोग अपराधों का पता लगाने के लिए किया जा सकता हैं। एआई की मदद से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग अपराधी का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। किसी भी समाज का लक्ष्य सिर्फ अपराधियों को पकड़ना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधों को पहले से रोकना होना चाहिए। मशीन लर्निंग के उपयोग से पता लगाया जा सकता है कि अपराध कब और कहां होगा। इसके लिये पिछले अपराधों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और अनुमान लगाया जाता हैं कि नए अपराध कब और कहां होने की संभावना है। वर्तमान में इस प्रणाली का उपयोग लॉस एंजिल्स (Los Angeles) सहित कई अमेरिकी शहरों (American Cities) में हो रहा है। इसमें एक विशेष एल्गोरिथ्म (Algorithm) अवलोकन पर आधारित आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। पुराने डेटा का उपयोग करके और हाल के अपराधों को देखते हुए दावा किया जा सकता हैं कि भविष्य में होने वाले अपराध कहां होंगे। उदाहरण के लिए, एक क्षेत्र में हुई चोरी की घटनाओं का सहसंबद्ध भविष्य में आसपास के क्षेत्रों में होने वाली चोरी के साथ हो सकता है, इस तकनीक से नक्शे पर संभव हॉटस्पॉट (Hotspots) का पता लगाया जाता है और नजर रखी जाती है। एक अन्य उदाहरण किसी रेस्तरां (Restaurant) में साफ-सफाई को ही लीजिए। यह सिस्टम पता करता है कि नज़र में न आने वाले कौन से कारकों के मिलने से समस्या पैदा होती है। एक बार प्रशिक्षित कर दिया जाए तो वह रेस्तरां के गंदे होने के जोखिम का आकलन कर सकेगा।
चेहरे की पहचान (Facial Recognition) वाली कंपनी क्लाउड वॉक टेक्नोलॉजी (Cloud Walk Technology) वास्तव में यह अनुमान लगाने की कोशिश करती है कि क्या कोई संदिग्ध व्यक्ति अपराध करेगा। यह कंपनी किसी व्यक्ति के चेहरे के पैटर्न के आधार पर पहचान और चालित विश्लेषण तकनीक से सरकार को उन्नत एआई का उपयोग करने और व्यक्तियों को ट्रैक करने में मदद करती है। ये प्रणाली यह पता लगाती है कि किसी व्यक्ति के व्यवहार में कोई संदिग्ध परिवर्तन तो नहीं हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक निश्चित क्षेत्र में बार बार घूम रहा हो तो यह दर्शाता है कि वे भविष्य के अपराध के लिए एक स्थान की जांच कर रहा हो। यह प्राणाली समय के साथ व्यक्ति को ट्रैक (Track ) करेगी, यदि वह व्यक्ति चाकू खरीदता है जो ठीक है, लेकिन अगर वह बाद में एक बोरी और हथौड़ा भी खरीदता है, तो वह व्यक्ति संदिग्ध हो सकता है। जैसा कि हम जानते है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित चेहरे की पहचान एक ऐसी तकनीक है जो किसी व्यक्ति के चेहरे के पैटर्न के आधार पर पहचान करने के लिए बायोमेट्रिक डेटा (Biometric Data) का उपयोग करती है। हाल के महीनों में, भारत सरकार ने कानून प्रवर्तन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इस तकनीक को बढ़ावा देना शुरू किया है। दीर्घकालिक रूप से, भारत देश भर में विभिन्न पुलिस संगठनों द्वारा आपराधिक पहचान और सत्यापन के लिए, इस प्रक्रिया को आधुनिक बनाने के लिए एक देशव्यापी स्वचालित चेहरे पहचान प्रणाली (Automated Facial Recognition System-AFRS) के निर्माण की योजना बना रहा है। हालाँकि, यह तकनीक कई गोपनीयता और सुरक्षा की चिंताओं को जन्म देती है।
चेहरे की पहचान को एक ऐसी तकनीक के रूप में समझ जा सकता, जिसका उपयोग व्यक्तियों के सत्यापन और पहचान के उद्देश्यों के लिए मानवीय चेहरों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह मशीन लर्निंग (एमएल) के अनुप्रयोग पर आधारित है, जो एआई की सबसे आम तकनीक है। चेहरे की पहचान में किसी व्यक्ति के चेहरे की बायोमेट्रिक मैपिंग (biometric mapping ) शामिल है, यह आईरिस स्कैन (Iris Scans) और उंगलियों के निशान (Fingerprints) पर निर्भर है। पिछले दो वर्षों में चेहरे की पहचान तकनीक भारत सरकार और न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण रुचि का क्षेत्र बन गई है। दिल्ली और तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने विरोध प्रदर्शनों, रैलियों और सार्वजनिक समारोहों के दौरान जनता की निगरानी के लिए चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग करना शुरू कर दिया है। दुनिया भर में सबसे बड़ी चेहरे की पहचान प्रणाली AFRS को भारत सरकार ने देश भर के सभी पुलिस बलों के लिए प्रस्तावित किया है। यह देश भर के सभी पुलिस स्टेशनों को अपराधियों की पहचान करने और पुलिस स्टेशनों के बीच इस सूचना का त्वरित आदान-प्रदान करने में सक्षम बनाती है। यह तकनीक लापता बच्चों को खोजने में मदद करने की क्षमता से लेकर, अपराधियों की पहचान करने, सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने, मानव तस्करी को रोकने और कानून-व्यवस्था के सामान्य रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते है, इसी तरह इसके भी लाभ के साथ कई हानियां भी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण चेहरे की गलत पहचान के कारण किसी निर्दोष की गिरफ्तारी का माध्यम बन सकती है, गलत गणना के कारण कई लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसके चलते मौजूदा उपभोक्ता सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। यह तकनीक वैश्विक स्तर पर जातीय और नस्लीय पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है। इसके अलावा, यह प्रौद्योगिकी लिंग के बीच अंतर भी नहीं कर सकती है। ऐतिहासिक न्यायालय और गिरफ्तारी के आंकड़े हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली की नीतियों और क्रियान्वयन को दर्शाते हैं और इसलिए इनकी परिभाषा को भी अभिव्यक्त करते हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि पुलिस किस प्रकार के अपराधियों को गिरफ्तार करती है, न्यायाधिश किस प्रकार से कार्य करते हैं, और किस प्रकार के अपराधियों को ज्यादा लंबी सजा सुनाई जाती है। इसके अलावा, यह आंकड़े आपराधिकता कानून प्रवर्तन और आपराधिक न्याय में भेदभावपूर्ण क्रियांन्वयन की ओर भी संकेत करते हैं, जो कि कानून व्यवस्था की कमजोर काड़ियों को दर्शाता है। किसी अपराधी के चेहरे से उसकी प्रकृति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि किसी भी अपराधी की कोई भौतिक पहचान नहीं होती है। यह भी आवश्यक नहीं है कि यह आंकड़े निष्पक्ष ही हों।
इसी प्रकार कम्प्यूटर से निकले अनुमान कभी-कभी विवादास्पद भी होते हैं। कई बात देखा गया कि बंदूक और चाकू की हिंसा की भविष्यवाणी करने के लिए डिज़ाइन की गई एक प्रमुख कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली में गंभीर खामियां थीं, जो इसे अनुपयोगी बनाती हैं। यह भविष्यवाणी प्रणाली, जिसे अधिक गंभीर हिंसा (Most Serious Violence-MSV) के रूप में जाना जाता है, राष्ट्रीय डेटा विश्लेषिकी समाधान (National Data Analytics Solution-NDAS) परियोजना का हिस्सा है। कई स्थानों मे अधिक गंभीर हिंसा की विफलता के परिणामस्वरूप, पुलिस ने अपने मौजूदा स्वरूप में भविष्यवाणी प्रणाली का उपयोग करना बंद कर दिया है। कई बार इस प्रणाली पर अल्पसंख्यक समूहों के प्रति पक्षपाती होने की क्षमता पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस प्रणाली से की जाने वाली भविष्यवाणी की सटीकता भी वास्तविक स्तर की तुलना में काफी कम है। ये समस्याएं वास्तविक हैं, लेकिन इसके कारण मशीन-लर्निंग का नीतिगत औजार के रूप में अंत नहीं होना चाहिए। इसकी बजाय प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि कुछ जमीनी नियम बनाकर लोगों का भरोसा जीता जाए। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के सही इस्तेमाल से गलत कार्यों को रोकने में मदद मिल सकती है। एआइ के फायदे और नुकसान के बीच संघीय सरकार को तत्काल ठोस नीतियों पर काम करने की आवश्यकता है। कई देशों की एजेंसिया एआइ के कारण गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी जोखिमों की समीक्षा कर रही हैं और इसका तोड़ ढूँढ रही हैं। आंकड़ों के विश्लेषण से पूर्वानुमान लगाने की कम्प्यूटरों की ताकत बढ़ रही है, जिससे जजों और अधिकारियों को सही फैसले लेने में मदद मिलेगी। इस पद्धति से अपराधों में 20 फीसदी कमी आएगी।
संदर्भ:
https://bit.ly/3tKFgyI
https://bit.ly/3f3nL8H
https://bit.ly/3lHB5AW
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को दर्शाता है। (दिलचस्प इंजीनियरिंग)
दूसरी तस्वीर स्वचालित चेहरे की पहचान प्रणाली NCRB को दिखाती है। (affairsCloud)।
तीसरी तस्वीर में बायोमेट्रिक स्कैन दिखाया गया है। (फ़्लिकर)