18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आर्थिक व तकनीकी क्षेत्र में हुए व्यापक परिवर्तनों के कारण घरेलू उत्पादन प्रणाली का स्थान कारखाना उत्पादन प्रणाली ने ले लिया। इन परिवर्तनों से आधुनिक व्यापार प्रणाली का विकास हुआ व उत्पादन और व्यापार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जिसे औद्योगिक क्रांति की संज्ञा दी गयी। इंग्लैंड (England) में तकनीकी व वैज्ञानिक क्षेत्र में व्यापक विकास एवं नए-नए आविष्कार, जैसे- वाष्प इंजन (Steam engine), फ्लाइंग शटल (Flying Shuttle), स्पिनिंग जेनी (Spinning Jenny) आदि ने औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। लोहा, कोयला व अन्य प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता का भी इसमें विशेष योगदान रहा। इस प्रकार की भौगोलिक खोजों और आविष्कारों के आगमन ने व्यापार और वाणिज्य के नए रास्ते बनाए। जिसने औद्योगिक क्रांति का आधार बना और मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन को कम करने के लिए उत्पादन क्षमता में वृद्धि की। वास्तव में, यूरोप (Europe) में इंग्लैंड तकनीकी रूप से सबसे उन्नत देश माना जाता था, जो कि 1725 या उसके बाद शुरू हुआ था। 1760 और 1860 के बीच, तकनीकी प्रगति, शिक्षा और एक बढ़ते पूंजी भंडार ने इंग्लैंड को दुनिया की कार्यशाला में बदल दिया। 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में सर्वप्रथम सामंत वर्ग की अवधारणा से इधर मध्यम वर्ग का उदय हुआ। ये मध्यम वर्ग के उद्योगपति और व्यापारी ही थे जिन्होंने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति को सफल बनाया।
औपनिवेशिक क्षेत्रों के शोषण व दास व्यापार से उद्योगों हेतु पर्याप्त पूंजी उपलब्ध हो गयी थी। कृषि क्रांति से छोटे कृषक स्वतंत्र मजदूर में परिवर्तित हो गए जिससे सस्ता श्रम उपलब्ध हुआ। अनुकूल राजनीतिक वातावरण एवं व्यापार नीतियों से संबंधित कारण अन्य देशों में भी उपलब्ध थे परंतु इंग्लैंड में ही औद्योगिक क्रांति होने का मुख्य कारण वहाँ पर तकनीकों व नवीन व्यापार प्रणालियों को मध्यम वर्ग द्वारा आत्मसात् करना था जिसमें सरकार की भूमिका भी सहायक रही, वहीं फ्रांस (France) जैसे देशों में सरकारी नियंत्रण ने औद्योगिक क्रांति की सफलता को बाधित किया। इसके साथ ही उपनिवेशों के बाजारों पर ब्रिटिश (british) एकाधिकार से व्यापार सुरक्षा कारणों एवं अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों और परिवहन व्यवस्था ने इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति को सफल बनाने में योगदान दिया।
औद्योगीकरण के दौरान उत्पादन में वृद्धि होने के साथ-साथ शहरीकरण और जनसंख्या में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई जिससे एक तरफ तो संपन्न पूंजीपति वर्ग का विकास हुआ, जिनकी जीवन गुणवत्ता उच्च थी, वहीं दूसरी तरफ शहरों में मजदूरों के साथ बेरोजगारों की संख्या में भी वृद्धि हुई। आद्योगिक क्रांति से पहले लोग छोटे-छोटे गांवों में रहते थे, जो कि अपने जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर थे। 18 वीं शताब्दी के दौरान जनसंख्या वृद्धि हुयी किसानों ने बड़ी आबादी की खाद्य हेतु उत्पादन में वृद्धि कर दी। खेती में मशीनों का उपयोग होने लगा, इसलिए कृषि श्रमिकों की आवश्यकता घटने लगी। परिणामस्वरूप इन्होंने रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रूख करना प्रारंभ कर दिया। जैसे-जैसे व्यापार में उछाल आने लगा और राष्ट्रीय बाजार बढ़ने लगे, अधिकांश लोग रोजगार की तलाश में उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ने लगे। इनमें से अधिकांश लोग "झुग्गी" में रहते थे। एक कमरे में पाँच से नौ लोग रहते थे जो एक अपार्टमेंट (apartment) जितना बड़ा होता था। पर्याप्त जगह की कमी के कारण अधिकांश लोग बीमार पड़ गए। क्योंकि हर कोई भयानक परिस्थितियों में रहता था और एक-दूसरे के बहुत करीब था, बीमारियां तेजी से फैलती थीं और दवा और चिकित्सा की कमी के कारण कई मौतें हुईं।
औद्योगिक क्रांति के दौरान काम करने की स्थिति बहुत दयनीय थी। जैसे-जैसे कारखाने में वृद्धि हुयी, कारोबारियों को कामगारों की जरूरत भी बढ़ने लगी। कामगारों की अधिकता के कारण नियोक्ता उन्हें मनचाहे वेतन पर नियुक्त करते थे, जो कि काम की अपेक्षा बहुत कम होता था। लोग सप्ताह में छह दिन चौदह से सोलह घंटे तक काम करते थे। हालांकि, अकुशल श्रमिकों की संख्या अधिक थी, जिन्हें सप्ताह में लगभग 8-10 डॉलर ही प्राप्त करते थे, जो कि लगभग 10 सेंट प्रति घंटे काम करते थे। वहीं कुशल श्रमिक थोड़ा अधिक कमाते थे, लेकिन वह भी बहुत कम था। महिलाओं को एक तिहाई या कभी-कभी पुरुषों को मिलने वाले वेतन का आधा हिस्सा मिलता था। बच्चों का वेतन भी बहुत कम था, उनसे सरल व अकुशल कार्य करवाए जाते थे, अपने कार्यों की अनियमितताओं के कारण कई बार उनमें शारीरिक विकृति उत्पन्न हो जाती थी। कारखानों की स्थिति बहुत भयानक थी। इनके अंदर प्रकाश के नाम पर केवल खिड़कियों से सूर्य का प्रकाश ही आता था। मशीनें दिन भर धुआं उगलती थी और कुछ कारखानों में, श्रमिक दिन के अंत तक काले रंग की कालिख में ढके रहते थे। सुरक्षा सावधानियों के नाम पर कोई सुविधा मौजूद नहीं थी, जिसके कारण अक्सर दुर्घटनाएं हो जाती थी। श्रमिकों को केवल दोपहर के भोजन के लिए ब्रेक और रात के खाने के लिए ब्रेक मिलता था।
वर्तमान में जीवन गुणवत्ता के संदर्भ में औद्योगिक क्रांति की भारत से तुलना करें तो कुछ स्थितियों में समानता दिखलाई पड़ती है, वहीं कुछ स्थितियों में असमानता। वर्तमान में औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण में वृद्धि होने से ग्रामीण जनसंख्या का प्रवास शहरों की तरफ होने से मलिन बस्तियों का निर्माण हुआ है। यहाँ के लोगों का जीवन स्तर अत्यधिक निम्न है। 2014 के एक आंकलन के अनुसार लखनऊ में 787 झुग्गियां थीं, जिनमें 10 लाख से अधिक लोग रहते थे। भीड़भाड़, सड़कों की दोषपूर्ण व्यवस्था, वेंटिलेशन (Ventilation) की कमी, रोशनी या स्वच्छता सुविधाओं, सुरक्षा, स्वास्थ्य या नैतिकता के अभावों के कारण यह क्षेत्र मानव आवास के योग्य नहीं है। मलिन बस्तियां आकार और अन्य चीजों में भिन्न हो सकती हैं। अधिकतर बस्तियों में विश्वसनीय स्वच्छता सेवाओं, स्वच्छ पानी की आपूर्ति, विश्वसनीय बिजली, कानून प्रवर्तन और अन्य बुनियादी सेवाओं का अभाव होता है। इन बस्तियों में झोपड़ीनुमा घर से लेकर पेशेवर रूप से निर्मित आवास हो सकते हैं जोकि खराब गुणवत्ता वाले निर्माण या खराब बुनियादी रखरखाव के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं।
स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, अपराध इत्यादि की दशाएँ इंग्लैंड के औद्योगिक क्रांति के समय की तरह ही प्रतीत होती है लेकिन कुछ स्तरों पर विभिन्नता भी दिखाई देती है। आज लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं, उनके काम करने के घंटे तय हैं, उनको श्रम से संबंधित बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी कानूनी उपबंध द्वारा नियोक्ता को दी गई है। बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया गया है एवं श्रम के मानकों को भी विभिन्न संवैधानिक या वैधानिक उपबंधों के माध्यम से निश्चित किया गया है। उपरोक्त कारकों के प्रावधानों के तहत औद्योगिक क्रांति की तुलना में वर्तमान भारत के औद्योगीकरण में लोगों की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जो औद्योगिक क्रांति के समय ब्रिटेन (Britain) के लोगों के लिये उपलब्ध नहीं था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3rAK098
https://bit.ly/3cgVMPH
https://bit.ly/3rFm84A
https://sites.google.com/site/mirandaindustrialrevolution/living-con/slum-living
https://bit.ly/3bxnZmb
https://bit.ly/3l6RRsH
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर लखनऊ में मलिन बस्तियों को दिखाती है। (indiatoday)
दूसरी तस्वीर इंग्लैंड में औद्योगिकीकरण को दर्शाती है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर औद्योगिकीकरण को दिखाती है। (फ़्लिकर)