मानव शरीर खरबों जीवाणु, विषाणु और कवक से भरा हुआ है और उन्हें सामूहिक रूप से माइक्रोबायोम (Microbiome) के रूप में जाना जाता है। जबकि कुछ जीवाणु बीमारी से जुड़े हैं, अन्य वास्तव में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली, हृदय, वजन और स्वास्थ्य के कई अन्य पहलुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। जैसे, फेफड़ों के रोगों को प्रभावित करने में आंत माइक्रोबायोटा (Microbiota) की भूमिका काफी प्रभावी बताई गई है। साथ ही यह भी ज्ञात है कि श्वसन विषाणु के संक्रमण से आंत माइक्रोबायोटा में गड़बड़ी होती है। आहार, पर्यावरणीय कारक और आनुवांशिकी आंत माइक्रोबायोटा (जो प्रतिरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं) को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बुढ़ापे में आंत माइक्रोबायोटा विविधता कम हो जाती है और कोविड-19 मुख्य रूप से बुजुर्ग रोगियों में घातक रहा है जो फिर से इस बीमारी में आंत माइक्रोबायोटा की भूमिका की ओर इशारा करता है। प्रतिरक्षा में सुधार के लिए ज्ञात व्यक्तिगत पोषण और पूरक द्वारा आंत माइक्रोबायोटा के लाभ में सुधार करना रोगनिरोधी तरीकों में से एक हो सकता है जिसके द्वारा बुजुर्ग लोगों और प्रतिरक्षादमनकारी रोगी में इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। मानव माइक्रोबायोम हमारे शरीर के कुल वजन का 1% होता है और मानव कोशिकाओं का 10 से 1 तक की संख्या में अधिक होता है।
आंत माइक्रोबायोम भोजन, प्रतिरक्षा प्रणाली, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं के पाचन को नियंत्रित करके जन्म से और जीवन भर तक शरीर को प्रभावित करता है। वहीं स्वस्थ और अस्वास्थ्यकर रोगाणुओं के असंतुलन को कभी-कभी आंत डिस्बिओसिस (Dysbiosis) कहा जाता है, और यह वजन बढ़ाने में योगदान कर सकता है। कई प्रसिद्ध अध्ययनों से पता चला है कि आंत माइक्रोबायम समान जुड़वा बच्चों के बीच पूरी तरह से अलग था, जिनमें से एक मोटापे से ग्रस्त था और दूसरा बिल्कुल स्वस्थ था। इससे पता चला कि माइक्रोबायोम में अंतर आनुवंशिक नहीं थे। दिलचस्प बात यह है कि एक अध्ययन में, जब मोटापे वाले जुड़वां से माइक्रोबायोम को चूहों में स्थानांतरित किया गया था, तो उन्होंने दुबले जुड़वा के मुकाबले अधिक वजन प्राप्त किया, हालांकि दोनों समूहों को एक ही आहार देने के बावजूद। ये अध्ययन बताते हैं कि माइक्रोबायम डिस्बिओसिस वजन बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है। सौभाग्य से, प्रोबायोटिक (Probiotic) एक स्वस्थ माइक्रोबायोम के लिए अच्छे हैं और वजन घटाने में मदद कर सकते हैं। फिर भी, अध्ययन से पता चलता है कि वजन घटाने पर प्रोबायोटिक्स का प्रभाव संभवतः काफी कम है, जिसमें लोग लगभग 1 किलोग्राम ही वजन घटा सकते हैं।
केवल वजन घटाने में ही नहीं, माइक्रोबायोम मानव द्वारा ग्रहण किए गये भोजन को पचाने में मदद करते हैं। ये हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाते हैं तथा रोगों से लड़ने में सहायता प्रदान करते हैं। साथ ही हमारे चयापचय तंत्र को भी नियंत्रित करने में माइक्रोबायोम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार के विटामिन (Vitamin) और प्रोटीन (Protein) का निर्माण करते हैं जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी हैं। विभिन्न रोगों, जैसे मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए इन सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जा सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोधों से यह पता चलता है कि आंत में उपस्थित माइक्रोबायोम मानसिक स्वास्थ्य से भी सम्बंधित हैं और इसलिए ये कई मानसिक विकारों जैसे चिंता या तनाव आदि को नियंत्रित करते हैं। मस्तिष्क का केंद्रीय तंत्रिका तंत्र आंतों से इन सूक्ष्मजीवों के समूह से जुड़ा होता है। ये जीव हमारी आंतों में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं। इस प्रक्रिया में न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitters) निकलते हैं जो सुचारू रूप से कार्य करने में मस्तिष्क की मदद करते हैं। यदि विषाक्त पदार्थ शरीर से बाहर न निकले तो मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है तथा व्यक्ति चिंता या डिप्रेशन (Depression) की स्थिति में आ जाता है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करने में भी माइक्रोबायोम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इनके कई अन्य भी फायदें हैं जो माइक्रोबायोम के माध्यम से मानव शरीर को प्राप्त होते हैं। माइक्रोबायोम की भूमिका को समझने और इनसे लाभांवित होने के लिए वर्तमान में मानव माइक्रोबायोम परियोजना शुरू की गयी है जिसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य पर सूक्ष्मजीवों के प्रभाव को पहचानने और विश्लेषण करने हेतु संसाधनों और विशेषज्ञों को विकसित करना है। यह परियोजना 2007 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा शुरू की गयी थी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने इस परियोजना के लिए पांच सालों के अंदर 170 मिलियन डॉलर का निवेश किया है तथा यह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (United State of America) के कई संस्थानों और केंद्रों को सहायता प्रदान कर रहा है। यह परियोजना एक नक़्शे की भांति कार्य कर रही है जो मानव स्वास्थ्य, पोषण, प्रतिरक्षा तंत्र आदि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका को खोजती है तथा शरीर के प्रमुख अंगों जैसे-नाक, मुंह, त्वचा आदि पर केंद्रित है।
इसकी सहायता से शरीर के हानिकारक सूक्ष्मजीवों को लाभकारी सूक्ष्मजीवों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है ताकि सूक्ष्मजीवों से होने वाले हानिकारक रोगों की संभावना को कम किया जा सके। इस परियोजना के माध्यम से उन विभिन्न कारकों की पहचान की जा सकती है जो सूक्ष्मजीवों की संरचना को बदल सकते हैं। इस परियोजना को भारत में भी शुरू किया जा चुका है जो उन असंख्य सूक्ष्मजीवों के अध्ययन को केंद्रित करती है जो भारतीय लोगों में मौजूद हैं, विशेष रूप से उनकी त्वचा और आंतों में। इस परियोजना के तहत 20,600 व्यक्तियों की त्वचा, लार, खून और मल के नमूने एकत्रित किये गये हैं। नमूने एकत्रित करने के बाद इनमें मौजूद सूक्ष्मजीवों के जीनोम (Genome) अनुक्रम की पहचान की जा रही है। यह परियोजना केंद्र सरकार द्वारा 150 करोड़ रूपए की लागत से संचालित की गयी है जिसके भविष्य में बहुत लाभकारी परिणाम हो सकते हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3tsUs3n
https://bit.ly/38JFXA5
https://bit.ly/3cw4SIE
https://bit.ly/2uJWCzG
https://bit.ly/2kfwvOR
https://bit.ly/30Nw8g0
https://bit.ly/3vmnLGx
https://bit.ly/3tnPrc4
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र एक व्यक्ति में माइक्रोबायोम को दर्शाता है। (NDLA)
दूसरी तस्वीर मानव शरीर में माइक्रोबायोम को दिखाती है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर में माइक्रोबायोम भूमिकाओं को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)