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टार्डिग्रेड संघ में लगभग 1,300 ज्ञात प्रजातियां हैं, जो उच्च संघ एकडोजोआ (Ecdysozoa) का एक हिस्सा है, जिसमें केंचुल-मोचन प्रक्रिया से उत्पन्न किये गए जानवर जैसे कि आर्थ्रोपोड (Arthropod) और नेमाटोड (Nematode) होते हैं। संघ के सबसे पहले ज्ञात यथार्थ प्रजाति उत्तरी अमेरिका (North America) में क्रेटेशियस एम्बर (Cretaceous amber) के नाम से जानी जाती है। पूरी तरह से विकसित होने पर टार्डिग्रेड आमतौर पर लगभग 0.02 इंच लंबे होते हैं। चार पैरों के साथ वे छोटे और मोटे होते हैं। टार्डिग्रेड काई और शैवाक पर पाए जाते हैं तथा पौधों की कोशिकाओं, शैवाल और छोटे अकशेरुकीय का सेवन करते हैं। इनकी कुछ प्रजातियां मांसाहारी भी हैं जो अपने भोजन के लिये अन्य टार्डिग्रेड्स का शिकार कर सकती हैं। उन्हें कम-शक्ति वाले सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखा जा सकता है, जिससे वे छात्रों और शौकिया वैज्ञानिकों के लिए सुलभ हो सकते हैं। टार्डिग्रेड एक बड़ी मात्रा में प्रतिउपचायक भी बनाते हैं, जो उनके महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा करता है। ये एक प्रोटीन (Protein) का उत्पादन भी करते हैं जो उनके डीएनए (DNA) को हानिकारक विकिरण से सुरक्षित रखता है। यह लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों माध्यम से प्रजनन करते हैं तथा एक बार में एक से 30 अंडे तक दे सकते हैं।
2016 में, वैज्ञानिकों ने दो ट्यून (Tun) और एक अंडे को पुनर्जीवित किया जो क्रिप्टोबायोसिस में 30 से अधिक वर्षों से थे। यह प्रयोग क्रायोबायोलॉजी पत्रिका में भी बताया गया था। बीबीसी (BBC) के अनुसार, 1948 में एक प्रयोग से मिले विवरण में दावा किया गया है कि 120 साल पुराने एक ट्यून को पुनर्जीवित किया गया था, लेकिन इस शोध को कभी भी दोहराया नहीं गया। 2007 में एक प्रयोग किया गया जिसमें टार्डिग्रेड बिना पानी, ऑक्सीजन (Oxygen) तथा उच्च विकिरण में दस दिनों तक जीवित रहा। ये कई वर्षों तक बिना खाये-पिये रह सकते हैं और ऐसा होने पर ये अपने शरीर की हर गतिविधि को रोक देते हैं। अगर इन्हें थोड़ा पानी मिल जाये तो ये वापस अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं। 2019 में भारत द्वारा चंद्रमा पर अपना चंद्रयान II भेजा गया था, लेकिन आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि इससे भी पहले चंद्रमा पर यह जीव पहुंच चुका था। दरसल चंद्रयान II से पूर्व इजराइल (Israel) के आर्च मिशन फाउंडेशन (Arch Mission Foundation) ने चंद्रमा पर अपना एक स्पेस-क्राफ्ट (Space craft) भेजा किंतु कुछ तकनीकी खराबी के कारण यह चंद्रमा पर ठीक से उतर नहीं पाया और ध्वंस हो गया।