पूरा दिन ऑफिस में काम करने के बाद जब आप थके- मांदे घर आते है, खाने की भीनी सी खुशबू से दिनभर की सारी थकान मिट जाती है। खाने की खुशबू खुद में स्वाद और प्रेम को समेटे हुए घर के वातावरण में फैली रहती है। फिर टेबल पर सबके साथ बैठकर खाने की ख़ुशी को शब्दों में शायद बयां करना मुश्किल है। परिवार में हँसते हुए चेहरे देखकर मन को अद्भुत शांति मिलती है। तथा एक और दिन काम पर जाने का उद्देश्य मिल जाता है।
सुगंध इतनी शक्तिशाली होती है की ये हमारे व्यवहार, मूड, और पूरी दिनचर्या को प्रभावित कर सकती है। प्रतिदिन हम हज़ारों प्रकार की सुगंध से रूबरू होते है। जब आप घर में होते है तो रसोई से आने वाली खुशबू, तथा जब घर से बाहर होते है तो गलियों में बनने वाले लज़ीज़ पकवानों की महक हमारे दिमाग पर हावी हो जाती। वर्षों तक उन्हें सूंघने से, हम इतने अनुभवी हो जाते हैं की केवल सुगंध से ही पहचान सकते है की पाकवान क्या बना है।
और यदि महक ऐसी है कि जो हमने पहले न सूंघी हो जो उस पकवान को खाने की इच्छा और तीव्र हो जाती है।
गरमा-गरम खाद्य पदार्थों की खुशबु हमरे दिमाग में गंध से जुडी कोशिकाओं को सक्रिय कर देती है। यही कारण है की अपने पसंदीदा व्यंजनों को देखते ही हम उन्हें ललचाई नज़रों से देखने लगते है। भारत खाने-पीने के शौकीनों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है. लखनऊ जैसे बड़े शहर की ओर खाने के शौकीन अनायास ही खींचे चले आते है। अपने प्रतिष्ठित व्यंजनों की वजह से इस जिले का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। कबाब बिरयानी जैसे व्यंजन तो लखनऊ की शान है। नवाबों के इस शहर में बादशाहों का भोजन के प्रति प्रेम किसी से भी छुपा नहीं है।
टुंडे कबाब का स्वाद आपको उँगलियाँ चाटने पर मजबूर कर देगा। मशहूर लखनवी टुंडे कबाब 110 साल पुराना लखनवी व्यंजन है। इस अकेले व्यंजन में 120 मसालों को मिश्रित करके डाला जाता है। जो इसे बेहद खास बनाता है। लखनऊ केवल मांसाहारी ही नहीं बल्कि शाकाहारी शौकीनों के लिए भी जन्नत से कम नहीं है। केवल 20 से 30 रुपये खर्च करने में आप वेज कबाब रोल का आनंद उठा सकते है। इसका केवल एक बार स्वाद चखने से आप इसके शौकीन हो जायेंगे। वेज कबाब रोल आमतौर पर पूरे लखनऊ में आसानी से मिल जायेगा।
मनुष्य की असीमित क्षमताओं के बीच, सूंघने की क्षमता दिलचस्प और सबसे ख़ास है। यह हमारी पांच इंद्रियों में से सबसे अधिक प्रबल भी है। यह जानना बेहद दिलचस्प है, कि हमारा दिमाग लगभग 1 ट्रिलियन (1,000,000,000,000) अलग-अलग प्रकार गंध सूंघ सकता है। और सबको छांट कर अलग-अलग कर सकता है। हमारा सूंघने का विज्ञान भी बहुत रोचक और आसान है। रसोई में बनने वाले पकवान की सुगंध जब आपके नाक में पहुँचती है, तो गंध के बेहद छोटे अणु नाक गुहा में पहुँच जाते है। श्लेष्म इन अणुओं को अवशोषित कर लेता है, जिसमें घ्राण(olfactory) रिसेप्टर्स होते है। इन रिसेप्टर्स में 5 मिलियन "सिलिया" से भरी कोशिकाएं होती है। जैसे ही गंध के अणु "सिलिया के संपर्क में आते है, घ्राण (olfactory) रिसेप्टर्स हमारे मस्तिष्क के खास क्षेत्र में संदेश भेजते है। और इस तरह हम किसी भी सुगंध का आनंद ले पाते है।
आपने अक्सर महसूस किया होगा कि नई किताबों की खुशबू आपके बचपनकी यादों को, या उस किताब से जुडी किसी पुरानी स्मृति को ताज़ा कर देती है। किसी खास परफ्यूम अथवा कपड़े आदि की खुशबु से आपको अचानक ही स्कूल, कॉलेज के दिन याद आने लगते है। इस का प्रमुख कारण घ्राण स्मृति ( olfactory memory) होती है। घ्राण स्मृति माँ और शिशु के बीच समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, तथा एक बड़े स्तर पर हमारे भावनात्मक व्यवहार को भी नियंत्रित करती है। बहुत से लोग अपनी घ्राण स्मृति खो देते हैं, अर्थात उन्हें गंध से जुड़ी कोई भी बात याद नहीं रहती है। घ्राण स्मृति में कमी मुख्यतः अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश के कारण आती है।
खान पान के सम्बन्ध में घ्राण स्मृति खुशबु अथवा महक को लेकर बेहद संवेदनशील होता है। यह बड़ी ही आसानी दूर बन रहे व्यंजनो को पहचान सकता है। और बड़ी ही चालाकी से उन व्यंजनों के नाम आपको बता सकता है, जो आने कभी खाए हो। हमने जाना की अनेक प्रकार की खुशबुओं को पहचानने की कला हमारे लिए दैनिक जीवन को बेहद आसान बना देती है।और भावनात्मक रूप से हमारे आपसी संबंधो को प्रभावित करती है तथा उन्हें मज़बूत बनाती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3rIFUfp
https://bit.ly/3bFcRUr
https://bit.ly/3ezHlJq
https://bit.ly/3qOWWY8
https://bit.ly/2Q0cprx
https://bit.ly/3bFvCHc
https://bit.ly/3vjKxyH
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में कबाब की दुकानें दिखाई गई हैं। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर एक रेस्तरां में कबाब दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर एक रेस्तरां में स्वादिष्ट मिठाई दिखाती है। (प्रारंग)