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कभी लखनऊ के चिनहट में मशहूर थी मिट्टी के बर्तनों की ये कला

लखनऊ

 10-03-2021 10:41 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
लखनऊ शहर, अपनी समृद्ध विरासत, तौर-तरीकों और नवाबी संस्कृति के लिए जाना जाता है, इसमें एक और आयाम चिनहट मिट्टी के बर्तनों (Chinhat Pottery) का भी है। कभी चीनी मिट्टी के बर्तनों के लिये लखनऊ का चिनहट विख्यात था। इसे अपना नाम उस स्थान के नाम पर मिला है, जहां यह उत्पन्न हुआ। चिनहट पॉटरी मुख्य रूप से चिनहट क्षेत्र में की जाती है जो लखनऊ शहर के पूर्वी इलाके में फैज़ाबाद रोड (Faizabad Road) पर स्थित है। चिनहट 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश राज्य में मिट्टी के बर्तनों के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र के रूप में उभरा, जिसने कई पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। यह टेराकोटा (terracotta) उद्योग एक लंबे समय से पहले से ही पनप रहा था। चिनहट ने न केवल भारत से बल्कि पूरे विश्व से आगंतुकों को आकर्षित किया। चिनहट पॉटरी (Chinhat Pottery) दस्तकारी वाले मिट्टी के बर्तनों का एक रचनात्मक और सुंदर कला का रूप है जो स्थानीय कारीगरों के लिए रोटी कमाने का एक जरिया है। मुगल और नवाबों के शासन के समय से ही लखनऊ में मिट्टी के बर्तन या वस्तुएं बनायी जाती आ रही हैं। यहां के कुम्हारों के लिए, मिट्टी के बर्तन बनाना केवल एक आजीविका कमाने वाला एक व्यवसाय ही नहीं था, यह उनका काम था जिसे वे पूजते थे।
चिनहट के विषय में जानने से पहले हमें चीनी मिट्टी के बर्तन के विषय में जानना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यही इनकी उत्पत्ति का स्त्रोत माना जाता है। चीनी मिट्टी के विषय में यदि हम पढ़ते हैं तो हमें पता चलता है की इसका जन्म चीन (China) से सम्बंधित है। इस बर्तन का इतिहास शंग राजवंश (Shang Dynasty, 1600 ईसा पूर्व में शुरू) से जुड़ा हुआ है जिसे की प्रारम्भिक सिरेमिक (Ceramic) बर्तन बनाने वाला माना समय माना जाता है और इसकी शुरुआत "प्रोटो-पोर्सिलेन" (Proto-Porcelain) से हुई थी,। कालांतर में हान राजवंश (Han Dynasty) ने इस कला को और निखारा तथा परिष्कृत चीनी मिट्टी के बर्तनों को जन्म दिया। इसके बाद यह कला सुई और तांग (Sui and Tang) राजवंश द्वारा भी परिष्कृत की गई। धीरे धीरे यह कला दक्षिण पूर्व एशिया में फैलने लगीं परंतु पहले से ही इन चीनी मिट्टी के बर्तनों को इस्लामी दुनिया को निर्यात किया गया जा रहा था, जहां वे अत्यधिक बेशकीमती थे। आखिरकार, चीनी मिट्टी के बर्तन और इसे बनाने की कला पूर्वी एशिया के अन्य क्षेत्रों में फैलने लगी। मिंग राजवंश द्वारा (Ming Dynasty) (1368-1644 ई) द्वारा, बेहतरीन माल का उत्पादन एक ही शहर में केंद्रित किया गया, इस समय तक चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने की कला बहुत परिष्कृत हो चुकी थी और सिल्क रोड (Silk Road) के साथ चीनी मिट्टी के सामान का व्यापार भी किया गया। चीनी मिट्टी के बर्तन पूरे एशिया, यूरोप और अफ्रीका तक पहुंच गये। एक बार जब उत्पादन की तकनीक फैल गई, तो दुनिया के अन्य हिस्सों में चीनी मिट्टी के बर्तन का निर्माण किया जाने लगा। सिल्क रूट से इस बर्तन का प्रसार बड़ी संख्या में होना शुरू हुआ था तथा भारत में भी यह इसी प्रकार से आया था। 1517 में, पुर्तगाली व्यापारियों ने मिंग राजवंश के साथ समुद्र के रास्ते सीधे व्यापार शुरू किया और 1598 में डच व्यापारियों ने इसका अनुसरण किया। तमाम देशों में यह बर्तन ही नहीं पहुंचा बल्कि इसको बनाने की विधि भी पहुंची और इसी के साथ यह पूरे विश्व भर में फैल गयी।
चीनी मिट्टी के बर्तन के तीन मुख्य प्रकार हैं: कठोर पेस्ट या हार्ड-पेस्ट (Hard Paste), मुलायम पेस्ट (Soft Paste) और बोन चाइना (Bone China)। चीन में हार्ड-पेस्ट चीनी मिट्टी का आविष्कार किया गया था, चीनी मिट्टी के बर्तन निर्माताओं ने काओलिन (Kaolin), फेल्डस्पार (Feldspar) और क्वार्ट्ज (Quartz) का इस्तेमाल हार्ड-पेस्ट पोर्सलेन के लिए मूल अवयवों के रूप में किया। नरम पेस्ट चीनी मिट्टी बनाने के किये यूरोपीय सिरेमिक कलाकारों के शुरुआती प्रयासों में सोपस्टोन और चूने को इन रचनाओं में शामिल किया। लेकिन हार्ड पेस्ट चीनी मिट्टी के बर्तनों की तुलना में ये कम तापमान पर बनाये जाते थे, नतीजतन, वस्तुएं अधिक भंगुर होती थी। बोन चाइना मिश्रण में काओलिन मिट्टी और फेल्डस्पार के साथ हड्डी राख को शामिल किया जाता है। दुनिया भर में चीनी मिट्टी के शिल्प की विभिन्न महत्वपूर्ण शैलियों के बारे में बात करे तो चिनहट और चीनी मिट्टी (Porcelain) के अलावा स्टोनवेयर (Stoneware) शैली भी है। चिनहट शैली में मिट्टी के बर्तन को 600°C से 1200°C पकाया जाता है। इस कला का नवपाषाण काल से लेकर आज तक का निरंतर इतिहास रहा है। स्टोनवेयर मिट्टी के बर्तनों को 1,100°C से 1,200°C तक तापमान पर भट्टी में पकाया जाता है। अंत में पोर्सिलेन (Porcelain) शैली में मिट्टी के बर्तनों को 1,200°C और 1,400°C बीच के तापमान पर भट्टी में पकाया जाता है। इन बर्तनों को बनाने के मुख्य रूप से चार चरण होते हैं जैसे की बर्तन का निर्माण करना, दूसरा उस बर्तन पर चमक के लिए मिट्टी का लेप लगाना, तीसरा उस बर्तन को सजाना तथा उसमें रंग भरना तथा अंतिम चरण है उसको भट्टी में पकाना। इतनी लम्बी प्रक्रिया के बाद ही एक चीनी मिट्टी का बर्तन तैयार होता है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मिट्टी के साथ काम करना अवसाद (Depression) और चिंता को दूर करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है, और यह ध्यान लगाने में भी मददगार है। कुम्हार और शिक्षिका नेहा रमैया (Neha Ramaiya) इस बात की पुष्टि करती है कि मिट्टी के बर्तनों ने न केवल उन्हें अवसाद से बाहर आने में मदद की, बल्कि इसने मिट्टी के बर्तनों के शिक्षण क्षेत्र में भी इनके लिये द्वार खोले। मिट्टी के पात्र में स्नातक करने के बाद इन्होंने पहले खुद को ठीक किया और बाद में इस कला को ओरों तक भी पहुंचाया, जोकि अवसाद से पीड़ित थे। नेहा ने विदेश में क्ले थेरेपी (Clay Therapy) में उच्च अध्ययन प्राप्त किया और मुंबई के कुछ कॉलेजों में सिरेमिक-शिक्षण का काम शुरू करने के लिए वे भारत वापस आई।
एक समय पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चिनहट अपने पॉटरी उद्योग के लिए जाना जाता था। यहां के दर्जनों घरों में चीनी मिट्टी का काम होता था। यही नहीं इसकी बिक्री के लिए पॉटरी उद्योग बिक्री केंद्र की भी शुरूआत की गई थी। उस समय चिनहट के कुम्हार, दिलचस्प रूप से, शिल्प या डिजाइन में कोई प्रशिक्षण प्राप्त नहीं करते थे। चिनहट पॉटरी से बनने वाले उत्पादों में मग (Mug), कटोरे, फूलदान, कप (Cup) और प्लेटें (Plates) शामिल थे। इस पर महिलाओं द्वारा कई डिज़ाइन बनाए जाते हैं जोकि ज्यामितीय आकृतियों में होते थे। परंतु समय की मार और सरकार की अनदेखी ने इस उद्योग पर काफी असर डाला। बाजारों में सस्ते चीनी उत्पादों की उपलब्धता में हालिया तेज़ी और अधिकारियों की अनदेखी ने इन कुम्हारों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। कुम्हारों का कहना है कि चिनहट पॉटरी उद्योग ने अपने अस्तित्व को अपने आप ही बचाया है। सरकार ने इन उत्पादों के विपणन और बिक्री में उनकी कोई मदद नहीं की। 1957 में शुरू हुई इस सरकारी ईकाई को 1997 में बंद कर दिया गया था क्योंकि अधिकारियों ने इसे घाटे का व्यापार घोषित किया था। जो थोड़ी बहुत कसर रह गई थी वो कोविड के इस दौर ने पूरी कर दी। देश के कई कुम्हारों का कहना है कि कोविड -19 ने उनके जीवन को इतनी बुरी तरह से बाधित किया कि उन्हें अब आजीविका के अन्य साधनों की तलाश करनी होगी।
परन्तु इस उद्योग में अभी भी एक बड़े लाभदायक व्यवसाय के रूप में बदलने की बहुत बड़ी संभावना है। लेकिन, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर शिल्प को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह लखनऊ शहर के साथ-साथ स्थानीय कारीगरों के लिए भी एक बड़ी क्षमता रखता है। सरकार को लोगों को इसे खरीदने के लिए प्रेरित करना चाहिए और विदेशों में निर्यात करना शुरू करना चाहिए जो इस उद्योग के लिए बहुत बड़ा लाभ हो सकता है। चिनहट में कुम्हारों को, शिल्प और डिजाइन के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं मिला, इसलिए सरकार को एक प्रशिक्षण केंद्र शुरू करना चाहिए तथा युवाओं के लिए चिनहट मिट्टी के बर्तनों के पाठ्यक्रम को भी शुरू करना चाहिए, ताकि इच्छुक छात्र बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें और इसके बारे में भी जान सकें। चिनहट आज भी भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य कर रहा है। ये मिट्टी के बर्तन आज भी अपनी एक अलग ही कहानी प्रस्तुत करते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3qpbyNw
https://bit.ly/3efuEmT
https://bit.ly/2O8jSEh
https://bit.ly/3qmQffC
https://bit.ly/3l0JvTC

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र चिनहट मिट्टी के बर्तनों को दर्शाता है। (ट्विटर)
दूसरी तस्वीर में चिनहट मिट्टी के बर्तन को बनाते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर में चिनहट मिट्टी के बर्तन दिखाए गए हैं। (यूट्यूब)


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