यूनानी चिकित्सा में महत्वपूर्ण हैं, रामपुर में पायी जाने वाली औषधीय प्रजातियां

वन
09-03-2021 10:19 AM
Post Viewership from Post Date to 14- Mar-2021 (5th day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2441 1757 0 4198
* Please see metrics definition on bottom of this page.
यूनानी चिकित्सा में महत्वपूर्ण हैं, रामपुर में पायी जाने वाली औषधीय प्रजातियां
वन मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत का कुल वन और पेड़ आवरण (Tree Cover) देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.56% है। वन आवरण में वृद्धि के मामले में देश के पांच शीर्ष राज्य कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश हैं। रामपुर जिले की यदि बात करें तो, यहां ऐसी 30 पादप प्रजातियां पायी जाती हैं, जो यूनानी चिकित्सा के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये 30 प्रजातियां एंजियोस्पर्म (Angiosperms) के 21 परिवारों से संबंधित हैं, जिनका उपयोग आमतौर पर क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों द्वारा मनुष्यों और मवेशियों के विभिन्न रोगों का निवारण करने के लिए किया जाता है। यहां की विभिन्न देशी जातियों और सांस्कृतिक समूहों को इन पौधों और उनके गुणों का अच्छा ज्ञान प्राप्त है, जो उन्हें कई पीढ़ियों से मौखिक रूप से विरासत में मिला है। यहां रहने वाले संजातीय और सांस्कृतिक समूहों में से कुछ समूह कंबोज (Kamboj), बॉक्सस (Boxas), जटसिख (Jatsikh), रायसिख (Raisikh) आदि हैं, जो यहां के जंगलों के आस-पास बसे हुए हैं। एंजियोस्पर्म की इन 30 प्रजातियों में से कुछ प्रजातियां निम्नलिखित हैं :
बबूल (अकेसिआ निलोटिका - Acacia Nilotica) : इस पेड़ के तने की छाल का उपयोग पेचिश के इलाज के लिए किया जाता है। इसे जामुन और अमरूद की कलियों के साथ उबाला जाता है, तथा प्राप्त तरल पदार्थ 5-7 दिनों के लिए दिन में दो से तीन बार सेवन किया जाता है।
चिरचिटा (अच्यरन्थेस एस्पररा एल - Achyranthes Aspera) : इस पौधे की पत्तियों का पेस्ट (Paste) त्वचा पर चोट या खरोंच लगने पर खून रोकने के लिए किया जाता है।
अजान (एलस्टोनिया स्कोलेरिस - Alstonia Scholaris) : बच्चों को खांसी-जुकाम होने पर इसके तने की छाल का उपयोग काढ़ा बनाने के लिए किया जाता है।
करौंदा (ब्लमिया लैकेरा - Blumea Lacera) : कुत्ते के काटने पर इसके ताजे पत्तों के रस को काली मिर्च के पाउडर और सामान्य नमक के साथ मिलाकर इसका सेवन किया जाता है।
अमलतास (कैसिया फाईस्टुलाएल - Cassia Fistula L) : इसकी जड़ को पानी के साथ मिलाकर पत्थर पर घिसा जाता है, तथा उसे त्वचा में मौजूद फंगल (Fungal) संक्रमण पर लगाया जाता है।
ब्राह्मी या मंडूकपर्णी (सेंटेला एशियाटिक - Centella Asiatica) : इसकी ताजी पत्तियों को पीसकर पानी के साथ एक शीतल पेय के रूप में पीया जाता है।
बेरी (ज़िज़िफ़स मौरिटिआना लाम - Zizyphus Mauritiana Lam) : इसकी ताजा पत्ती का पेस्ट माथे पर सिरदर्द के इलाज के लिए लगाया जाता है।
कीफ बेल (क्विरिवेलिया फ्रूटसेन्स - Quirivelia Frutescens) : इसके पूरे पौधों को टुकड़ों में काटकर भैंसों और गायों को खिलाया जाता है।
अर्जुन (टर्मिनलिया अर्जुना - Terminalia Arjuna) : इसके तने की छाल को पानी में उबाला जाता है, और ठंडा करके रोजाना कार्डियक टॉनिक (Cardiac tonic) के रूप में इसका सेवन किया जाता है।

इनके अलावा बरगद (फिकस बेंघालेंसिस एल - Ficus Benghalensis L), जंगली गोभी (लुनैया प्रोकुम्बेंस - Launaea Procumbens), दुधी घांस (आइसेरिस पॉलीसेफला - Lxeris Polycephala) आदि भी एंजियोस्पर्म की वे औषधीय प्रजातियां हैं, जो रामपुर क्षेत्र में पायी जाती हैं। एंजियोस्पर्म, पुष्पीय पौधों की लगभग 300,000 प्रजातियों का समूह है, जो प्लांटी किंगडम (Plantae kingdom) का सबसे बड़ा और सबसे विविध समूह है। एंजियोस्पर्म वर्तमान समय में सभी जीवित हरे पौधों के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। एंजियोस्पर्म संवहनी बीज वाले पौधे हैं, जिसमें अंडाणु (अण्डा) निषेचित होकर एक संलग्न खोखले अंडाशय में एक बीज के रूप में विकसित हो जाते हैं। अंडाशय आमतौर पर एक फूल में संलग्न होता है। एंजियोस्पर्म के अंतर्गत आने वाले पौधों में नर या मादा या फिर दोनों प्रजनन अंग मौजूद होते हैं। इन पौधों में फल, पौधे के परिपक्व पुष्प अंगों से विकसित होते हैं। पौधों के किसी भी अन्य समूह की तुलना में पृथ्वी पर (विशेष रूप से स्थलीय क्षेत्रों में) एंजियोस्पर्म का प्रभुत्व है। नतीजतन, मानव सहित पक्षियों और स्तनधारियों के लिए एंजियोस्पर्म भोजन का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम स्रोत हैं। इसके अलावा ये आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं, क्यों कि, इनका उपयोग फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals), रेशा उत्पाद, लकड़ी, आभूषण और अन्य वाणिज्यिक उत्पादों के स्रोत के रूप में किया जाता है।
रामपुर क्षेत्र में पाये जाने वाले औषधीय पेड़-पौधों का उपयोग आज भी दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए किया जा रहा है। हालांकि, इनके उपयोग में अब गिरावट आने लगी है, विशेष रूप से तराई क्षेत्रों में। इसका मुख्य कारण कृषि आबादी का भारी दबाव है, जो खेती के लिए भूमि की लगातार बढ़ती मांग के साथ बढ़ता जा रहा है। कृषि के विस्तार के कारण, चिकित्सा की एलोपैथिक (Allopathic) प्रणाली की बढ़ती पहुंच और साथ ही साथ युवा पीढ़ी जो इन औषधीय पौधों में रूचि नहीं ले रही है, के कारण इस क्षेत्र में औषधीय पौधों का यह पैतृक ज्ञान विलुप्त होने की ओर अग्रसर है। इसलिए इन सभी औषधीय पेड़-पौधों का संरक्षण किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3egMtSD
https://bit.ly/3kPEsoU
https://bit.ly/3egJ4Db
https://bit.ly/3edM6rT

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में बबूल का पेड़ और फूल दिखाई देता है। (विकिपीडिया)
दूसरी तस्वीर में अर्जुन के पेड़, पत्तियों और फलों को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
अंतिम तस्वीर में पत्तियों द्वारा बनाई गई दवाओं को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)