भारत अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है, जिसका एक हिस्सा भारतीय गैंडा भी है। भारतीय गैंडे मुख्य रूप से उत्तरी भारत और नेपाल (Nepal) में पाए जाते हैं। इन विशाल जानवरों की शारीरिक संरचना इनके अफ्रीकी (African) रिश्तेदारों से कुछ अलग होती है। उनकी खंडित खाल एक प्राकृतिक शारीरिक कवच के भयावह आवरण की तरह दिखती है। मोटी चमड़ी की प्लेटों (Plates) के बीच लचीली त्वचा की मदद से वे किसी भी तरफ मुड़ सकते हैं या गति कर सकते हैं। भारतीय गैंडें के लैटिन (Latin) नाम राइनोसिरोस यूनिकॉर्निस (Rhinoceros unicorns) से स्पष्ट होता है कि, इसमें केवल एक ही सींग मौजूद होता है। अन्य गैंडों की तरह, इन जानवरों में सुनने की क्षमता और गंध महसूस करने की क्षमता बहुत अधिक होती है। वे एक-दूसरे की गंध को सूंघकर एक-दूसरे को आसानी से ढूंढ लेते हैं। जब यह उत्तेजित होता है, तो इसकी गति और भी तेज हो जाती है। भारतीय गैंडा घास-फूस खाने वाला जंतु है, जो अपने घास वाले आवास के माध्यम से सुरंग जैसे मार्गों में भी यात्रा कर सकता है। इनके होंठो की संरचना ऐसी है कि, ये आसानी से किसी भी चीज को पकड़ सकते हैं। इन्हीं होंठों से वे लंबी घास को आसानी से पकड़ पाते हैं। घास के अलावा, गैंडे फल, पत्ते और कभी-कभी खेत की फसल भी खाते हैं। वे अक्सर पानी वाले क्षेत्रों के आसपास मौजूद होते हैं और इसलिए कभी-कभार जलीय पौधों का भी सेवन करते हैं। अपने प्रमुख सींग के लिए ये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं, हालांकि यह इनके पतन का कारण भी है। चीन (China), ताइवान (Taiwan), हांगकांग (Hong Kong) और सिंगापुर (Singapore) में इनके सींग का उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है। इसलिए कठोर और वृद्धि करने वाले सींग के कारण कई गैंडों का शिकार कर दिया जाता है। सींग को उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में खंजर के एक सजावटी हत्थे के रूप में भी महत्व दिया जाता है।
एक समय में इन्हें कृषि कीट कहा जाता था, किंतु 1900 की शुरुआत में इनकी संख्या 200 से भी कम हो गई थी। विलुप्त होने के बढ़ते खतरे को स्वीकार करते हुए, भारतीय और नेपाली अधिकारियों ने जगह-जगह पर कड़े सुरक्षा प्रबंध किए और इस महान एक सींग वाले गैंडे की संख्या 2005 तक लगभग 2,500 पहुंचाई, जो कि, एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी। हालांकि, इसी बीच मानव विकास के लिए इन प्रजातियों के आवास को बहुत अधिक नुकसान भी पहुंचाया गया। असम में, गैंडों को केवल तीन संरक्षित क्षेत्रों में पाया गया, जिनमें काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य और ओरंग राष्ट्रीय उद्यान शामिल थे। इन तीन संरक्षित क्षेत्रों में भी बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बहुत अधिक था, जो गैंडे की आबादी को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त था। प्रजाति के संरक्षण के लिए 2005 में, संरक्षणवादियों ने बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (Bodoland Territorial Council) और असम सरकार के साथ मिलकर प्रजातियों के प्रबंधन के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति विकसित करने की योजना “इंडियन राइनो विजन 2020” (Indian Rhino Vision 2020 - IRV2020) बनायी। इस योजना का उद्देश्य 2020 तक महान एक सींग वाले गैंडों की मजबूत जंगली प्रजाति को 3,000 के पार पहुंचाना था। इसे ध्यान में रखते हुए 2008 और 2012 के बीच, मानस राष्ट्रीय उद्यान में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से 18 गैंडों का स्थानांतरण किया गया। वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण केंद्र द्वारा आठ और गैंडों को मानस राष्ट्रीय उद्यान में पेश किया गया। इसके बाद उद्यान में 20 नये गैंडों का जन्म हुआ, जिसने यह संकेत दिया कि, गैंडे अपने नए आवास में अच्छी तरह से अनुकूलित हो रहे हैं। दुर्भाग्यवश, पूरे असम में, विशेषकर मानस राष्ट्रीय उद्यान में, 2012 और 2013 में अवैध शिकार में वृद्धि होना शुरू हुई तथा गैंडों की सुरक्षा के लिए स्थानांतरण रोक दिया गया। फरवरी 2020 के अंत में, दो मादा गैंडों को मानस राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया, जो आईआरवी 2020 कार्यक्रम के तहत होने वाला सातवां सफल स्थानांतरण था। कोरोनो महामारी इस परियोजना के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुई, क्यों कि, इसके कारण योजना को कई असफलताओं का सामना करना पड़ा। अंतिम स्थानांतरण (अप्रैल 2020 में) के बाद इसे स्थगित कर दिया गया। मौजूदा कोरोना महामारी के मद्देनजर लगायी गयी तालाबंदी में जहां अधिकारियों का ध्यान तालाबंदी को उचित रूप से लागू करने और लोगों को उनके घरों तक सीमित करने में रहा, वहीं पूरे भारत में अवैध शिकार के मामलों में तीव्र वृद्धि देखी गई। रिपोर्टों (Reports) के अनुसार, देश भर में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर सशस्त्र शिकारी घूमते रहे। चूंकि अधिकारी संदिग्ध गतिविधियों की सूचना के लिए स्थानीय लोगों पर भी निर्भर रहते हैं, इसलिए तालाबंदी से वे सूचनाएं भी अधिकारियों को प्राप्त नहीं हो पायीं और इसका फायदा शिकारियों ने प्राप्त किया।
तालाबंदी के दौरान असम में स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में गैंडे का अवैध शिकार किया गया। इस मामले में हुई गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने बताया कि, उत्तर पूर्व में गैंडे के शिकारियों का सम्बंध मणिपुर विद्रोहियों से हैं। पुलिस के अनुसार ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (Zomi Revolutionary Army) के कैडर्स (Cadres), राष्ट्रीय सीमा के पार सींग की तस्करी के रैकेट (Racket) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी या तो अवैध शिकार का आदेश देती है, या अन्य शिकारियों से गैंडे के सींग खरीदती है, ताकि बाहरी देशों में उनका व्यापार किया जा सके। इस प्रकार संगठित अवैध संघ भारत में अपनी पकड़ बना रहे हैं। गैंडे के अवैध शिकार को रोकना वास्तव में सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
संदर्भ:
https://on।natgeo।com/2OnZUoV
https://bit।ly/3rh0GCJ
https://bit।ly/3qjbrTD
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में ग्रेट इंडियन वन-हॉर्न्ड राइनो दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में वन हॉर्न राइनो दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
अंतिम तस्वीर दक्षिण अफ्रीका के गैंडे को दिखाती है। (अनस्प्लैश )