कोविड-19 (Covid-19) महामारी ने भारतीय सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र को कई तरीकों से प्रभावित किया है। महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगायी गयी तालाबंदी के कारण सभी सार्वजनिक परिवहनों को रोक दिया गया, चाहे फिर वह बस हो, मैट्रो हो या फिर टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदि। हालांकि, तालाबंदी के खुलने के बाद कुछ सार्वजनिक परिवहन साधनों जैसे बस, टैक्सी आदि को संचालित करने की अनुमति दी गयी, लेकिन फिर भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, क्यों कि, उन पर यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में लगभग 90% तक की गिरावट आयी। भले ही, कार्यस्थलों को अब वापस खोल दिया गया है, लेकिन सार्वजनिक परिवहनों का उपयोग करने वाले यात्रियों की संख्या उतनी नहीं हो पायी है, जितनी कोरोना महामारी से पहले हुआ करती थी। इसके अलावा ऐसी कई चीजें हैं, जिनकी लागत भी सार्वजनिक परिवहन और अधिकारियों को उठानी पड़ रही है, जैसे वाहनों की नियमित सफाई, सुरक्षात्मक उपकरण जैसे – पीपीई (PPEs), मास्क (Masks), दस्ताने, कर्मचारियों के लिए कवच, यात्रियों के लिए सैनिटाइजर (Sanitisers), सामाजिक दूरी को बनाए रखने के लिए उपयुक्त साधन, अतिरिक्त प्रौद्योगिकी निवेश जैसे थर्मामीटर (Thermometers), थर्मल स्कैनर (Thermal scanners), थर्मल कैमरा (Thermal cameras) आदि।
कोरोना महामारी के प्रभाव से भारतीय परिवहन को बहुत नुकसान हुआ है। भारतीय मैट्रो का परिचालन न होने से प्रत्येक मैट्रो ने प्रतिदिन लगभग 800 लाख रुपये का नुकसान झेला है। तालाबंदी के कारण कई श्रमिकों ने अपने घरों को पलायन किया, जिसके पीछे न केवल कोरोना महामारी का डर था, बल्कि नौकरी के नुकसान और काम पर वापस न लौटने की आशंका भी थी। भारतीय परिवहन को निर्माण गतिविधियों को संचालित करने की अनुमति भले ही मिल गयी हो, लेकिन उन गतिविधियों को करने के लिए शहरों में पर्याप्त श्रमिक मौजूद नहीं हैं। इस प्रकार श्रम की अनुपलब्धता के कारण विभिन्न निर्माण गतिविधियों को पूरा करने के लिए भी भारतीय सार्वजनिक परिवहन को संकट का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना विषाणु से खुद को सुरक्षित रखने के लिए लोग निजी वाहनों से यात्रा करना पसंद कर रहे हैं, जिसकी वजह से सार्वजनिक वाहनों के उपयोग में भारी कमी आयी है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment - CSE) द्वारा किये गये एक विश्लेषण के अनुसार, मार्च 2020 के बाद से सार्वजनिक परिवहन क्षमता औसतन 73% घट गई है, और लोग अभी भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से बच रहे हैं। विश्लेषण के अनुसार, यदि लोगों द्वारा निजी वाहनों का अत्यधिक उपयोग यूं ही बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना बहुत मुश्किल हो जायेगा तथा जो भी प्रयास अब तक सरकार द्वारा किये गये हैं, वे विफल हो जायेंगे। इसके अलावा निजी वाहनों के उपयोग से सड़कों पर ट्रैफ़िक जाम (Traffic jam) में बढ़ोत्तरी होगी तथा पर्यावरण प्रदूषण अत्यधिक बढ़ता जाएगा। परिवहन के वे साधन जिन्हें फिर से शुरू किया गया है, वे सीमित क्षमता के साथ संचालित हो रहे हैं, ताकि सामाजिक दूरी के मानदंडों को पूरा किया जा सके। इस प्रकार सार्वजनिक परिवहन उन उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिनके लिए वे बनाए गए थे।
कोरोना महामारी के प्रभाव से शहरी परिवहन में अनेकों बदलाव देखने को मिले हैं। बस और मेट्रो सेवाओं के उपयोग में तीव्र कमी के साथ ऐसे वाहनों के उपयोग में वृद्धि हुई है, जो इंजन (Engine) या मोटर (Motor) पर निर्भर नहीं है। कम दूरी के सफर के लिए शहरी लोगों ने गैर-मोटर चालित वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दिया है। कोरोना महामारी के प्रभाव की वजह से जहां ऑनलाइन (Online) खरीदारी में वृद्धि हुई है, वहीं खाद्य वितरण सेवाओं में भारी कमी महसूस की गयी है। ऑनलाइन लेन-देने में वृद्धि से भी यात्री परिवहन की मांग में भारी कमी आयी है। जहां सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कम हो गया है, वहीं कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री में वृद्धि से निजी वाहनों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है, जो सार्वजनिक परिवहन और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है। आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने और नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा और उपलब्धता को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3bue27Y
https://bit.ly/3umamO5
https://bit.ly/3dDXugg
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र कोरोना में यात्रा की स्थिति को दर्शाता है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर बस में सामाजिक दूरी को दर्शाती है। (विकिमीडिया)
आखिरी तस्वीर बस स्टॉप में सामाजिक दूरी को दर्शाती है। (पिक्साबे)