विचारों के आदान-प्रदान हेतु मानव द्वारा जिस माध्यम का उपयोग किया जाता है, उसे भाषा कहा जाता है। भाषा उन माध्यमों में से एक है जो हमारे भूत, भविष्य और वर्तमान को संरक्षित रखती है भाषा के माध्यम से ही हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को आगे की पीढ़ी को हस्तांतरित करते हैं। विश्व में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से कुछ को विशेष मान्यता प्राप्त है तो कुछ विलुप्त हो गयी हैं, तो कई आज विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। इन्हीं भाषाओं को संरक्षण देने के लिए प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार बांग्लादेश की पहल थी। 21 फरवरी को ही बांग्लादेश (Bangladesh) (तब पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan)) के लोग बंगला भाषा को मान्यता के लिए लड़े थे। 1948 में, पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार ने उर्दू को पाकिस्तान की एकमात्र राष्ट्रीय भाषा घोषित किया, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिम पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) को मिलाकर अधिकांश लोगों द्वारा बंगाली या बंगला बोली जाती थी। पूर्वी पाकिस्तान में भाषा को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया क्योंकि यहां की अधिकांश जनता की मातृभाषा बांग्ला थी, उन्होंने बंगला को उर्दू के अलावा द्वितीय राष्ट्रीय भाषा बनाने की मांग की। इसके लिए एक लम्बा संघर्ष चला जिसमें कई लोगों की जान चली गयी। यह इतिहास की एक दुर्लभ घटना थी, जहाँ लोगों ने अपनी मातृभाषा के लिए बलिदान दिया था। तब से, बांग्लादेशी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के दिन अर्थात 21 फरवरी को अपने दु:खद दिनों में से एक के रूप में मनाते हैं। वे शहीद मीनार का दौरा करते हैं, जो शहीदों की स्मृति में बनायी गयी स्मारक है और इसके प्रति उनकी गहरी व्यथा, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
आज विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देना है। 17 नवंबर 1999 को यूनेस्को द्वारा पहली बार इसकी घोषणा की गयी थी, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2002 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 56/262 में इसे औपचारिक रूप से मनाने की स्वीकृति दी। 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव में सदस्य राज्यों को "दुनिया के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने" का आह्वान किया। इसी प्रस्ताव के द्वारा महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसांस्कृतिकवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में घोषित किया, और इसका उत्तरदायित्व यूनेस्को को सौंपा गया। विश्व के सतत विकास लक्ष्य भी सभी को साथ लेकर चलने में ध्यान केंद्रित करते हैं। यूनेस्को का मानना भी है कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय भाषा अर्थात मातृभाषा में ही होनी चाहिए।
कोविड-19 (COVID -19) के चलते शिक्षा प्रणाली पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है, इस वर्ष नीतिविदों, शिक्षकों, अभिभावकों और परिवारों ने बहुभाषी शिक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने और इसे शिक्षा में शामिल करने के लिए करने के लिए शिक्षा को पून: पटरी में लाने और इसे आगे बढ़ाने का आह्वाहन किया है। यह प्रयास संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय स्वदेशी भाषाओं (2022-2032) के दशक में भी योगदान देगा, जिसके लिए यूनेस्को (UNESCO) प्रमुख संस्था है। भाषाएं पहचान, संचार, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास के लिए अपने जटिल निहितार्थ के साथ, मनुष्य और पृथ्वी में विशेष रणनीतिक महत्व रखती हैं। फिर भी, वैश्वीकरण गतिविधियों के कारण, वे तेजी से खतरे में आ रही हैं, या पूरी तरह से विलुप्त हो रही हैं। जब भाषाएं धुंधली पड़ती हैं, तो दुनिया में सांस्कृतिक विविधता पर भी इसका विपरित प्रभाव पड़ता है। अवसर, परंपराएं, स्मृति, सोच और अभिव्यक्ति के अनूठे तरीके - बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मूल्यवान संसाधन भी खो जाते हैं।
भाषा अपनी पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को अपने साथ लेकर चलती है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से कम से कम 43% लुप्तप्राय हैं। केवल कुछ सौ भाषाओं को वास्तव में शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक ज्ञानक्षेत्र में जगह दी गई है, और सौ से भी कम डिजिटल दुनिया (digital world) में उपयोग की जाती हैं। बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज अपनी भाषाओं के माध्यम से मौजूद हैं जो पारंपरिक ज्ञान और संस्कृतियों को एक स्थायी तरीके से संचारित और संरक्षित करते हैं।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की डिजिटल इंडिया (Digital India) पहल के हिस्से के रूप में, डिजीटल सामग्री देश की 22 अनुसूचित भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएगीं और इन्हें भारत की अन्य 234 मान्यता प्राप्त भाषाओं में विस्तारित किया जाएगा। जून 2016 में मैसूर में भारतीय भाषा के केंद्रीय संस्थान में भारतवाणी परियोजना के माध्यम से डिजिटलीकरण शुरू हुआ और फरवरी 2017 तक 60 भारतीय भाषाओं में सामग्री मुफ्त में उपलब्ध कराई गई थी।
बार्सिलोना (Barcelona) में लेंग्युपस्क संस्थान (Linguapax Institute) द्वारा लेंग्युपस्क (Linguapax) पुरस्कार भाषाई विविधता के संरक्षण, भाषाई समुदायों के पुनरोद्धार और बहुभाषावाद के संवर्धन में उत्कृष्ट उपलब्धि को मान्यता देता है। इस क्षेत्र में योगदान देने वालों को इस प्रकार के कई अन्य पुरस्कार भी दिए जाते हैं। आज यह जागरूकता बढ़ रही है कि भाषाएं सांस्कृतिक विविधता और पारस्परिक संवाद को सुनिश्चित करने में, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और राजनीतिक रूप से विकास करने में, एक समावेशी ज्ञान समाजों के निर्माण में और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने, और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
संदर्भ:
https://www.un.org/en/observances/mother-language-day
https://en.wikipedia.org/wiki/International_Mother_Language_Day
https://en.wikipedia.org/wiki/Bengali_language_movement
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को दर्शाता है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के शहीद मीनार स्मारक को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस समारोह को दर्शाती है। (विकिमीडिया)